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________________ तो किसी शायर की ये पंक्तियाँ सार्थक नजर आती हैं- । भटके-अटके पथिकजनों को समीचीन मार्ग को दिखाया है। स्वयं अमल से जिन्दगी बनती है, जन्नत भी जहन्नुम भी। चलते हुए बहुत से साधकों के लिये अपनी वरदानी छाँव को प्रदान अभी भी गया क्या है, बदल दे जिन्दगी अपनी।। करके उनके मार्ग को प्रशस्त किया। ऐसे आचार्य परमेष्ठी के व्यक्तित्व हम अपनी जिन्दगी के मालिक स्वयं हैं। हम जैसा बनना चाहें, | को हम कलम से लिखने का प्रयास करें तो सूरज को दीप दिखाने वैसा बन सकते हैं। हम आज उन्नति करना चाहते हैं, पर कैसी उन्नति | जैसी बात होगी। ऐसे परम आराध्य गुरुवर ने मुझ जैसे अल्पज्ञ के चाहते हैं? धन-वैभव की उन्नति को अपनी उन्नति मान लेना सबसे लिये पनाह दी, और मेरे जीवन के अज्ञानरूपी तिमिर का हरण करके बड़ी भूल है। वस्तुतः उन्नति क्या है यह इन पंक्तियों में देखें- सही दिशा बोध प्रदान किया और संसार सागर से पार होने के लिये रूह की आजादी, रूहानी तरक्की में है। मुझे भी अपने जैसी रत्नत्रयरूपी नाव में बिठाकर समता और संयम दौलत की तरक्की हुई तो रूह भी खतरे में है। की पतवार प्रदान की। ऐसे अपने गुरुवर का उपकार इस जीवन में - आत्मा की आजादी सबसे बड़ी उन्नति है। आचार्य श्री का | क्या, अनेक भवों में भी नहीं चुका पाऊँगा। चरणों में शत-शत नमन। व्यक्तित्व ऐसा ही है, जिन्होंने मोह के सारे बंधनों को तोड़कर अपने | इन पंक्तियों के साथ विराम लेता हूँआपको निर्मोही बनाया है। आत्मा की आजादी को अपने जीवन का मेरे मालिक अपनी अदालत में इतनी तो जगह रखना। लक्ष्य बनाया, विषय वासनाओं से दूर रहकर मोक्ष के पथिक बनकर मैं रहूँ या न रहूँ, मेरे गुरुवर को सलामत रखना।। आचार्य श्री विद्यासागर का चातुर्मास अभूतपूर्व धर्मप्रभावना के साथ सम्पन्न जबलपुर। परम पूज्य आचार्य श्री 108 विद्यसागर जी महाराज | प्रवेश सत्रारंभ समारोह आचार्य श्री की मंगल देशना के साथ सम्पन्न के चातुर्मास के अवसर पर यहाँ सम्पूर्ण देश के कोने-कोने से तकरीबन | हुआ। 5 लाख श्रद्धालुओं का आगमन दयोदय पशु संवर्धन एवं पर्यावरण जबलपुर के इतिहास में एक और घटना उल्लेखनीय रही। केन्द्र (गौशाला) तिलवाराघाट पर हुआ। वहीं कार्यक्रमों के आयोजन | आचार्य श्री के संघ का पिच्छिका परिवर्तन समारोह 30 सालों से की श्रृंखला ने धर्म एवं नैतिकता की प्रभावना को द्विगुणित कर दिया। | दीपावली के उपरान्त होता था परंतु जबलपुर में यह दीपावली के चातुर्मास स्थापना के साथ ही गौशाला विकासोन्मुख हो उठी। पूर्व हुआ। चातुर्मास के सबसे बड़े माने जाने वाले इस आयोजन की वहीं पर्युषण पर्व के दस दिवसी आयोजन में देश भर के मूर्धन्य विद्वानों | स्वीकृति रविवार को आचार्य श्री ने दी और मंगलवार को आयोजन का जमघट दयोदय तीर्थ पर उमड़ पड़ा। आचार्य शांतिसागर जी का हो गया। डॉ. हीरालाल जन्म शताब्दी समारोह के अवसर पर स्मारिका समाधि दिवस, रक्षाबंधन पर्व, पार्श्वनाथ भगवान का निर्वाण दिवस का विमोचन समारोह भी अत्यधिक गरिमापूर्ण रहा। (मुकुट सप्तमी) कार्यक्रमों के साथ ही करेली में आयोजित आचार्य श्री के सम्मुख उपस्थित होकर आशीर्वाद ग्रहण कर पंचकल्याणक की बचत राशि 11 लाख रुपये (जिसमें से 6 लाख गौरक्षा एवं मांस निर्यात को रोकने से संबंधित दिशा निर्देश प्राप्त पूर्व में एवं 5 लाख दयोदय परिसर में) श्री सम्मेद शिखर जी विकास करने वाले राजनेताओं में श्रीमती मेनका गाँधी (केन्द्रीय संस्कृति मंत्री), हेतु भेंटकर दान राशि के सदुपयोग का एक उदाहरण प्रस्तुत किया श्री सत्यनारायण जटिया (केन्द्रीय अधिकारिता मंत्री), राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरसंघ चालक श्री के.एस. सुदर्शन जी, म.प्र. के गया। वनमंत्री श्री हरवंश ठाकुर, गृह राज्यमंत्री दीवान चंद्रभान सिंह, म.प्र. दीन-दुखियों की सेवा भावना से स्थापित भाग्योदय तीर्थ मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष श्री गुलाब गुप्ता, जबलपुर के प्रभारी (सागर) द्वारा दयोदय में चिकित्सा शिविर का आयोजन कर 200 मंत्री अजय सिंह राहुल, म.प्र. विधानसभा उपाध्यक्ष ईश्वरदास रोहाणी, मरीजों का परीक्षण कर 60 मरीजों की चिकित्सा की गई एवं आचार्य जबलपुर महापौर, सांसद महोदया, विधायकगण के साथ, पत्रकार, श्री के आशीर्वाद से सभी मरीज स्वस्थ होकर गये।। साहित्यकार, अधिकारी एवं प्रबुद्धजन व न्यायाधीश भी निरंतर सम्पूर्ण देश से आये डाक्टरों की एक राष्ट्रीय संगोष्ठी 'मेडिकल | उपस्थित रहे। भारत के सबसे बडे मार्बल निर्यातक श्री आर के पाटनी बेसिस आफ जैनिज्म' एक सारभूत आयोजन रहा। भारत वर्षीय | एवं आचार्य श्री के बचपन के बालसखाओं की उपस्थिति भी दिगम्बर जैन प्रशासकीय प्रशिक्षण संस्थान के नये प्रशिक्षणार्थियों का | उल्लेखनीय रही। -दिसम्बर 2001 जिनभाषित 15 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524258
Book TitleJinabhashita 2001 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2001
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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