________________
तीर्थक्षेत्र-परिचय
श्री शान्तिनाथ दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र 'सुदर्शनोदय'
आँवा (राजस्थान)
अशोक धानोत्या
राजस्थान के नागर चाल क्षेत्र के टोंक | अनुमान है कि भोजन व्यवस्था में 750 मन यह क्षेत्र जयपुर-कोटा राष्ट्रीय राजमार्ग जिले में अरावली पर्वत श्रृंखलाओं से घिरे लाल मिर्च का उपयोग हुआ। प्रतिष्ठा में एक | नं. 12 पर सरोली मोड़ से वाया दूनी दक्षिण अति रमणीय प्राकृतिक छटा बिखेरते हुए चमत्कार और हुआ दर्शनार्थियों की अपार | पश्चिम में 12 किलोमीटर पक्के सड़क मार्ग पर्वत श्रृंखला की तलहटी में अपनी भव्यता भीड़ थी। जितना घी एकत्रित किया गया था | से जुड़ा हुआ है। यहाँ से वीरोदय सांगानेर एवं ऐतिहासिकता को संजोये हुए 'श्री वह समाप्त हो गया तब प्रतिष्ठा कारक एवं 150 कि.मी., ज्ञानोदय नारेली अजमेर शान्तिनाथ दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र प्रतिष्ठाचार्य दोनों की प्रतिष्ठा दांव पर लगने | 150 कि.मी. कोटा 150 कि.मी. केशवराय 'सुदर्शनोदय' विद्यमान है। इस क्षेत्र पर लगी तो कुएँ में से पानी की जगह घी निकल पाटन 100 कि.मी. चाँद खेड़ी 250 भूगर्भ में विराजमान देवाधिदेव भगवान आया। कार्यक्रम समाप्ति पर उतना ही शुद्ध किमी., भव्योदय रैवासा सीकर 25C शान्तिनाथ की सातिशय श्वेतपाषाण की घी तोल कर वापिस कुएँ में डाला गया। इसे कि.मी. दूरी पर स्थित है। 48x42 इंच आकार की पद्मासन प्रतिमा देखकर चारों तरफ जैन धर्म की जय-जयकार नगर के पश्चिम में सुरम्य एवं मनोहारी समस्त विश्व को मानव मैत्री एवं करुणा का होने लगी।
अरावली पहाड़ी श्रृंखलाओं के मध्य एक सहज सन्देश देते हुए मनमोहक लगती है। हमारे सातिशय पुण्य के योग से वर्षों विशाल पन्द्रहवीं शताब्दी की अतिप्राचीन पदमासन स्थिति में इतनी विशाल प्रतिमा के की आराधना, प्रार्थना से सन्तशिरोमणि | जीर्ण-शीर्ण नसिया है जो प्रायः खण्डहर हो सहज ही दर्शन नहीं होते। शान्तिनाथ कामदेव चतुर्थकालीन साधुपरम्परा के आचार्य 108 चुकी है। यह नसिया अतीत में साधु सन्तो भी थे इसलिए इस प्रतिमा की छबि भी | श्री विद्यासागर जी महाराज के परम शिष्य की तपस्या स्थली रही है। नयनाभिराम है प्रतिमा के सभी अंग प्रत्यंग वास्तुविज्ञानी, तीर्थक्षेत्र जीर्णोद्धारक, ज्ञान इस क्षेत्र को एक गौरवमयी अखिल सर्वांग सुन्दर है।
ध्यान, तप में लीन आध्यात्मिक संत मुनि भारतीय स्तर का तीर्थ बनाने हेतु विशाल 11 आंवा में मूर्ति प्रतिष्ठा संवत् 1593 पुंगव 108 श्री सुधासागर जी महाराज एवं फुट उत्तुंग पद्यासन श्री शान्तिनाथ भगवान, में प्रतिष्ठा-शिरोमणि कालूराम छाबड़ा उनके क्षुल्लक 105 श्री गम्भीरसागरजी, क्षुल्लक 7 फुट उतंग पद्मासन सहस्रफणी (1008 पुत्र रणमल्ल, तेजमल्ल, रणमल्ल के पुत्र 105 श्री धैर्यसागर जी एवं ब्रह्मचारी संजय फण) पार्श्वनाथ भगवान एवं 7 फुट उतंग वेणीराम छाबड़ा एवं परिवार द्वारा करवाई भैया के पावन चरण इस क्षेत्र पर पड़े। दिनांक पद्मासन जटावाले आदिनाथ भगवान तथा गई। उन्होंने उस समय सवा लाख रुपया खर्च 7 मार्च से 22 मार्च 2000 तक यह संघ त्रिकाल चौबीसी (भूत, भविष्य, वर्तमान) किया जो आज तो करोड़ों से भी ज्यादा है। | इस क्षेत्र पर विराजमान रहा।
जिन बिम्ब, मानस्तम्भ धर्मशाला (विद्यासाआंवा के शासक सूर्यसेन थे जिन्होंने दिल पूरे संघ को इस क्षेत्र एवं प्रतिमा के गर त्यागी आश्रम) सिंह द्वार आदि योजनाओं खोलकर प्रतिष्ठा को सफल बनाने में पूर्ण दर्शन से अलौकिक आनन्द की अनुभूति हुई। | का महाराज श्री ने आशीर्वाद एवं प्रेरणा दी। सहयोग दिया एवं स्वयं ने भी जैन धर्म | इस प्रतिमा के अतिशय को देखते हुए पूज्य उक्त योजनाओं को क्रियान्वित करने के लिये स्वीकार कर लिया जिससे सर्वत्र जैनधर्म की महाराज जी ने इस क्षेत्र का नाम 'श्री दानवीर श्रेष्ठियों का उत्साह उमड़ पड़ा प्रभावना हुई।
शान्तिनाथ दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र | जिन्होंने अपनी शक्ति अनुसार धनराशि की प्रतिष्ठाचार्य धर्मचन्द्र भट्टारक ने प्रतिष्ठा 'सुदर्शनोदय' आंवा घोषित किया। उन्होंने | घोषणाएँ कर पुण्यार्जन किया। के समय अपने पूर्वज भट्टारकों की निषीधि- इस क्षेत्र के विकास के लिये स्थानीय समाज 'सुदर्शनोदय' आंवा का जैन समाज काएँ नगर से 1 किलोमीटर दूर सुरम्य को प्रेरणा दी।
समस्त दिगम्बर जैन समाज से निवेदन पहाड़ियों में खड़ी करवाकर बड़ा ही ऐतिहा- नगर के हृदय स्थल, मुख्य बाजार के करता है कि इस पवित्र ऐतिहासिक क्षेत्र के सिक कार्य किया जिसकी स्मृति हजारों वर्षों केन्द्र में दो भव्य और विशाल प्राचीन जैन विकास हेतु अधिक से अधिक आर्थिक तक बनी रहेगी। प्रतिष्ठा के समय अनेक मंदिर हैं जिनमें 12वीं शताब्दी की प्रतिमा सहयोग देने व दिलवाने में अपना महत्त्वपूर्ण चमत्कारिक कार्य स्वतः ही सम्पन्न हुए। विस्तीर्ण चैत्यालय, विशाल प्रांगण, बरामदे, सहयोग कर पुण्य लाभ अर्जित करें। यह प्रतिष्ठाचार्य के पद पर मण्डलाचार्य धर्म भव्य द्वार, और विशाल शिखर सुशोभित हैं। संस्था पंजीकृत है और दिगम्बर मूल कुन्दचन्द्रजी पधारे। वे अपनी साधना के बल पर शान्तिनाथ दिगम्बर जैन मंदिर का प्रबंध कुन्द आम्नाय अनुसार संचालित है। ही बिना चले दिल्ली से आंवा तक पहुंचे। यह बघेरवाल समाज करता है और पार्श्वनाथ
प्रचार मंत्री, पंच कल्याणक प्रतिष्ठा पूरे एक सप्ताह तक दिगम्बर जैन मंदिर का प्रबंध अग्रवाल एवं श्री शान्तिनाथ दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र चली जिसमें भाग लेने वालों की संख्या का खण्डेलवाल समाज।
सुदर्शनोदय, आँवा (टोंक) राजस्थान
38 जुलाई-अगस्त 2001 जिनभाषित -
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org