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एकजुटता की आवश्यकता
डॉ. श्रेयांसकुमार जैन
आज की आवश्यकता समाज को | जाते हैं।
महाकवि माघ भी कहते हैंएकसूत्र में बाँधने की है। एकसूत्र में बँधे बिना | उक्त कथन से शिक्षा लेना आवश्यक बृहत्सहायः कार्यान्तं क्षोदीयानपि गच्छति। समाज का बिखराव हो रहा है। साधु संस्था | है कि यदि दिगम्बर जैन समाज छोटे-छोटे सम्भूयाभ्भोधिमभ्येति महानद्या इवापगा। अलग-अलग पंथ और पक्ष को पुष्ट कर रही | निजी स्वार्थों को तिलाञ्जलि देकर एक नहीं अर्थात् जिस प्रकार साधारण नदी है। श्रावकों में तो विभिन्न घटक बनते ही जा | होता है, तो वह राष्ट्रीय स्तर के कार्यों को महानदी के सहयोग (मेल) से समुद्र में रहे हैं। विद्वान् परस्पर के विरोधभाव से बँटते करने/कराने में सक्षम नहीं हो सकता। वर्तमान प्रविष्ट हो जाती है उसी प्रकार साधारण मनुष्य जा रहे हैं। यह अलगाव और स्वार्थ की प्रवृत्ति में समाज को राष्ट्रस्तर पर अपनी प्रतिष्ठा को भी महापुरुषों की सहायता को प्राप्त होकर धर्म और समाज दोनों की बहुत बड़ी क्षति प्रतिष्ठित करना है। राजनीतिक, धार्मिक और कर्यसिद्धि कर लेता है। का कारण है। कोई ऐसा संगठन बने जो सभी | आर्थिक जगत् में विशिष्टता प्राप्त करने के सम्पूर्ण सामाजिक संस्थाएँ विद्वत्को जोड़ने का कर्य करे।
लिये सबसे बड़ी आवश्यकता परस्पर | संस्थाएँ, शैक्षिक संस्थाएँ, धार्मिक संस्थाएँ, भगवान महावीर के अनुयायी यदि एक
| भगवान् महावीर के पञ्चशील : अहिंसा, धारा में नहीं हुए तो भगवान महावीर का मध्यवर्गीय लोगों से जुड़कर चले। विद्वानों के सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह 2600 वाँ जन्मोत्सव मनाने का क्या साथ विचार-विमर्श करके निर्णय लिए जायें। सिद्धांतों को घर-घर में पहुँचाने का ही उद्देश्य परिणाम है? हम सभी को यह प्रयास करना प्रत्येक व्यक्ति के प्रति समानता और सम्मान लेकर कार्य करें तो निश्चित ही सफलता चाहिए कि अन्तर्विरोधों का अन्त हो, ताकि की दृष्टि रखी जाए तो समाज का विकास ही मिलेगी, भगवान महावीर का 2600वाँ छोटे-छोटे स्वार्थों के वशीभूत होकर संस्कृति नहीं होगा, अपितु समाज संस्कारसम्पन्न भी जन्मोत्सव मनाना पूर्ण सार्थक होगा। और समाज का जबरदस्त नुकसान न हो होगा। सहयोग की भावना से होने वाले कार्य 24/32, गांधी रोड, बड़ौत-250611 सके।
सभी को इष्ट होते हैं और सकलार्थसिद्धि संगठित होकर जो भी कार्य किया दायक होते हैं।
अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जायेगा, उसका विशेष महत्त्व होगा, उसके सहयोग की अपेक्षा तो सभी को होगी,
| जैन विद्वत्परिषद् स्वर्णजयन्ती परिणाम दूरगामी होंगे। समाज और संस्कृति | क्योंकि भगवान महावीर का धर्म प्राणीमात्र का का उत्कर्ष होगा। राजनीतिक क्षेत्र में सफलता धर्म है, वही अहिंसा धर्म है, उसी की
वर्ष समापन समारोह एवं तो मिलेगी ही धार्मिक और सामाजिक क्षेत्र छत्रछाया में प्रत्येक प्राणी सुखी हो सकता है। राष्ट्रीय विद्वत्संगोष्ठी में भी विशेष गौरव की वृद्धि होगी। यह जब जैनधर्म में प्रत्येक प्राणी के कल्याण की अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन वास्तविकता है कि संगठन के बिना भावना की मान्यता है तो क्या दिगम्बर विद्वत्परिषद् स्वर्ण जयंती वर्ष समापन सामाजिक शक्तियाँ विशृंखलित हुई हैं और जैनधर्मानुयायी भी परस्पर में एक नहीं हो समारोह के अंतर्गत 155 विद्वानों की होंगी। बिखरी हुई सूर्य की रश्मियाँ किसी काँच सकते? यह वर्ष भगवान् महावीर के उपस्थिति में विद्वत्परिषद् का 21 वाँ साधारण विशेष में केन्द्रित हो जाने से अपने नीचे रखी सिद्धान्तों के प्रचार-प्रसार का है। इसमें सभा का अधिवेशन एवं '20वीं शताब्दी की हुई रुई आदि को अग्निरूप में प्रज्वलित भगवान् महावीर के द्वारा प्रदत्त शिक्षाओं को दिगम्बर जैन विद्वत्परम्परा का अवदान' कराने में सहायक हो जाती हैं। इसके विपरीत जीवन में उतारकर समस्त विरोधभावों को विषय पर आयोजित समारोह 15-17 जून असंगठित छोटे से शक्तिहीन तिनके को पक्षी छोड़कर या गौणकर अनेकान्त, अपरिग्रह 2001 तक सराकोद्धारक परम पूज्य उपाअपने कोमल चञ्चुपुट से भी तोड़ डालता है। और अहिंसा के सिद्धान्तों का भरपूर प्रचार ध्याय 108 श्री ज्ञानसागर जी महाराज, पूज्य यदि वे ही तिनके संगठित हो जाते हैं, तो करना ही एकमात्र उद्देश्य बनाया जाए। घर- 108 श्री मुनि वैराग्यसागर जी महाराज एवं उनसे हाथी को भी बाँध लिया जाता है, जैसा घर में महावीर की वाणी को पहुँचाया जाए पूज्य 105 क्षुल्लक सम्यक्त्वसागर जी कि नीतिकार का भी कहना है
और जीवमात्र के उद्धार के कार्यक्रमों को महाराज संघस्थ आदरणीय ब्र. अनिता दीदी अल्पानामपि वस्तूनां संहतिः कार्यसाधिका। आयोजित कराया जाए। यह सब निर्ग्रन्थ | एवं विदुषी ब्र. मंजुला दीदी के ससंघ तृणैर्गुणत्वमापन्नध्यन्ते मत्तदन्तिनः।। दिगम्बर वीतरागी महावीर के उपासकों की सान्निध्य में श्री दिगम्बर जैन प्राचीन पार्श्वनाथ
अर्थात् छोटी-छोटी वस्तुओं की एकता- एकजुटता और परस्पर के सहयोग के बिना अतिशय क्षेत्र बडागाँव (खेकड़ा) वागपत कार्यसिद्धि में समर्थ होती है, क्योंकि संगठित | संभव नहीं है। सहयोग से दुर्लभ और असंभव (उ.प्र.) में अपार जनसमूह की उपस्थिति में रस्सीरूप तृणों के द्वारा मन्दोन्मत्त हाथी बाँधे | कार्य सुलभ और संभव बन जाते हैं जैसा कि | सम्पन्न हुआ। 26 जुलाई-अगस्त 2001 जिनभाषित
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