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________________ धार्मिक अवसरों पर लाउडस्पीकर, ड्रम, बैंड-बाजे आदि का उपयोग | आवश्यक है कि इस विषय में पहले से ही हमारे आध्यात्मिक एवं विधि-विरुद्ध है। माननीय न्यायालय ने बताया कि वृद्ध, बीमार तथा | सामाजिक नेतृत्व द्वारा प्रतिबंधात्मक कार्यवाही की जाए। छोटे बच्चों पर ध्वनि प्रदूषण का दुष्प्रभाव गंभीर होता है। अतः सभ्य हमें यह जानकर प्रसन्नता है कि 'जिनभाषित' सोद्देश्यता और समाज में किसी को भी ऐसे कार्य करने की अनुमति नहीं दी जा सकती, प्रामाणिकता के साथ आदर्श, आध्यात्मिक, सांस्कृतिक, सामाजिक, जिससे वृद्ध या असहाय अथवा बीमार व्यक्तियों के आराम में खलल नैतिक मानदण्डों एवं शाश्वत मूल्यों की स्थापना एवं विघटनशील पड़े, शिशुओं की निद्रा भंग हो या विद्यार्थी व अन्य कार्यरत व्यक्तियों सामाजिक चेतना के पुनर्जागरण के प्रति प्रयत्नशील है। की पढ़ाई या कार्य में बाधा पड़े। विद्यार्थियों को अधिकार प्राप्त है हमारे राष्ट्र एवं समाज का सर्वतोमुखी विकास हमारे कि वे शांतिपूर्ण वातावरण में पढ़ाई कर सकें और पड़ोसियों का कर्तव्य कर्तव्यनिष्ठ सुसंस्कृत एवं प्रतिभासम्पन्न युवक-युवतियों पर ही है कि उनकी पढ़ाई में खलल न डालें। इसी प्रकार वृद्ध, असहाय और आधारित है। यह हमारा महत्त्वपूर्ण सामाजिक कर्तव्य एवं मानवीय बीमार लोगों को अधिकार प्राप्त है कि वे ध्वनि प्रदूषणरहित वातावरण उत्तरदायित्व है कि हम अपने युवाओं को सतत संस्कारित करें जिससे में शांतिपूर्वक रह सकें। कि वे अपना सर्वतोमुखी विकास कर सकें और राष्ट्र के कर्तव्यनिष्ठ वातावरण प्रदूषण नियंत्रण विधि के अनुसार रहवासी क्षेत्र में नागरिक बन सकें। जैसे हमारे प्रतिष्ठाचार्य पत्थर या धातु की मूर्तियों ध्वनि की मात्रा दिन में 55 डेसीमल तथा रात्रि में 45 डेसीमल से का पंचकल्याणक कर उन्हें भगवान बना देते हैं, वैसे ही 'जिनभाषित' अधिक नहीं होनी चाहिए, परन्तु 'विश्व स्वास्थ्य संगठन' के मानकों अपनी युवा प्रतिभा को संस्कारित कर उन्हें सच्चा एवं बेहतर इन्सान के अनुसार, निद्रास्थल में ध्वनि प्रदूषण 30 डेसीमिल से अधिक होना बनाने के लिये प्रयत्नशील है। मुझे विश्वास है कि 'जिनभाषित' के स्वास्थ्य के लिये हानिकारक है। चूंकि किसी भी विवाह तथा धार्मिक प्रयत्न निश्चित ही सफल होंगे और हमारे युवा आधुनिक दृष्टि, स्वस्थ या सामाजिक उत्सव में ध्वनि प्रदूषण 100 डेसीमल से ऊपर ही विचार और उत्कृष्ट जीवन मूल्यों को अपने जीवन के प्रत्येक क्षेत्र होता है। अतः यह नितांत आवश्यक है कि रहवासी क्षेत्रों में मांगलिक में महत्त्व देते हुए अपनी सर्वतोमुखी प्रगति कर सकेंगे। उत्सव या विवाह स्थल चलाने पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया जाए। ध्वनिप्रदूषण से एक ओर जनस्वास्थ्य प्रभावित होता है तथा दूसरी हमारी यह पवित्र भावना है कि हमारे युवा कर्म के साथ धर्म को जोड़कर प्रत्येक कर्म को सत्कर्म बनाएँ। विचार के साथ धर्म को ओर उससे व्यक्ति की प्रवृत्ति आक्रामक हो जाती है और वह हिंसक हो जाता है। जोड़कर प्रत्येक विचार को सदविचार बनाएँ। संकल्प के साथ धर्म सम्पूर्ण विश्व में विवाह स्वाभाविक हर्ष/आनन्द का महत्त्वपूर्ण की जोड़कर प्रत्येक संकल्प को सत्संकल्प बनाएँ। भावना के साथ धर्म को जोड़कर प्रत्येक आचार को सदाचार बनाएँ। जीवन के प्रत्येक अवसर होता है और यह आनन्द नृत्य एवं गायन के माध्यम से अभिव्यक्त होता है। अतः प्राकृतिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक पक्ष के साथ धार्मिक विवेक जोड़कर सभी पक्षों को उज्ज्वल बनाएँ। व्यवस्था वैवाहिक अवसरों पर शालीनतापूर्वक नृत्य एवं गायन की युवक एवं युवतियों से मेरा विनम्र आग्रह है कि वे विश्व की भौतिक उपलब्धियाँ प्राप्त करने के लिये आवश्यक प्रयास करें, यथाशक्ति स्वीकृति प्रदान करती है। शालीन एवं संयमित आचरण हमारे युवक-युवतियों के मस्तिष्क को संस्कारित करता है और उन्हें सभ्य धनसंपदा अर्जित करें, किन्तु साथ ही जैन साहित्य का अध्ययन कर और जैन संस्कृति को अपनाकर मानवीय जीवन का सार प्राप्त करने एवं शिक्षित समाज में प्रतिष्ठित करता है। जब ऐसे नृत्य एवं गायन, संयम एवं शालीनता की सीमाएँ लाँघकर कामुकता, अपसंस्कृति, के लिये ठोस प्रयत्न करें, जिससे कि हमें शाश्वत सुख एवं संतोष फूहड़ता एवं असामाजिकता के क्षेत्र में प्रवेश कर जाते हैं तब अनेक प्राप्त हो सके। 30, निशात कालोनी, अवांछनीय समस्याएँ जन्म ले लेती हैं। इन समस्याओं एवं उनसे भोपाल-462003, म.प्र. उत्पन्न सामाजिक तथा आध्यात्मिक विरूपण से बचने के लिये योग्य विधानाचार्य एवं प्रवचनकार उपलब्ध सांगानेर (जयपुर)। प्रात: स्मरणीय आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के शुभाशीर्वाद एवं मुनिश्री सुधासागर जी महाराज की प्रेरणा से विगत 5 वर्ष की अल्पावधि की उपलब्धि के क्रम में श्री दि. जैन श्रमण संस्कृति संस्थान, सांगानेर में सभी धार्मिक पर्व, दशलक्षण पर्व, अष्टाह्निका पर्व, मंदिर वेदी प्रतिष्ठा, नैमित्तिक पर्व एवं अन्य विधि विधान आदि महोत्सव सम्पन्न कराने हेतु सुयोग्य प्रभावी विद्वान वक्ता उपलब्ध हैं। अष्टाह्निका पर्व में विधि-विधान एवं प्रवचनार्थ आप अपने आमंत्रण पत्र संस्थान कार्यालय में अथवा फोन से सम्पर्क करें ताकि समय रहते व्यवस्था की जा सके। पं. प्रद्युम्न कुमार शास्त्री, व्याख्याता जैन नसियाँ, नसियाँ रोड, सांगानेर-303902 जयपुर (राज.) फोन-0141-730552 मोवाईल-98290-81553 4 नवम्बर 2001 जिनभाषित - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524257
Book TitleJinabhashita 2001 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2001
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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