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________________ - सँवारेंगे। खुली आयात नीति को बढ़ावा दिया है। | का उद्योग देश में हिंसा ही फैलायगा अहिंसा पूरे विश्व में इन असहाय, बेजुबान | बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा भारत में 'नानवेज | नहीं' शायद सरकार की समझ में आ सके। जीवों पर संकट मँडरा रहा है। अभी अधिक रेस्टोरेंट' खोलने से हमारे यहाँ भी अनेक गोशाला के माध्यम से भी हम गायों दिन नहीं हुए जब ब्रिटेन में लाखों गायों को | प्रकार के खतरे मँडराने लगे हैं। यहाँ तक कि का संरक्षण कर सकते हैं। आचार्यश्री पागल बताकर मौत के घाट उतार दिया गया | विदेशी कसाईघरों का अवशिष्ट भी यहाँ आ विद्यासागर जी के मार्गदर्शन एवं आशीर्वाद था। बाद में परीक्षण से पता चला कि | रहा है। हमारे यहाँ भी पशुओं के रोगग्रस्त होने से जगह-जगह गोशालाएँ स्थापित हो रही हैं। शाकाहारी गाय को उसकी ही प्रजाति का मांस | की संभावना है। अभी समाचार पत्रों में स्थानीय स्तर पर भी हम सभी के प्रयासों से चारे में मिलाकर खिलाया गया, जिससे वह राजस्थान, हरियाणा आदि में मुँह और खुर यह सफलता प्राप्त हो सकती है। हाल ही में संक्रामक हो गयी। सच पूछो तो पागल गाय | की बीमारी से ग्रस्त पशु पाये गये। विदेशी राजस्थान के अकालग्रस्त क्षेत्र से साधु वर्ग नहीं वरन् वे मांस उद्योगी हैं जिन्होंने अधिक | दूध भी बाजार में आने को तैयार है। के आशीर्वाद से बहुत सा पशुधन बचाया जा से अधिक मुनाफा कमाने की होड़ में गाय को । अतः आज के परिप्रेक्ष्य में आवश्यक सका है। समाचार पत्रों में हम समाचार पढ़ते ही विकृत कर दिया। अभी हाल में | है कि हम जागरूक बनें। जैन ही नहीं, वरन् ही रहते हैं। सच भी है, यदि हम प्रयास करें अफगानिस्तान में तालिबान आतंकवादियों ने सभी शाकाहारी समुदाय के लोग मिलकर तो क्या कुछ संभव नहीं है। अपनी अनोखी जिद पूरी करने के लिये सौ अपनी आवाज बुलंद कर संसद तक पहुंचायें। गायों की अकारण बलि चढ़ा दी। यूरोप और अधिकांश जन प्रतिनिधि शाकाहारी हैं। यदि आइए, 2600वें महावीर जन्म जयन्ती अमेरिका में फैली मुँह और खुर की बीमारी हम सब दबाव बनायें तो सरकार को अपनी | के पुनीत पर्व पर, जो कि 'अहिंसा वर्ष' के से ग्रस्त पशुओं को खत्म किया जा रहा है। मांस निर्यात एवं पशुवधसंबंधी नीति के बारे | रूप में मनाया जा रहा है, हम संकल्प लें कि बीमारी की आशंका मात्र से ही लाखों पशुओं में सोचना ही पड़ेगा। सभी शाकाहारी मिलकर हम प्राणी मात्र के प्रति दया भाव रखते हुए का वध किया जा रहा है। इससे लगता है कि एक ऐसा जन आंदोलन चलायें कि एक आम | उनके संरक्षण के लिये कुछ भी कर-गुजरने मनुष्य अपने स्वार्थ के लिए कुछ भी कर | आदमी भी शाकाहार के संबंध में जान सके | के लिये तैयार रहेंगे। सकता है। और सरकार भी इससे प्रभावित हो। आचार्य 6, शिक्षक आवास, जैन डिग्री कालेज, भूमंडलीकरण और विश्वव्यापार ने | श्री विद्यासागर जी का यह कथन कि 'हिंसा । खतौली (उ.प्र.) भजन कविवर दौलतराम जय श्री वीर जिनेन्द्र-चन्द्र, शत इन्द्र-वंद्य जगतारं॥ सिद्धारथ-कुल-कमल अमल रवि, भव-भूधर पवि भारं। गुन-मुनि-कोष अदोष मोखपति, विपिन-कषाय तुषारं। मदन-कदन शिव-सदन पद नमित, नित अनमित यति सारं। अर्थ सौ इन्द्रों द्वारा वन्दनीय और जगत को तारने वाले श्री महावीर जिनेन्द्र रूपी चन्द्रमा जयवन्त रहें। वे राजा सिद्धार्थ के कुलरूपी स्वच्छ कमल के लिये सूर्य हैं, संसाररूपी पर्वत के लिये मजबूत वज्र हैं, गुणरूपी मणियों के भण्डार है, निर्दोष मोक्ष के स्वामी हैं और कषायरूपी जंगल के लिये बर्फ के समान हैं। वे कामदेव को नष्ट करने वाले हैं और कल्याण के घर हैं। उनके चरणों में नित्य अगणित श्रेष्ठ यति नमस्कार करते हैं। वे अनन्त लक्ष्मी के पति हैं, मृत्यु का अन्त करने वाले हैं और प्राणिमात्र के हितकारी हैं। उन्होंने चन्दना के बन्धनों को काटा है और मेंढक के पापों को तुरन्त नष्ट किया है। रुद्र द्वारा किये गये महाभयंकर उपद्रवरूपी पवन के समक्ष वे श्रेष्ठ पर्वतराज हैं। कविवर दौलतराम कहते हैं कि हे जगत-शिरोमणि महावीर जिनेन्द्र! आपके सुगुण अनन्त और आचिन्त्य हैं। उन्हें कहने में कौन पार पा सकता है? मैं आपके चरणों में हाथ जोड़कर मस्तक झुकाता हूँ। प्रस्तुति : शुद्धात्म प्रकाश जैन रमा-अनन्त-कन्त अन्तक-कृत-अन्त जन्तु-हितकारं॥ फन्द चन्दना कन्दन दादुर, दुरित तुरित निर्वार। रुद्ररचित अतिरुद्र उपद्रव, पवन अद्रिपति सारं॥ अन्तातीत अचिन्त्य सुगुन तुम, कहत लहत को पारं। हे जगमौल! 'दौल' तेरे क्रम, नमें शीश कर धार।। dem जुलाई-अगस्त 2001 जिनभाषित 23 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524254
Book TitleJinabhashita 2001 07 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2001
Total Pages48
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size5 MB
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