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________________ व्यंग्यकथा ___सफेद शेर की नस्ल .शिखरचन्द्र जैन किसी नगर में एक सेठ र सेवा-सुश्रूषा की प्रधानता होती सरकार सफेद शेर की विलुप्त होती प्रजाति को लेकर ] पिरहता था। उसके पास है, वहाँ बुढ़ापे की बीमारी में काफी धन था। बंगले थे, कारें चिन्तित रहती है। उसकी नस्ल को बचाने के लिए काफी धन खर्च इनकी मात्रा कम, धर्म की थी। कारखाने थे, दुकानें थीं। करती है। लेकिन ईमानदारों की विलुप्त होती प्रजाति को बचाने चर्चा अधिक होती है। रोगी को नौकर थे, नौकरानियाँ थीं। | के लिए कुछ नहीं करती। आज की भ्रष्ट राजनीतिक, प्रशासनिक | धार्मिक कथाएँ सुनाना चालू हो गोया वो सभी ताम-झाम थे | और सामाजिक व्यवस्था में ईमानदार रहकर जीना कितना दूभर जाता है। और कुल मिलाकर जो उसे सेठ कहलाने का हो गया है, इस सत्य को अनावृत करती है हृदय को वेध देनेवाली एक ऐसा वातावरण निर्मित अधिकारी बनाते थे। इसके किया जाता है जिससे उसे यह व्यंग्यकथा और कोंचती है समाज के श्रीमन्तों, नेताओं और अलावा उसका एक भरा-पूरा संसार असार नजर आए।अगले परिवार था, पत्नी थी। बेटे थे, प्रबुद्धों को इस बात के लिए कि वे अपनी सम्पत्ति और सामर्थ्य भव से प्रेम बढ़े। परलोक बेटियाँ थीं। दामाद थे, बहुएँ का उपयोग भ्रष्ट होते हुए सार्वजनिक चरित्र को रसातल में जाने सुधरे। थी। गर्ज ये कि सेठ का जीवन से रोकने के लिए करें। कुछ इसी तरह के माहौल सुख, सुविधा वा सम्पन्नता में जब सेठ जी बिस्तर पर से भर-पूर था। | पुनर्निवेश किया और कम से कम में घर का । पड़े-पड़े कराह रहे थे तब पैताने से आवाज यों किसी नगर में एक सेठ का होना खर्च चलाया। जिसे उधार दिया, उससे | आयी- 'दान बोलो, दान।' और उसके पास काफी धन होना, अपने आप सख्ती से वसूल किया और जिससे लिया सेठ का कराहना बंद हो गया। उन्होंने में कोई उल्लेखनीय बात नहीं है। क्योंकि उसका बड़ी ईमानदारी से समय पर भुगतान साश्चर्य तीनों ओर अपनी आँखें घुमाई, फिर प्राचीन काल से ही, सेठों का निवास, बहुधा किया। धीरे-धीरे सेठ की मेहनत रंग लाई। पैसे बोले- क्यों? नगरों में ही होता पाया गया है तथा विपुल धन ने पैसे को खींचा और धनराशि में समुचित ‘ऐसे समय में मोह ममता का त्याग ही राशि का होना सेठ कहलाने हेतु प्राथमिक वृद्धि होने लगी। इस सारी प्रक्रिया में ईमान कल्याणकारी होता है। किसी ने कहा! आवश्यकता मानी जाती रही है। लेकिन जिस दारी ने कब प्राथमिकता अर्जित कर ली, यह 'कैसे समय में?' सेठ ने जिज्ञासा की! सेठ की चर्चा मैं यहाँ कर रहा हूँ, उसके संदर्भ सेठ को खुद भी पता नहीं लगा। लेकिन जो बात सेठ को समझ लेना चाहिए में विशिष्टता यह रही कि उसने सारा का सारा व्यापार के क्षेत्र में सेठ की ईमानदारी एक | थी वो समझ नहीं रहे थे। सच ही कहा है कि धन निहायत ही ईमानदारी से कमाया था। और मिसाल बन गई। सेठ की साख और इज्जत बुढ़ापे में मति मारी जाती है। और साथ में यदि ईमानदारी भी कैसी? ग्वाले के द्वारा घर की तूती बोलने लगी। सेठ को सेठ जी कहा बीमारी हो तो फिर भ्रष्ट ही समझना चाहिए!तिसभिजवाए गए दूध की तरह शुद्ध नहीं, बल्कि जाने लगा! अब इस बात को मद्देनजर रखते पर भी, परिजन, दान वाली बात को भूलने सामने दुही गयी भैंस के दूध की तरह हए आगे मैं भी सेठ को यथोचित आदर पूर्वक नहीं देना चाहते थे। अतः बात को कुछ और खालिस। संबोधित करूँगा। स्पष्ट करते हुए एक ने कहा - 'परलोक की यहाँ, यदि आप आवश्यकता समझें जीवन जब अनुकूल परिस्थियों में सोचिए सेठजी, परलोक की। यह जीवन तो तो थोड़ा विराम ले लें। मैंने जो ऊपर कहा, व्यतीत हो रहा हो, तब समय के गुजरने का भगवत्कृपा से आपका, बड़ा ही सुखमय उस पर विचार कर लें। मनन कर लें। पर यह आभास भी नहीं होता। सेठ जी कब युवा हुए, बीता। निश्चय ही पूर्वोपार्जित पुण्य कर्मों का बात तो मेरी आप मान कर ही चलें कि धन कब उनकी शादी हुई, कब बच्चे हुए, कब प्रतिफल रहा। लेकिन अब अगले जन्म पर भी जो है सो ईमानदारी से भी कमाया जा सकता बच्चों की शादी हुई, कब नाती-पोते हुए कुछ तो ध्यान देना होगा न! दान-पुण्य का, कहते है और निर्धारित टैक्स अदा करने के बावजूद पता ही नहीं लगा कि एक रोज सेठ जी गंभीर हैं, बड़ा प्रताप होता है।' बचाया भी जा सकता है। खास कर उस रूप से बीमार पड़ गए। उन्होंने खटिया पकड़ सेठ जी को कुछ न सूझा तो वो पुनः परिस्थिति में जबकि कई व्यक्ति पागलपन ली। फौरन डाक्टर-वैद्य-हकीम तलब हुए। कराहने लगे। की हद तक ईमानदार बने रहने की ठान ही लें सेठ की जाँच हुई और सभी ने एक स्वर में दान की बात विस्मृत न हो पाये इस और धन बढ़ाने की जल्दी में न हों। घोषित किया कि सेठ वृद्धावस्था को प्राप्त हो उद्देश्य से बातचीत का सूत्र एक अन्य परिजन कहते हैं कि सेठ का बचपन घोर चुके हैं और जिस बीमारी से ग्रसित हैं, उसका तह, उसका ने हथियाते हुए कहा- "वैसे आपने तो सेठ जी विपन्नता में व्यतीत हुआ। अतः जब उसने | नाम है बुढ़ापा। इस जन्म में भी पुण्य ही पुण्य किए हैं। आप धनोपार्जन प्रारम्भ किया तो उसने एक-एक जवानी और बुढ़ापे की बीमारी में फर्क जैसे महापुरुष बिरले ही पैदा होते हैं। फिर भी पैसे को दाँत से पकड़ कर रखा। जो कमाया होता है। उसके इलाज में भी फर्क होता है। परलोक तो परलोक ही होता है। जाने कब उसका ज्यादा से ज्यादा भाग व्यवसाय में | जवाना का बीमारी में जहाँ दवा-दारू और I । में | जवानी का बामारा म जहा दवा-दारू आर | कैसी जरूरत पड़ जाये। दान का महात्म्य सेठ -मई 2001 जिनभाषित 25 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524252
Book TitleJinabhashita 2001 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2001
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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