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________________ न्यूनतम व्यास आकार वाला वृत्त बनाना होगा। किन्तु उक्त विहित केन्द्र सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय न्यूनतम आकार से कम नहीं होगा। वृत्त के व्यास से दुगने किनारे वाली भूरी बाह्य रेखा वाले वर्ग के भीतर यह वृत होना चाहिए, को अनुरोध पत्र भेजें यथा देश के अहिंसक एवं शाकाहारी वर्ग की दीर्घकाल से की जा रही मांग को दृष्टिगत रखकर केन्द्रीय सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय (स्वास्थ्य विभाग) नई दिल्ली ने भारत का राजपत्रअसाधारण, 4 अप्रैल 2001 में एक अधिसूचना प्रकाशित कराई है। इसमें 'खाद्य अपमिश्रण निवारण अधिनियम, 1955 में चौथा संशोधन किया गया है, जो कि इसके नियम 32 (अ) खण्ड (ख) यह प्रतीक मूल प्रदर्शन पैनल पर विषम पृष्ठभूमि वाले पैकेज से संबंधित है। पर उत्पाद के नाम या ब्रांड नाम के बिलकुल नजदीक में बनाना होगा। इस संशोधन के अनुसार जो कि आगामी 4 अक्टूबर 2001 इसके अतिरिक्त लेबलों, आधानों (कंटेनर्स) पैम्फलेटों, इश्तहारों से प्रवृत्त/प्रभावी होगा, यदि किसी भी खाद्य पदार्थ में एक संघटक (लीफलीट्स) एवं किसी भी प्रकार के प्रचार माध्यम आदि के रूप के रूप में पक्षियों, ताजे जल अथवा समुद्री-जीव-जन्तुओं अथवा होने वाले विज्ञापनों पर भी प्रमुख रूप में से प्रदर्शित करना होगा। अण्डों सहित कोई समग्र जीव-जन्तु अथवा उसका कोई भाग पड़ा इतना ही नहीं, जहाँ किसी खाद्य पदार्थ में केवल अंडा एक हुआ हो, तो एक प्रतीक चिन्हा बनाना होगा, जो कि उत्पादक मांसाहारी संघटक के रूप में अन्तर्विष्ट होगा तो वहां विनिर्माता, के नाम या ब्राण्ड नाम के बिल्कुल नजदीक विषम पृष्ठभूमि वाले पैककर्ता अथवा विक्रेता को उक्त प्रतीक के अलावा इस आशय की पैकेज में भूरे रंग के वृत्त तथा भूरे रंग की बाह्य रेखाओं के बीच बना एक घोषणा भी करना होगी। होगा। उक्त अधिसूचना में उपभोक्ता वर्ग के व्यापक हितों को दृष्टि इस अधिसूचना के हिन्दी भाग एवं अंग्रेजी भाग में परस्पर में रखते हुए एक स्पष्टीकरण IX भी जोड़ा गया है, जिसमें 'मांसाहारी कुछ विसंगतियाँ हैं। यथा- (1) नियम में मांसाहारी खाद्य की परिभाषा खाद्य' को परिभाषित/व्याख्यायित करते हुए कहा गया है कि करते हुए अंग्रेजी भाग में 'किसी अन्य जीव-जन्तुओं के उत्पाद किन्तु "मांसाहारी खाद्य' से एक ऐसा खाद्य पदार्थ अभिप्रेत है जिसमें एक उसमें से दूध और दूध के उत्पाद को छोड़कर' लिखा है, जो कि संघटक के रूप में पक्षियों, ताजा जल अथवा समुद्री जीव-जन्तुओं, हिन्दी भाग में किन्हीं कारणों से छोड़ा/छूट गया है, (2) केवल अण्डे अण्डों अथवा किसी भी जीव-जन्तु के उत्पाद सहित कोई समग्र जीव का प्रयोग होने पर निर्माता, पैककर्ता अथवा विक्रेता को उक्त प्रतीक जन्तु अथवा उसका कोई भाग अन्तर्विष्ट किया गया हो। परन्तु इसके के अलावा एक घोषणा करने का नियम हिन्दी भाग में है तो अंग्रेजी अंतर्गत दूध या दूध से बना हुआ कोई भी उत्पाद शामिल नहीं किया/ भाग में प्रस्तुत भाषा में छूट की गुंजाइश-सी लग रही है, (3) अनुवाद माना जा सकेगा। में भाषा-व्याकरणगत भूलें हैं, (4) हिन्दी भाग में प्रदर्शित प्रतीक खाद्य अपमिश्रण निवारण (चौथा संशोधन) नियम 2000 के चिन्ह को असमान अनुपात में बनाया गया है, तथा (5) ताजा जल प्रारंभ से पूर्व में विनिर्मित और बिना प्रतीक पैक किए गए ऐसे किसी | की परिभाषा/लक्षण भी नहीं दिया गया है। भी मांसाहारी खाद्य के ऊपर उक्त नियम के उपबंध लागू नहीं होंगे। | इन सभी कारणों से उपभोक्ताओं के व्यापक हितों का संरक्षण अतः अहिंसा एवं शाकाहार में आस्था रखने वालों के साथ | होना कठिन होगा, क्योंकि जो व्यक्ति हिन्दी भाषा पर अवलंबित रहेगा ही सामान्य उपभोक्ता वर्ग से भी अपेक्षा है कि आगामी 4 अक्टूबर | उसे उक्त नियम की पूर्ण/उचित जानकारी नहीं हो सकेगी। अतएव 2001 के पश्चात् जो भी खाद्य पदार्थ खरीदें, उसमें कहीं, किसी भी अहिंसा, शाकाहार एवं जीवदया में आस्था रखने वालों से अपेक्षा प्रकार के मांसाहारी सामग्री का सम्मिश्रण तो नहीं हुआ है, यह देखने/ | है कि वे अपने-अपने अनुरोध केन्द्रीय सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय जानने हेतु उक्त प्रतीक चिन्ह को देखकर ही खरीदें। कदाचित् कहीं | को भेजें, ताकि उक्त बिन्दुओं पर 4 अक्टूबर 2001 के पहले सुधार संदेह हो तो सक्षम अधिकारी के पास अपनी शिकायत दर्ज कराएँ। | होकर राजपत्र में संशोधित रूप का पुनः प्रकाशन हो सके। जब से विद्यासागर जी के दर्शन किये मैंने इन जैसा किसी मुनि के मुख से उपदेश, प्रवचन नहीं सुना।एक-एक वाक्य में वैदुष्य झलकता है। अध्यात्मी कुंदकुंद और दार्शनिक समंतभद्र का समन्वय मैंने इन्हीं के प्रवचनों में सुना है। मैं पंच नमस्कार मंत्र का जाप त्रिकाल करता हूँ और णमो लोए सव्व साहूणं जपते समय ये मेरे मानस पटल पर विराजमान रहते हैं। आज के कतिपय साधुओं की विडम्बनाओं को देखकर मेरा यह मन बन गया था कि इस काल में सच्चा दिगम्बर जैन साधु होना संभव नहीं, किन्तु जब से विद्यासागर जी के दर्शन किये हैं, मेरे उक्त मत में परिवर्तन हो गया है। जिनका मत आज के कतिपय साधुओं की स्थिति से खिन्न होकर णमो लोए सव्व साहूणं पद से विरक्त हुआ, उनसे हमारा निवेदन है एक बार आचार्य विद्यासागर जी का सत्संग करें। हमें विश्वास है कि उनकी धारणा में निश्चित परिवर्तन होगा। स्व. पंडित कैलाशचंद्र सिद्धांतशास्त्री वाराणसी (उत्तर प्रदेश) 2 जून 2001 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524253
Book TitleJinabhashita 2001 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2001
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size5 MB
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