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________________ मिलेगी, वह भी उथली एवं व्यंग्य-तिरस्कार | उक्ति चरितार्थ करता है। कुकल्पनाओं के नहीं होते। जितने संकट अनगढ़ मस्तिष्क द्वारा से भरी हुई होगी। सहायता तो कहीं से अँधेरे में झाड़ी की आकृति भूत जैसी बन सोचे जाते हैं, देखा गया है, उनमें से आधेकदाचित् ही मिल सके। यह भी हो सकता जाती है। साहस और विवेक की मात्रा घट चौथाई भी सामने नहीं आते। काली घटाएँ है जिनसे सामान्य स्थिति में थोड़ी-बहुत जाने पर ऐसे अनगढ़ विचार उठने लगते हैं, सदा बरसने वाली ही नहीं होती। सहायता की आशा थी, उससे भी हाथ धोना जिनसे विपत्ति का आक्रमण और उसके कारण अनुकूलताएँ और प्रतिकूलताएँ धूपपड़े। विनाश का भयावह दिवास्वप्न आँखों के छाँव की तरह आती-जाती रहती हैं। उनमें से अपने आपको कमजोर करने और सामने तैरने लगता है। एक भी चिरस्थायी नहीं होती। सामने आने गिराने का यह अवसाद-उपक्रम जिसने भी जब कल्पना-जगत में बेपर की उड़ानें वाली परिस्थितियों का समाधान ढूँढने के लिये अपनाया है, वे घाटे में रहे हैं। मनोबल को ही उड़नी हैं तो फिर उन्हें विधेयात्मक स्तर और भी अधिक सूझबूझ की, साहस एवं गिराना भी धीमी आत्महत्या है, जो रोग- की क्यों न गढ़ा जाय? असफलता के स्थान पुरुषार्थ की आवश्यकता पड़ती है। उन्हें निवारण, अर्थ-उपार्जन, सौभाग्य-संवर्धन, पर सफलता का स्वप्न देखने में क्या हर्ज है? जुटाने के लिये मनोबल तगड़ा रहना चाहिए संकट-निवारण जैसे अगठित महत्त्वपूर्ण संकट के न आने और उसके स्थान पर सुखद अन्यथा निराशा, चिन्ता, भय जैसी कुकल्पकार्यों में अजस्र सहयोग प्रदान करता है। संभावनाओं के आगमन की बात सोचने में नाएँ घिर जाने पर तो हाथ-पैर फूल जाते हैं, गिराने, थकाने और खोखला बनाने वाले भी कोई अड़चन नहीं होनी चाहिए। यथार्थता कुछ करते-धरते नहीं बन पड़ता है, फलतः उपर्युक्त मनोविकारों में चिन्तन का निषेधा- तो समय पर ही सामने आती है। आशंका तो अपने ही बुने जाल में मकड़ी की तरह फँसकर त्मक प्रवाह ही आधारभूत कारण होता है। कल्पना पर आधारित हो सकती है, सो भी अकारण कष्ट सहना पड़ता है। जो इनसे जैसा सोचा होता है, उसमें वास्तविकता का मनगढन्त। जब गढ़ना ही रहा तो भूत क्यों बचता है, वह अक्षुण्य स्वास्थ्य का श्रेयाधिनगण्य-सा ही अंश रहता है। कुकल्पनाओं का गढ़ा जाय, देवता की संरचना करने में भी कारी बनता है। घटाटोप ही, 'शंका डाक मनसामते' की | तो उतनी ही शक्ति लगेगी। डर वास्तविक | नीरोग जीवन के महत्त्वपूर्ण सूत्र' से साभार आतंकवाद और आणविक शक्तियों को पराजित करने का एकमात्र उपाय : अहिंसा गोटेगाँव (श्रीधाम)। सामाजिक एवं सांस्कृतिक विकास तथा । अध्यक्ष श्री अनिल कुमार सिंघई ने प्रस्तुत किया। उत्थान के लिये अग्रगण्य सेवाभावी न्यास श्री सिंघई फकीरचंद विशिष्ट अतिथि डॉ. राजेन्द्र त्रिवेदी ने अहिंसक संस्कृति का गुणवती देवी जैन चेरिटेबिल ट्रस्ट द्वारा दिनांक 5.10.2001 को महत्त्व निरुपित कर उसकी अपरिहार्य उपदेयता पर प्रकाश डाला। न्यास के वार्षिक समारोह के अवसर पर प्रादेशिक अहिंसा सम्मेलन मुख्य अतिथि मध्यप्रदेश शासन संस्कृत अकादमी, भोपाल सम्पन्न हुआ। सिंघई छतारे लाल जैन मंदिर के सुसज्जित विशाल के पूर्व सचिव डॉ. 'भागेन्दु' जैन अपने प्रभावक प्रेरक उद्बोधन में सभा भवन में आयोजित इस गरिमामय सम्मेलन की अध्यक्षता हिंसा के प्रकार, भेद और विविध रूपों के माध्यम से उनकी दानवी प्रशासनिक संस्थान, जबलपुर के संचालक प्रसिद्ध समाज सेवी श्री | लीला का पर्दाफाश कर अहिंसा का स्वरूप समझाया। अहिंसा को नरेश गढ़वाल ने की। भगवान महावीर स्वामी के 2600वें जन्म | धर्म, श्रेष्ठ कर्म और सर्वोदय की उदात्त योजना से संश्लिष्ट महाशक्ति जयंती वर्ष एवं गाँधी जयंति सप्ताह में आयोजित इस समारोह के पुंज, संरक्षक अस्त्र निरूपित किया। उन्होंने आतंकवाद और आणविक मुख्य अतिथि राष्ट्रीय शोध संस्थान, श्रवण वेलगोला (कर्नाटक) के महाविनाश से विश्व की सुरक्षा का अमोघ अस्त्र अहिंसा को पूर्व डायरेक्टर जैन जगत् के मूर्धन्य मनीषी डॉ. भागचन्द जैन विस्तारपूर्वक सोदाहरण समझाकर इस महनीय सम्मेलन के आयोजन 'भागेन्दु' दमोह, तथा विशिष्ट अतिथि रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय, के लिये ट्रस्ट की भूरि-भूरि सराहना की। ट्रस्ट के समीचीन विकास जबलुपर के हेड ऑफ द डिपार्टमेंट डॉ. हीरालाल जैन, संस्कृत- पालि- के लिये अपनी मंगलकामनाएँ अर्पित कर अनेक उपयोगी सुझाव भी प्राकृत विभाग के प्रोफेसर डॉ. राजेन्द्र त्रिवेदी और गोटेगाँव के नगर दिये। श्री नरेश गढ़वाल ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में सिंघई पंचायत के अध्यक्ष श्री राजकुमार जैन थे। फकीरचंद जी के अनेक प्रेरक संस्मरण और लोकोपकारी विराट जबलपुर से सभागत भजन गायिका श्रीमती संगीता जैन के | व्यक्तित्व की विवेचना कर ट्रस्ट को अपनी मंगलकामनाएं दी। मंगलाचरण से प्रारंभ इस कार्यक्रम के प्रथमचरण में अहिंसा संस्कृति कार्यक्रम के बीच-बीच में अहिंसा प्रेमी भगवान महावीर एवं के सम्वर्द्धक जैन धर्म के अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर के चित्र राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी जी से संबंधित अनेक गीतों-भजनों की सरस के समक्ष अहिंसा-ज्ञान दीप का दीपन मुख्य अतिथि एवं अध्यक्ष के और प्रभावक प्रस्तुति द्वारा श्री अवधेश बेंटिया तथा सौ. संगीता जैन द्वारा किये जाने के उपरान्त मंचासीन सभी अतिथियों तथा सभागत ने अर्धरात्रि पर्यन्त श्रोताओं को भावविभोर किया। विशिष्ट महानुभावों के द्वारा राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी और जिनकी पुण्य प्रारंभ से आभार प्रदर्शन तक कार्यक्रम का कुशल संयोजन स्मृति में न्यास संस्थापित है उन सिं. फकीरचंद गुणवती देवी के चित्रों अनेक संस्थाओं से सम्बंधित, इस ट्रस्ट के न्यासी और दमोह जैन पर पुष्यमाल्य/पुष्पाजंलि समर्पित की गयी। न्यास का परिचय पंचायत के अध्यक्ष श्री वीरेन्द्र कुमार इटोरया ने की। इस प्रतिष्ठापूर्ण गोटेगाँव समाज के गौरव श्री चौधरी सुरेश चन्द्र जी ने प्रस्तुत किया। कार्यक्रम का सफल संचालन श्री अजित कुमार एडवोकेट, जबलपुर न्यास की गतिविधियों एवं प्रवृत्तियों का लेखाजोखा न्यास के युवा | ने किया। अनिल जैन 28 अक्टूबर 2001 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524256
Book TitleJinabhashita 2001 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2001
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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