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________________ शैक्षणिक लाभ अल्प संख्यक की मान्यता मिलने से जैन समाज को मुख्य लाभ यह है कि जैन समाज द्वारा मान्यता प्राप्त शिक्षण संस्थाओं की स्थापना एवं संचालन का उन्हें पूर्ण अधिकार होगा। परिणमतः हम इन संस्थाओं में अपने समाज के विद्यार्थियों को प्रवेश दे सकेंगे तथा अपने विवेक के आधार पर प्राचार्य/प्रधानाचार्य को नियुक्त कर सकेंगे। अल्पसंख्यक समुदाय द्वारा स्थापित एवं संचालित तथा शासन से सहायता प्राप्त संस्थाओं में अल्प संख्यक समुदाय के 50 प्रतिशत छात्रों को प्रवेश दिया जा सकेगा। परिणामतः इन संस्थाओं का अल्पसंख्यक चरित्र बना रह सकेगा। प्रमुख शर्त यह है कि इन संस्थाओं द्वारा संबंधित विश्वविद्यालय द्वारा स्थापित मानदण्डों की पूर्ति की जाए। इन संस्थाओं में अन्य समुदाय के 50 प्रतिशत छात्रों को योग्यता के आधार पर प्रवेश दिया जा सकेगा। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि राज्य शासन के उच्च शिक्षा विभाग ने अपने ज्ञापन क्र. डी-2839/1152/97/सी-3/38 दिनांक 29.10.97 के द्वारा अल्पसंख्यक समदाय द्वारा स्थापित अशासकीय शैक्षणिक संस्थाओं की निम्नांकित व्याख्या की है "अल्पसंख्यक समुदायों की अशासकीय शैक्षणिक संस्थाओं से तात्पर्य ऐसी संस्थाओं से है जिनका संचालन/प्रबंधन मुख्यतः घोषित अल्पसंख्यक समुदाय के प्रतिनिधियों द्वारा कराया जाता हो और जो मुख्यतः अल्पसंख्यक समुदायों में शिक्षा को प्रोत्साहित करने के लिये चलाई जा रही हों।" जैन समाज के प्रत्येक व्यक्ति की जैन समाज के नेतृत्व से बलवती अपेक्षा है कि अब मध्यप्रदेश में उच्च शिक्षा के ऐसे उत्कृष्टतम केन्द्र स्थापित किये जायँ जहाँ जैन समुदाय एवं प्रदेश एवं समीपस्थ प्रदेशों के सभी समुदायों के प्रतिभाशाली युवक/युवतियाँ चिकित्सा, प्रबंध, व्यवसाय, अभियांत्रिकी, विधि एवं तकनीकी क्षेत्रों में अंतर्राष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय स्तर की शिक्षा प्राप्त कर अपना चतुर्मुखी विकास कर सकें और सम्पूर्ण विश्व की सेवा कर सकें। 30, निशात कालोनी, भोपाल-462003 (म.प्र) 'कथा तीर्थंकरों की' का लोकार्पण रातिमा.मुनि आयोजक कसान दांत शिक्षण आचार्य विद्यासागर जी के प्रभावक शिष्य मुनि श्री | आदि 9 रचनाओं का प्रश्नोत्तरों के साथ दोहानुवाद पूर्व में प्रकाशित समतासागर जी द्वारा लिखित सरल एवं सुबोध पुस्तक 'कथा | हो चुका है। उनके द्वारा रचित ग्रन्थ 'सागर बूंद समाय', 'सर्वोदय तीर्थकरों की' सागर में 9 जून, 2001 को पंडित रतनलाल जी | सार', 'तेरा सो एक', 'स्तुतिनिकुंज', एवं 'श्रावकाचार कथाकुंज' बैनाड़ा, आगरा एवं सुरेश जैन, आई.ए.एस. भोपाल द्वारा | सम्पूर्ण जैन समाज के घर-घर में पढ़े जा रहे है। ‘दशलक्षण लोकार्पित की गई। इस पुस्तक में चौबीस तीर्थंकरों के जीवनचरित्र | सारसंचय', तथा 'पंचकल्याणक प्रतिष्ठा', भी उनकी महत्त्वपूर्ण का संक्षिप्त वर्णन है। मुनिसमता सागर जी ने इस लघु पुस्तिका | कृतियाँ हैं। उनके प्रवचनसंग्रह 'प्रवचन पथ' 'हरियाली हिरदय के माध्यम से आदिपुराण, उत्तरपुराण, हरिवंशपुराण एवं पद्मपुराण | बसी' 'चातुर्मास के चार चरण' पर्युषण के दस दिन' एवं आदि जैन पुराणों का सुस्वादु नवनीत उपलब्ध कराया है। 'अनुप्रेक्षा प्रवचन' प्रत्येक श्रावक के स्वाध्याय कक्ष के महत्त्वपूर्ण समता सागर जी द्वारा लिखित 5 काव्य संग्रह एवं भक्तामर | रत्न हैं। 30 जून 2001 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524253
Book TitleJinabhashita 2001 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2001
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size5 MB
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