SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 3
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विशेष समाचार दो समाधियाँ पूज्य आर्यिका श्री जिनमति जी का समाधिमरण परमपूज्य आचार्यश्री विद्यासागर जी की शिष्या पूजनीया आर्यिका जिनमति जी का 29 नवम्बर 2001 गुरुवार को रात्रि 2.45 बजे खिमलाशा (सागर म. प्र. ) में शान्तिमय समाधिमरण हो गया। आपका जन्म 8 अक्टूबर 1963 को शाहगढ़ (सागर, म.प्र.) में हुआ था। आपके गृहस्थ जीवन के पिता श्री कोमलचन्द्र जी जैन एवं माता श्रीमती चिन्तादेवी थी। आपने लौकिक शिक्षा बी. ए. द्वितीय वर्ष तक प्राप्त की थी। आपने 30 नवम्बर 1982 को सिद्धक्षेत्र नैनागिरी में दीपावली के दिन आचार्य श्री विद्यासागर जी से आजीवन ब्रह्मचर्यव्रत लेकर मोक्षमार्ग पर कदम रखा था । श्रावकव्रतों की उत्तरोत्तर साधना करते हुए आपने 10 फरवरी 1987 को सिद्धक्षेत्र नैनागिरी में पंचकल्याणक के अवसर पर दीक्षाकल्याणक के दिन आचार्य श्री विद्यासागर जी से आर्यिका दीक्षा ग्रहण की थी। सतत स्वाध्यायशीलप्रवृत्ति की धनी माता जी का कर्मसिद्धान्त पर अच्छा अधिकार था। प्रवचनशैली भी बहत ही प्रभावक थी। वे मृदुभाषी और शान्तपरिणामी थीं लेकिन असातावेदनीय के उदय से उन्हें एक असाध्य मस्तिष्क रोग ने घेर लिया था। फिर भी उन्होंने अपनी चर्या में कोई कमी नहीं आने दी और अंतिम समय तक जाग्रत रहते हुए विशुद्ध परिणामपूर्वक देह का परित्याग किया। आर्यिका श्री एकत्वमति जी का समाधिमरण परमपूज्य 'आचार्य श्री विद्यासागर जी की शिष्या पूज्या आर्यिका श्री एकत्वमति जी ने दिनांक 11 दिसम्बर 2001 को शाम 5.45 बजे श्री दिगम्बर जैन मंदिर टी.टी. नगर, भोपाल (म.प्र.) में सल्लेखनापूर्वक देह विसर्जन कर दिया । संघप्रमुखा आर्यिका श्री Jain Education International पूर्णमति जी तथा संघ की समस्त आर्यिकाओं एवं ब्रह्मचारिणियों ने बड़े ही वात्सल्यभाव से उनकी समुचित वैयावृत्य की मृत्यु के समय माता जी के परिणाम अत्यन्त शान्त और वैराग्यभाव से परिपूर्ण थे। उनका जन्म 15 जनवरी 1952 को रायसेन (म.प्र.) जिले के नगड़िया ग्राम में हुआ था। उनके पूर्वाश्रम के पिता श्री कन्हछेदीलाल जी जैन तथा माता श्री तेजाबाई थीं। आर्यिका श्री ने 25 जनवरी 1993 था को नन्दीश्वरद्वीप, मढ़ियाजी, जबलपुर के पंचकल्याणक महोत्सव में परमपूज्य आचार्य श्री विद्यासागर जी से आर्यिका दीक्षा ग्रहण की थी। तब से वे स्वाध्याय एवं संयम तप की गहन साधना में रत थीं। करीब चार वर्षों से उनके शरीर को असाध्य रोग ने घेर लिया था। फलस्वरूप उन्होंने आचार्यश्री से अनेक बार सल्लेखनाव्रत की प्रार्थना की, किन्तु वे कुछ और प्रतीक्षा करने के लिये कह देते थे। अन्त में 30 अक्टूबर 2001 को उन्होंने प्रार्थना स्वीकार कर ली। उसी दिन से आर्यिका एकत्वमति जी ने सल्लेखनाव्रत ग्रहण कर लिया और 11 दिसम्बर 2001 को प्रतिक्रमण करते हुए तथा आचार्यश्री के चित्र को एकटक निहारते हुए ओंकारध्वनि के उच्चारण के साथ देहपरित्याग कर दिया। 12 दिसम्बर 2001 को प्रातः 8 बजे विमान में पद्मासनमुद्रा में पिच्छी- कमण्डलु के साथ विराजमान कर उनकी समाधियात्रा निकाली गई हजारों जैन जैनेतर लोग यात्रा में शामिल हुए। बाहर से भी बहुत से लोग आ गये थे। भोपाल की आँखों ने प्रसन्नतापूर्वक देह से मोहत्याग का ऐसा हृदयस्पर्शी, अलौकिक, दुर्लभ दृश्य पहले कभी नहीं देखा था। जैनेतर जनता पर इस दृश्य का अनिर्वचनीय प्रभाव पड़ा। वह गदगद होकर श्रद्धा से मस्तक झुका रही थी। प्रातः 10.30 पर श्री दिगम्बर जैन मन्दिर जवाहर चौक, टी.टी. नगर के परिसर में उपयुक्त स्थान पर आर्यिका श्री द्वारा परित्यक्त शरीर का दाहसंस्कार कर दिया गया। पूज्य आर्यिका श्री पूर्णमति जी ने उपस्थित जनसमुदाय को सम्बोधित किया । 'दिसम्बर 2001 जिनभाषित For Private & Personal Use Only 1 www.jainelibrary.org
SR No.524258
Book TitleJinabhashita 2001 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2001
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy