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लाखों घर बर्बाद हुए इस दहेज की होली में
| टीकमगढ़ में दिये गये प्रवचन का अंश ।
मुनि श्री प्रमाणसागर
आज समाज में दहेज की समस्या । में अग्रिम पंक्ति में बैठते हैं वे जब दहेज की । स्वाभिमान, सम्मान क्या मर चुका है या तुम्हें बहुत विकराल हो गई है जो आज हमारी बात आती है तो लाखों माँगने में नहीं चूकते। | अपने बाजुओं पर दो वक्त की रोटी कमाने संस्कृति के लिये अभिशाप बन गई है। दहेज जैसे लड़के का विवाह नहीं कोई व्यापार हो | का भरोसा नहीं रहा? आज नारी जाति के घट की शुरुआत मध्य युग में हुई, उस समय 12 | गया हो। लड़की के सुन्दर होने का आधार | रहे सम्मान को यदि कोई रोक सकता है तो से 14 वर्ष तक की कन्याओं की शादी होती आज नोट बन गये हैं, नोटों का बण्डल यदि | केवल युवा। क्यों हो रहा है नारी जाति का थी। इससे बड़ी उम्र की कन्या से कोई विवाह भारी है तो कन्याएँ योग्य व सुन्दर हो जाती इतना अवमूल्यन, क्यों आपकी बहिन और नहीं करता था और यदि कन्या की उम्र 15 हैं। आज जैन समाज भी इस पतन के मार्ग बेटियाँ अपमान का घूट पी रही हैं? इसके पीछे वर्ष से ऊपर हो जाती तो ब्रह्महत्या का पाप पर अग्रसर है, बहुत सी ऐसी कन्याएँ हैं जिन्हें | जितना उत्तरदायी पुरुष वर्ग है उससे कहीं कन्या के पिता को लगता था। इस धर्म की शादी के बाद भी दहेज की लिप्सा में मायके ज्यादा महिला वर्ग जिम्मेदार है। मुनिश्री ने आड़ में शीघ्र कन्या का विवाह हो जाये इस (पीहर) छोड़ दिया जाता है। जरा सोचो, | कहा कि स्टोव फटने से बहुएँ जलती सुनी हेतु कन्या के पिता अधिक धन देकर योग्य विचार करो, दुल्हन से बड़ा भी कोई दहेज | गईं पर आज तक ऐसा स्टोव नहीं बना वर अपनी कन्या के लिये ढूँढने लगे और होता है? कन्या के बलबूते पर तुम्हारे वंश जिससे सास या ननद जली हो। बहुएँ ही क्यों दहेजरूपी दानव ने जन्म ले लिया। आज की अमरबेल बढ़ती है। तुम्हारा नाम चलता जलती हैं, आप ने कभी विचार किया? दहेज रूपी वृक्ष फल-फूल रहा है, पर प्रश्न | है इसलिये कन्यारूपी रत्न से कीमती रत्न | सोचने का विषय है। इसलिये बंधुओं अपनी उठता है इसे कौन सींच रहा है? इसके लिये तुम्हें नहीं मिल सकता। 20 वर्ष तक कन्या कन्या की कुण्डली लड़के से बाद में मिलाना कन्या पक्ष व वरपक्ष दोनों उत्तरदायी हैं। कन्या | की शिक्षा-दीक्षा, पालन-पोषण पर औसतन | पहले सास और ननद से मिल लेना, पटेगी पक्ष योग्य वर की तलाश में नये-नये प्रलोभन चार से पाँच लाख रुपया खर्च आता है, कि नहीं? अन्यथा निर्जीव स्टोव भी घर में देता है। यही कारण है कि गुणवती कन्या को आँखों के झूले और प्यार के आँगन में | पक्षपात करने लगेगा। योग्य वर नहीं मिल पाता। गुणहीन कन्या | पली-पुसी कन्यारूपी हृदय का टुकड़ा आपको मनुष्य पैसे का इतना भूखा हो गया अच्छे वर को वरण कर लेती है। ऐसे बेमेल सौंप दिया जाता है, इससे बड़ा त्याग पृथ्वी है कि जीती-जागती देवी लक्ष्मी-सी मूर्ति को विवाह से जीवन में समरसता नहीं आ पाती, पर दूसरा नहीं है।
भी जलाने से नहीं चूकता। जो लोग ऐसा करते क्योंकि जहाँ परिणय खरीद-बिक्री, ऊँची आदिनाथ भगवान की ब्राह्मी और हैं वे यह सोचे कि तुम्हारी बेटी के साथ ऐसा बोली पर आधारित होते हैं। वहाँ सुख और | सुन्दरी दोनों बेटियों ने प्रण किया कि पूज्य | कार्य किया जाए तो तुम्हारे ऊपर क्या शांति का वृक्ष पुष्पित और पल्लवित हो नहीं | पिता का जो माथा कभी नहीं झुका वो हमारे बीतेगी? कभी विचार किया, वह भी किसी सकता।
कारण भी न झुके, इसलिये आजीवन ब्रह्मचर्य की बहिन है, किसी की बेटी है? व्यक्ति के एक जमाना था जब कन्या जन्म लेती व्रत लेकर वैराग्य धारण कर लिया। दहेज जैसे ऊपर जो धन की दीवानगी छा गई है उस थी तब मातम मनाया जाता था और मध्य भस्मासुर का अंत करने के लिये कन्याओं को पर अंकुश लगना चाहिए। काल के प्रारंभ में कन्या जन्म लेती थी तो दुर्गा बनकर आगे आने की जरूरत है। यदि आज समाज के धनाढ्य व्यक्ति मार दिया जाता था। आज के वैज्ञानिक युग कन्याओं को वर का तो वरण करना चाहिए | गरीब की बेटियों को बहू बनाने का संकल्प में तो भ्रूणपरीक्षण कर कन्याओं को जन्म लेने पर दहेज के भिखारियों का बहिष्कार करना ले लें तो यह संदेश समाज में दहेज रूपी से पहले ही कोख में मार दिया जाता है। अब चाहिए, क्योंकि शादी वर से होती है किसी दानव को नष्ट कर सकता है। बंधुओं ताली तो कन्याओं को जन्म लेने का भी अधिकार । भिखारी से नहीं।
बजाने से काम नहीं चलेगा, दहेज के विरोध नहीं है। यह दहेजरूपी दानव का परिणाम है लाखों घर बर्बाद हुए हैं, के लिये ताल ठोककर आगे आने की जरूरत कि आज आप के घरों की शोभा, कलेजे का इस दहेज की होली में। है। आज आप लोग संकल्प लें कि दहेज के टुकड़ा, आप के आँगन की किलकारी, कन्या सजी-सजाई लाखों दुलहन, अभाव में हमारे समाज की कोई कन्या कुँवारी जब जन्म लेती है तो मातम मनाया जाता बैठ न पायी डोली में।। नहीं रहेगी। तुम मंदिर बनवाते हो, लाखों का है और बेटे के जन्म में खुशी मनायी जाती मुनिश्री ने युवाओं को उद्वेलित करते दान देते हो, जितना पुण्य तुम दान देकर है। किसी के चार-पाँच बेटे क्या हुए कि घर | हुए कहा कि जब प्रत्येक बात आप नहीं मानते प्राप्त करते हो उतना ही पुण्य किसी गरीब में कल्पवृक्ष उग आया, जितना चाहो उसे | तो दहेज के वक्त तुम्हारा कंठ क्यों अवरुद्ध की बेटी की शादी में मदद करने से तुम्हें भुनाओ। मुनिश्री ने कहा कि बड़े-बड़े धर्मात्मा | हो जाता है, तुम्हारी जुबान क्यों लड़खड़ाने | मिलेगा। जो धर्म के कार्यों में आगे रहते हैं, धर्मसभाओं | लगती है, विरोध क्यों नहीं करती, तुम्हारा प्रस्तुति : अखिलेश सतभैया, टीकमगढ़
-जुलाई-अगस्त 2001 जिनभाषित 11
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