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दया को सुरक्षित रखिये
तिलवारा घाट, जबलपुर म.प्र. में रविवारीय प्रवचन का अंश
आचार्य श्री विद्यासागर दया को सुरक्षित रखिये क्योंकि यही | केवल जयकार तक ही सीमित नहीं रखें, | मूकमाटी में हमने लिखा- 'एक ताजगी, धर्म का मूल है। दया है तो मोक्षमार्ग है, हम | उसकी रक्षा के लिये प्रत्येक व्यक्ति को आगे | एकता-जगी।' जहाँ पर एकता जगती है, वहाँ दया के बिना चलते हैं तो वह मोक्षमार्ग नहीं, | आना चाहिए।
पर एक ताजगी अवश्य होती है। आज एकता वह तो मोह मार्ग है। विषय सामग्री को देखोगे भगवान नेमिनाथ के विवाह का वह की ताजगी के अभाव में अहिंसा की ताजगी, तो विषयी ही बनोगे, लेकिन दया की बात प्रेरक प्रसंग जो संसार का सबसे बड़ा राग | सुगंध इस भारत भूमि पर नहीं फैल पा रही सुनोगे तो दया धर्म को पाओगे। आज भारत का कार्य कहा जाता है वह है श्रावण मास का की दशा दया धर्म के बिना क्या हो रही है? समय। विवाह के लिये रथ पर आरुढ़ होकर आज वर्तमान में देश की हालत सुनने में आ रहा है, अब तो ट्रेनों में भर- | नेमिनाथ भगवान जा रहे हैं, लेकिन एक घटना देखता हूँ तो लगता है, क्षत्रियों के द्वारा जो भरकर पशुओं को बंगाल, हैदराबाद आदि की इस राग के वातावरण को वीतरागता की ओर देश का, या अपने राज्य का संचालन होता ओर भेजा जा रहा है। आज एक दिन में एक- । ले जाती है। वह घटना थी- पशुओं का एक था वह स्वतंत्र रूप से हुआ करता था। आज एक कत्लखाने में 10-10 हजार पशुओं को | बड़ा समूह एक बाड़े में है। पूछा अपने सारथी देश को स्वतंत्रता मिले 50-55 वर्ष हो गये काटा जा रहा हैं। क्या यह वही भारत है जिसने से कि इन पशुओं को बंधन में क्यों रखा गया हैं, स्वर्ण जयंती भी बड़ी धूमधाम से मना अहिंसा धर्म के माध्यम से आजादी पाई और है? सारथी ने कहा - आपकी बारात में आये ली गई, लेकिन जिसके माध्यम से स्वतंत्रता 'जियो और जीने दो' की बात सिखाई? आज अतिथियों की भोजन की व्यवस्था के लिये मिली उसकी बात नहीं सुनी जा रही है। उसकी उसी भारत - भूमि पर हिंसा का तांडव, यह इनको बंधक बनाकर रखा गया हैं। उनका | बात क्यों नहीं कही जा रही है? आज की सत्ता तो बड़े शर्म की बात है।
मांस उन्हें खिलाया जायेगा। बस क्या था? | में राजनीति का सही रूप नहीं, व्यवसाय दया धर्म के क्षेत्र में हमारे पूर्वजों ने जो | मेरे निमित्त इतने सारे जीवों का वध, यह कभी | नीति का महत्त्व होता जा रहा है। अर्थ के योगदान दिया हम उनके इतिहास को भूलते मंजूर नहीं? तुरंत अपने रथ को मोड़ने के लिये | | प्रलोभन में अपनी मूल संस्कृति का ही विनाश जा रहे हैं, और हिंसा के कार्यों का समर्थन अपने सारथी से कहा और राग के बंधन को होता जा रहा है। जैसे बनिया होता है उसके करते जा रहे हैं। आज तो 'अंधेर नगरी चौपट तोड़कर वीतरागता के मार्ग को अपनाया। | लिये तो केवल पैसा ही दिखता है, यही दशा राजा' की बात को चरितार्थ किया जा रहा है आज इस सभा में नेमिनाथ भगवान के इतने आज देश की होती जा रही है। क्षत्रिय जो होता
और किसी की बात को नहीं सुना जा रहा है। । सारे उपासक है, उन्हें इस भारत की धरती है वही राज्य का संचालन कर सकता है। आज हम अपना समर्थन हिंसा के कार्य करने में न पर हो रहे पशुओं की चीत्कार नहीं सुनाई दे | अहिंसा के क्षेत्र में काम करने वालों को सदा दें। हम अपना वोट दे रहे हैं, वह वोट अहिंसा
आशीर्वाद हैं। युवकों के लिये रचनात्मक कार्य के क्षेत्र में कार्य करने वाले को दें। अहिंसा अहिंसा धर्म के क्षेत्र में अकेला ही करने के लिये आगे आना चाहिए। मैं एक बात की रक्षा करना पुरुषों का ही काम है ऐसा नहीं चलना होता है। इसके लिये प्रदर्शन की और कहना चाहूँगा कि मुझे खुश करने के है महिलाओं को भी आगे आकर अपना कार्य आवश्यकता नहीं होती। आज प्रदर्शन का युग लिये काम न करें, मैं इसमें खुश भी नहीं करना चाहिए। दक्षिण भारत के इतिहास में है इसमें अकेले की बात नहीं सुनी जाती। आप होता। अहिंसा धर्म की रक्षा, प्रचार प्रसार करने एक रानी शान्तला हुई, उसने अपने राज्य की लोगों का कर्तव्य है कि अहिंसा का रास्ता वालों से मैं खुश रहता हूँ। आज समाज में रक्षा के साथ अहिंसा धर्म की भी रक्षा कर चुनें, उस पर चलें। अहिंसा का रास्ता एक | करोड़ों रुपये पंचेन्द्रियों के विषय में तो खर्च अपना अनोखा योगदान दिया था। यह हमारी ऐसा रास्ता है जिसमें सुख-शांति भरपूर है। हो रहे हैं, लेकिन अहिंसा धर्म के क्षेत्र में क्यों भारतीय नारियों का इतिहास है जिन्होंने अपने आज अशांति का वातावरण क्यों हैं? चारों इस प्रकार कार्य नहीं हो रहा है? मैं तो भगवान अहिंसा धर्म से समझौता नहीं किया। आज तरफ हिंसक विचारधारा की भीड़ खड़ी है, से यही भावना करता हूँ- इन युवाओं में भारत की इस धरती पर हिंसा का तांडव हो इसलिये अशांति का वातावरण बना हुआ है। अहिंसा धर्म की भावना बढ़ती जाये, और धर्म रहा है, हिंसा का यज्ञ हो रहा है, उसे रोकने आज सभी देश अशांति का अनुभव कर रहे की प्रभावना होती जाये। इसी भावना के साथ की आवश्यकता है। भगवान महावीर स्वामी हैं। अहिंसा के अभाव में अशांति के अलावा इन पंक्तियों के साथ विराम लेता हूँका यह 2600 वाँ जन्मोत्सव वर्ष हम मना और कुछ भी प्राप्त होने वाला नहीं हैं। अहिंसा यही भावना वीर से, अनुनय से कर जोड़। रहे हैं, और अहिंसा की बात हम भूल जायें का महत्त्व जिसकी समझ में आ जाता है, हरी भरी दिखती रहे, धरती चारों ओर।। यह तो ठीक नहीं है। अहिंसा धर्म को अब | उसके अंदर एक ताजगी जैसी आ जाती है।
-सितम्बर 2001 जिनभाषित 5
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