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________________ जैन धर्म कहता है कि प्रत्येक आत्मा महावीर भगवान् के समान परमात्मा बन सकता है। संयमी बनकर स्वावलम्बी जीवन हुए प्रत्येक संसारी जीव निर्वाण को प्राप्त कर सकता है। अकेले सम्यक्त्व के होते हुए भी जीव मोक्ष नहीं पाता है। ज्ञानकी स्थिति निराली है। वह तो गंगा गए गंगादास, जमुना गए जमुनादास के समान श्रद्धा के अनुसार अपना रंग बदलता है। वह ज्ञान सम्यक् श्रद्धा सहित सम्यग्ज्ञान हो जाता है और इसके अभाव में वही ज्ञान मिथ्या हो जाता है। इसलिये ज्ञान का भी मूल्य नहीं है। मूल्य है सम्यक्- चरित्र का । सम्यक् चरित्र होने पर नियम से मोक्ष होता है। धर्म का पालन कठिन है। यह ठीक है। किन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि धर्म को बिल्कुल भुला दिया जाए। अगर पूर्ण रूप से उसका पालन नहीं होता है तो जितनी शक्ति है उतना पालन करो और जितना पालन करते हो उसे अच्छी तरह पालो । अकर्मण्य बनकर चुपचाप बैठना ठीक नहीं है और न स्वच्छंद बनने में ही भलाई है शक्ति को न छुपाकर धर्म का पालन करना प्रत्येक समझदार व्यक्ति का कर्त्तव्य है। हम व्यवहार धर्म का पालन करते हैं। भगवान का दर्शन करते हैं। अभिषेक देखते हैं। प्रतिक्रमण- प्रत्याख्यान करते हैं। सभी क्रियाओं का यथाविधि पालन करते है, किन्तु हमारी अंतरंग श्रद्धा निश्चय पर है। जिस समय जो भवितव्य है उसे कोई भी अन्यथा नहीं परिणमा सकेगा, किन्तु हमारा निश्चय का एकान्त नहीं है। दूसरों के दुःख दूर करने का विचार करुणावश होता है। धर्म पर अविचल श्रद्धा धारण करो । स्वाध्याय करो। यह स्वाध्याय परम तप है। शास्त्र के अभ्यास से आत्मा का कल्याण होता है। गरीब लोग शास्त्र नहीं खरीद सकते। उनको शास्त्र का दान करो। शास्त्रदान में महान पुण्य है। जिनेन्द्र भगवान की वाणी के द्वारा सम्यग्दर्शन का लाभ होता है। 6 जुलाई-अगस्त 2001 जिनभाषित Jain Education International आत्मा का चिंतन करो। आत्मचिंतन | द्वारा सम्यग्दर्शन होता है । सम्यक्त्व होने पर दर्शनमोह का अभाव होते हुए भी चरित्र मोहनीय कर्म बैठा रहता है। उसका क्षय करने के लिये संयम को धारण करना आवश्यक है। संयम से चारित्रमोहनीय कर्म नष्ट होगा। इस प्रकार सम्पूर्ण मोह के क्षय होने से अर्हन्तस्वरूप की प्राप्ति होती है। अरे! क्या देखते हो? व्रत पालोगे, तो स्वर्ग में तुम हमारे साथी रहोगे। वहाँ भी वर्षायोग प्रतिष्ठापन मिलते रहोगे। हमें वहाँ अच्छा साथी चाहिए। देखो, अभी हम तुमको आग्रह करते हैं। स्मरण रखो, आगे फिर शान्तिसागर तुमको कहने नहीं आनेवाला है। स्वर्ग में जाकर वहाँ से विदेह में पहुँचकर सीमंधर स्वामी के प्रत्यक्ष दर्शन कर सकोगे। उनकी दिव्य ध्वनि सुन सकोगे। नंदीश्वर आदि के अकृत्रिम जिनबिम्बों के दर्शन कर सकोगे। इससे तुमको सम्यक्त्व मिल जाएगा। वहाँ से विदेह में उत्पन्न होकर मोक्ष जा सकोगे। सोचो। एक बार फिर से सोचो । संयम धारण करो । आचार्य श्री विद्यासागर जी जबलपुर, 5 जुलाई। तिलवारा स्थित दयोदय जीव संरक्षण एवं प्रायवरण केन्द्र गोशाला में आज उत्सव सा माहौल था। हर श्रद्धालु का चेहरा खिला-खिला नजर आ रहा था। मंत्रों के स्वर हवा में घुल रहे थे। खचाखच भीड़ में हर निगाह मंचासीन आचार्य विद्यासागर जी व मुनिसंघ को निहार रही थी यहाँ आज आचार्यश्री ने अपने संघ सहित वर्षांवास योग (चातुर्मास ) धारण किया। चातुर्मास प्रारंभ होने के पूर्व महाराज श्री के सान्निध्य में प्रातः 9 बजे गोशाला में जिनालय की स्थापना हुई कलश स्थापना का सौभाग्य इंदौर निवासी अर्पित कुमार, निर्मल पाटोदी को प्राप्त हुआ। स्वास्थ्य कलश राजेश जैन, जीव रक्षा कलश कुमार कमलेश जैन कक्का ने स्थापित किया। इसी क्रम में कैलाश चन्द्र जैन चावल ने आचार्यश्री को शास्त्र प्रदान किए। उदयचंद वीरेन्द्र कुमार एवं सुंदरलाल जैन ने आचार्य ज्ञानसागर जी एवं कुंडलपुर के बड़े बाबा के चित्र का अनावरण किया। दीप प्रज्वलन महेन्द्र कुमार, अरविन्द कुमार, राजकुमार एवं अशोक कुमार जैन द्वारा किया गया। आरती कमल अग्रवाल एवं अरुणा अग्रवाल के संयोजन में हुई । आचार्यश्री के पिसनहारी मढ़िया से दयोदय गोशाला पहुँचने के पूर्व ही यहाँ भक्तों का जमावड़ा लग गया। चातुर्मास स्थापना के बाद आचार्यश्री ने अपने उद्बोधन में कहा कि जहाँ अहिंसा नहीं है वह तीर्थ हो ही नहीं सकता। उन्होंने कहा कि दया मनुष्य का आभूषण है और मोह दया के लिए व्यवधान है। मोह से बचने के साथ धर्मकार्यों में मुक्तहस्त से दान करना चाहिए। उन्होंने दयोदय गशाला को पशुसेवा के लिये एक माध्यम निरूपित करते हुए सभी से प्राणियों पर दया करने का आग्रह किया। आचार्यश्री ने कहा कि नर्मदा के पावन तट पर बनी यह गोशाला भी सेवाभाव से पवित्र हो जाएगी। आचार्यश्री ने कहा कि मैं भेड़ाघाट से सीधे चातुर्मास हेतु दयोदय गोशाला आ सकता था लेकिन पिसनहारी की मढ़िया में इसलिये रुका कि क्षेत्रपाल संतुष्ट हो जाएँ। आचार्यश्री ने मध्यप्रदेश शासन द्वारा जैन संप्रदाय को अल्पसंख्यक घोषित करने की पहल पर पात्रजनों से उसका समुचित लाभ लेने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि विशेषकर शिक्षा के क्षेत्र में इस सुविधा का सदुपयोग होना चाहिए। स्वजिल सपन जैन, बाकल For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524254
Book TitleJinabhashita 2001 07 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2001
Total Pages48
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size5 MB
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