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________________ श्री महावीर उदासीन आश्रम, कुण्डलपुर ब्र. अमरचन्द्र जैन दिगम्बर जैन समाज का यह प्रथम | प्रायः 14 वर्ष की उम्र में परिग्रह परिमाण व्रत | दिया। उदासीन आश्रम है। इसके संस्थापक स्व. | ग्रहण किया था। पू.स्व. गणेश प्रसाद जी वर्णी पिछले वर्षा योग 1995 के समय पूज्य गोकुलचन्द जी वर्णी ने त्यागी व्रती | ने बाबा गोकुलचंद जी वर्णी से सप्तम प्रतिमा बाबा परसुराम जी ने जो पहिले कुण्डलपुर पुरुषों को सुस्थिर कर धर्माराधना तथा शुद्ध के व्रत ग्रहण किये और वे उनके दीक्षा गुरु आश्रम में रहते थे इंदौर आश्रम से आये और भोजन-पान हेतु एक ऐसे आश्रम की कल्पना हुए। संस्थापक के सन् 1923 में दिवंगत होने 96 वर्ष की आयु में आचार्य के ससंघ की थी जहाँ रहकर मुमुक्ष गृह से उदासीन | के पश्चात् आश्रम प्रबंध समिति ने संचित निधि सान्निध्य में समाधि प्राप्त की। कई वर्षों से होकर अपना कल्याण कर सकें और समाधि के आधार पर ब्र. भरोसे लाल, ब्र. आचार्यश्री से निवेदन करने के पश्चात् पं. की साधना कर सकें। जयचंद्रजी, तत्पश्चात् ब्र. नन्हे लाल जी का जगन्मोहन लाल जी सिद्धान्तशास्त्री, कटनी सन् 1910-11 में कुण्डलपुर में अधिष्ठातृत्व रहा। को इसी वर्ष आचार्य श्री ने विधिवत् योगायोग उन्होंने थोड़ी जमीन खरीदी और झोपड़ियों में अनेक वर्षों तक ब्र. भगवानदास जी देखकर सल्लेखना और समाधि के लिये त्यागीवृन्द रहकर स्वयं भोजन बनाते और लहरी ने सफलतापूर्वक आश्रम एवं तीर्थ क्षेत्र संकल्प दिलाया और तीन माह की साधना के धर्माराधन करते थे। इन्हीं भावनाओं से प्रेरित कमेटी के कार्यों में महत्त्वपूर्ण योगदान देकर बाद 7 अक्टूबर 1995 शरद पूर्णिमा की पूर्व वे इन्दौर पहुँचे ताकि आश्रम की स्थापना/ पुष्ट किया। उनके निधन के बाद श्री भगवान संध्या पर आचार्य श्री एवं संघस्थ साधुओं की भवन हेतु अर्थ संग्रह किया जा सके। इंदौर दास जी गढ़ाकोटा एवं पं. जगन्मोहन लाल उपस्थिति में पंचनमस्कार मंत्र जपते पं.जी में सर सेठ हुकमचन्द जी ने जब यह विचार जी शास्त्री ने यथा योग्य संचालन किया। । ने शरीर छोड़ा था। उनकी आयु 94-2-1 दिन सुना तो प्रभावित होकर विनय की कि ऐसा सन् 1968 में स्व. न्यायालंयकार पं. थी। आश्रम यहाँ इंदौर में खोलिये। बाबा गोकुल- वंशीधर जी शास्त्री, इंदौर की अध्यक्षता में समय-समय पर कुण्डलपुर तीर्थ क्षेत्र चन्द जी ने सेठ सा. का प्रस्ताव मंजूर किया आश्रम समिति द्वारा आयोजित एक व्रती कमेटी के पदाधिकारी अध्यक्ष, मंत्री आदि और सेठ साहब के तीनों भाइयों ने दस-दस सम्मेलन भी हुआ तथा 13.2.68 को महावीर आश्रम समिति के अध्यक्ष, मंत्री हजार रु. देकर एक उदासीन आश्रम इंदौर में (दिवंगत हुए सदस्यों की वजह से) प्रबंध सदस्य आदि रहे और आज भी हैं। वर्तमान संवत् 1971 चैत्र शुक्ल 9 (सन् 1914) समिति का पुनर्गठन भी उनके सान्निध्य में में पूर्व क्षेत्र कमेटी के अध्यक्ष एवं मंत्री रहे को स्थापित किया तथा पं. पन्नालाल जी हुआ। डॉ. शिखरचंद जी (अब सप्तम प्रतिमा गोधा प्रथम अधिष्ठाता नियत हुए। यह आश्रम . स्व. पं. जगन्मोहन लाल जी की प्रेरणा धारी) आश्रम समिति के अध्यक्ष हैं तथा श्री प्रसिद्ध हुआ और आज भी चल रहा है। एवं प्रयास से संत शिरोमणि आचार्य 108 प्रेमचंद जी, खजूरी वाले (पूर्व मंत्री क्षेत्र बाबा गोकुलचन्द्र जी की भावना विद्यासागर जी महाराज का 1976 में कटनी कमेटी) मंत्री पद पर हैं। श्री अमरचंद जैन, कुण्डलपुर क्षेत्र पर बड़े बाबा के पादमूल में से कच्चे मार्ग से कुण्डलपुर आगमन हुआ। आश्रम स्थापना की थी। अतः भिन्न-भिन्न कुण्डलपुर कोषाध्यक्ष हैं। आचार्य श्री को कुण्डलपुर के बड़े बाबा ने स्थानों से चन्दा एकत्रित कर उदासीन आश्रम इतना आकर्षित किया कि अब तक आचार्य आश्रम भवन पुराना एवं जर्जर हो गया का भवन, जहाँ छोटी-छोटी झोपड़ियाँ थीं, | श्री के ससंघ पाँच चातुर्मास यहाँ सम्पन्न हुए। है। इसकी जगह नवीन तथा आवश्यक सन् 1915 वीर नि.सं. 2441 में स्थापित | इसी आश्रम में बैठ कर पं. जगन्मोहन सुविधानुसार तरीके से निर्माण की आवश्यकिया। इस भवन का उद्घाटन वीर नि.सं. | लाल जी शास्त्री ने ब्र. बहिनों तथा भाइयों कता है। आज पढ़े लिखे गृह से विरत सम्पन्न 2444 सन् 1918 में हुआ था। 85 वर्ष से | को धर्म शिक्षण-स्वाध्याय कराया था। आचार्य लोग धर्म साधना करना चाहते हैं। आचार्य श्री अब तक यह आश्रम अपनी स्वयं की अर्थ | श्री के संघ की अधिकांश आर्यिकाएँ पं. जी के प्रभाव से अनेक रिटायर्ड एवं सम्पन्न लोग व्यवस्था के तहत कुंडलपुर में चल रहा है। | से शिक्षित हैं। कुछ ब्र. भाई मुनि पद पर तीर्थ क्षेत्र पर सुविधाजनक कमरों में रह कर आश्रम की ओर से कभी कोई दान की अपील | स्थित हैं। बुंदेलखण्ड की धरती आचार्य श्री साधना करने के इच्छुक हैं। हमारी भावना है नहीं की गई। एक प्रबंध समिति इसका | के पदार्पण से उर्वरा हो गई तथा हर वर्ष Oldmen Hostel जैसा आधुनिक सुविसंचालन करती आ रही है। अच्छी फसल उगने लगी। संघ का परिवार धायुक्त भवन का निर्माण हो जाये ताकि पीछे मुड़कर देखें, इसी कुण्डलपुर के निरंतर वृद्धि की ओर है और इस चौथाई मुमुक्ष निराकुल होकर समाधि की भावना संस्थापक स्व. बाबा गोकुलचन्द जी वर्णी के शताब्दी ने बाल ब्रह्मचारी मुनि एवं आर्यि रख, साधना कर सकें। सुपुत्र स्व. पं. जगन्मोहन लाल जी शास्त्री ने काओं की संख्या का अपूर्व इतिहास रच सितम्बर 2001 जिनभाषित 23 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524255
Book TitleJinabhashita 2001 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2001
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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