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________________ बढ़ता गोवध और प्रदूषित होता दूध डॉ. श्रीमती ज्योति जैन अलि भारतीय संस्कृति 'जियो तत्त्वों से युक्त बताया है पर और जीने दो' के मूलमंत्र पर अधिकांश जनप्रतिनिधि शाकाहारी हैं। यदि हम | विडम्बना यह है कि दूध की नदियाँ आधारित है। प्रकृति का अपने आप सब दबाव बनायें तो सरकार को अपनी पशुवध एवं बहाने वाले हमारे देश का दूध ही ही एक संतुलन है। संतों-महापुरुषों मांसनिर्यात संबंधी नीति के बारे में सोचना ही पड़ेगा। प्रदूषित हो गया है। ग्रामीण क्षेत्रों में ने इस संतुलन को धर्म का ही एक सभी शाकाहारी मिलकर एक ऐसा जनआन्दोलन दूध विक्रेता गंदा पानी मिलाते देखे रूप माना है। 'गाय' हमारी चलायें कि आम आदमी भी शाकाहार के सम्बन्ध में गये हैं, यह दूध अनेक संक्रामक सामाजिक/धार्मिक/ आर्थिक रोगों को जन्म देता है। व्यापारी भी जान सके और सरकार भी इससे प्रभावित हो। आचार्य व्यवस्था का केन्द्र बिन्दु रही है। दूध को अधिक समय तक संरक्षित प्रारंभ से ही हमारी संस्कृति में घर श्री विद्यासागर जी का यह कथन कि 'हिंसा का उद्योग रखने के लिये यूरिया कास्टिक, में गाय का होना सम्पन्नता का देश में हिंसा ही फैलायेगा अहिंसा नहीं' शायद सरकार रीठा-पाउडर, पैराफिन आदि रसाप्रतीक माना गय है। घरेलू पशु की समझ में आ सके। यनों का प्रयोग करने लगे हैं। इससे परिवार का ही एक हिस्सा होते थे भी आगे बढ़कर अधिक से अधिक और इनके पालन-पोषण की जिम्मेवारी | विदेशी मुद्रा का लालच रोज लाखों पशुओं | धन कमाने की होड़ में कृत्रिम दूध भी बनाने परिवार में ही निहित थी। वर्षों तक विदेशियों | को मौत के घाट उतार रहा है और हमारी | लगे हैं। यूरिया, डिटर्जेन्ट, सफेद कैस्टर के आक्रमण एवं लम्बे समय तक गुलाम रहने अमूल्य पशु-सम्पदा को विनाश के कगार पर आयल, तरल ग्लूकोन, हाइड्रोजन ऑक्साके बाद अनेक सामाजिक, आर्थिक, राजनै- ले जा रहा है। कल्पना भी नहीं की गयी थी इड, फार्मोलिन आदि रसायनों को मिलाकर तिक परिवर्तन हुए पर गाय की महिमा कि 21वीं सदी आते-आते सभ्य समाज कृत्रिम दूध बनाया जा रहा है जो देखने तथा यथावत रही। इतना हिंसक हो जायेगा जितना कि वह अपनी स्वाद में सामान्य दूध-जैसा ही है पर यह अंग्रेजों द्वारा गो-मांसभक्षण को बढ़ावा असभ्य अवस्था में भी नहीं था। भगवान विषैला दूध स्वास्थ्य के लिये अत्यंत घातक देने के कारण गो-भक्तों को ठेस पहुंची थी, | महावीर, महात्मा गाँधी जैसे अहिंसावादी | है। इससे जिगर, आंत तथा गुर्दो को क्षति सामान्य जन की भावनाएं आहत हुईं। चिंतकों का देश अपनी समृद्धशाली परम्परा पहुँचती है। दूध में घातक रसायनों की इतिहास गवाह है, हमारे प्रथम स्वाधीनता को चूरचूर होते देख रहा है। मांसाहारियों के मिलावट एवं सिंथेटिक दूध ने दूध को तो आंदोलन 1857 का एक कारण गाय की नाम पर, प्रयोगशालाओं के नाम पर और न प्रदूषित किया ही, हमारे मानवीय नैतिक चर्बी से निर्मित कारतूस थे। अंग्रेजों ने जब जाने किस-किस के लिये जीवों का निरन्तर मूल्यों के सभी मानदण्ड तोड़ दिये हैं जो हमारे गो-वध को बढ़ावा दिया तो पूरा राष्ट्र गो-रक्षा | हनन किया जा रहा है। कृमिकीटों से लेकर सामाजिक एवं राष्ट्रीय चरित्र की गिरावट की के लिये संकल्पबद्ध हो गया था, अनेक लोगों विशालकाय जीव तक मानवीय हिंसा का ओर संकेत है। को अपना बलिदान भी देना पड़ा था तभी शिकार हो रहे हैं। मानवीय नैतिक मूल्यों के पतन की प्रत्येक शहर में गो रक्षा के लिये गोशालाओं ___हमारी पशु-आधारित अर्थव्यवस्था को | पराकाष्ठा सिन्थेटिक दूध तक ही नहीं है, वरन् की नींव पड़ी। महात्मा गाँधी भी गोरक्षा में | तहस-नहस किया जा रहा है। पड़ोसी देशों में गाय-भैंस के बच्चे मर जाने पर इंजेक्शन सदैव आगे रहे। भी पशु सम्पदा समाप्त होने की स्थिति में द्वारा दूध निकाला जा रहा है। पशुओं का दूध स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद हमारे संवि- | है, इसी कारण अवैध रूप से पशुओं की दुहने से पहले उन्हें आक्सोलिटिन एवं धान में भी व्यवस्था की गयी कि जीवों की तस्करी भी हो रही है। भारतीय गायों की पिपिटियुरिन नामक दवाओं का इंजेक्शन रक्षा करना हमारा राष्ट्रीय कर्त्तव्य है। प्रत्येक अनेक नस्लें समाप्त हो गयी हैं, अनेक लगाया जाता है। यह दूध स्वास्थ्य के लिये नागरिक प्रकृति का संरक्षण करे एवं जीवों पर समाप्ति की कगार पर है और अनेक नस्लों गंभीर खतरा है। नियमित इन्जेक्शन से दूध दया रखे। संविधान धारा 51 (ए-जी) में कहा को दूषित कर दिया गया है। प्रकृति का में पशुओं के खून और हड्डियों के तत्त्व आने गया है- प्राकृतिक पर्यावरण की, जिसके संतुलन बिगड़ता जा रहा है, इसी कारण लगते हैं। इंसानी क्रूरता की ऐसी मिसाल कहाँ अंतर्गत वन, झील, नदी, और जीव जन्तु प्रकृति का प्रकोप भी बढ़ता जा रहा है। मिलेगी? प्रदूषित दूध और उससे बने सभी हैं, रक्षा की जायेगी पर अभी अधिक वर्ष नहीं बढ़ते हुए गोवध से दूध जैसे पौष्टिक | पदार्थ गंभीर बीमारियों को जन्म दे रहे हैं। इस हुए संविधान को क्रियान्वित हुए कि हम खाद्य पदार्थ से देश की सामान्य जनता तरह की अनेक बीमारियाँ सामने आ रही हैं स्वतंत्र देश के नागरिक अपने स्वार्थ के लिये वंचित हो रही है। दूध एक पौष्टिक आहार है। कि डाक्टर भी नहीं समझ पा रहे हैं। विचार पशुओं का अंधाधुंध वध करने में लग गये | स्वास्थ्यविशेषज्ञों ने इसे प्रोटीन, कार्बोहाइ- करें! हम लालच के वशीभूत होकर आगे हैं और उनके मांस का निर्यात कर रहे हैं। ड्रेड, कैल्शियम, फॉस्फोरस आदि पोषक | आने वाली पीढ़ी के स्वास्थ्य को कैसे 22 जुलाई-अगस्त 2001 जिनभाषित - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524254
Book TitleJinabhashita 2001 07 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2001
Total Pages48
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size5 MB
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