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________________ नर्मदा के किनारे बसा है। यहाँ पर नर्मदा नदी एक अति प्रसिद्ध अपभ्रंश युगल में होकर बहती है जिसका नाम सोन-नर्मदा-तापी (सोनाटा) है। यहाँ पर यह उत्तरी और दक्षिणी नर्मदा अपभ्रंश के बीच में है। यह क्षेत्र भारत के भूकंपीय नक्शे की तीसरी श्रेणी ("भारतीय मानक संख्या १८९३ के चतुर्थ संस्करण') में आता है। इसमें मध्य तीव्रता वाले भूकंप आते है। उनमें से कुछ का विवरण निम्न प्रकार है: १. दिनांक १७/१०/२००० तीव्रता ५.२ रिक्टर, केन्द्र मेनेरी, जिला मंडला । जबलपुर। बोधकथा २. दिनांक १३/१०/१९९३ तीव्रता ३.७ रिक्टर, केन्द्र जबलपुर। ३. दिनांक १७/५/१९९३ तीव्रता ५० रिक्टर, केन्द्र जबलपुर। ४. दिनांक २७/५/१८४६ तीव्रता ५० रिक्टर, भूकंप के आने की संभावना नहीं है। केन्द्र जबलपुर । ५. दिनांक २२/५/१९९७ तीव्रता ६ रिक्टर, केन्द्र इसके अलावा लगभग आधा दर्जन क्षीण तीव्रता वाले भूकंप जिनकी तीव्रता ३ रिक्टर से कम है, पिछले दो वर्षों में १९९९-२००० में आये हैं। एक समय ब्रह्मचारी मोतीलाल जी वर्णी की ब्रह्मचारी गणेशप्रसादजी वर्णी से भेंट हुई तो ब्र. मोतीलालजी ने धर्मक्षेत्र सोनागिरि की वंदना करने का अपना विचार बताया। ब्र. गणेशप्रसाजी वर्णी की भी भावना उनके साथ उस क्षेत्र की वंदना की हुई। जब उन्होने अपनी धर्ममाता चिरोंजा बाई को अपनी भावना बतायी तो माता जी ने उनकी भावना का समर्थन किया और बोलीं- "मैं भी आप लोगों के साथ उस तीर्थ की वंदना को चलूँगी।" कुण्डलगिरि उत्तरी नर्मदा अपभ्रंश के उत्तर में है, जहां क्षीण तीव्रता वाले कुछएक भूकंप नापे गये हैं। जबलपुर के २/५/१९९७ की भूकंप की जाँच, नुकसान के आधार पर भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण ने की है। उससे यह पता चला है कि कुण्डलपुर पांच (संशोधित मरकली स्केल) की तीव्रता वाले क्षेत्र में आता है। इस क्षेत्र में श्रेणी दो के नुकसान और क्लास वन 'कच्चे-पक्के मकानों में क्षति होती है और यहां भूकंप सभी को महसूस हुए। अतएव यह कहा जा सकता है कि कुण्डलगिरि में नाशवान 30 अप्रैल 2001 जिनभाषित Jain Education International ४. नींव की हालत जैसा कि ऊपर वर्णन किया गया है पुराने माता चिरोंजाबाई की निःस्पृहता और दोनों वर्णी ब्रह्मचारी उदास मुद्रा में हो गये। किन्तु यह सब सुनकर माता चिरोंजा बाई बिलकुल शान्त रहीं वे धैर्यपूर्वक बोली "ओ होना था सो हो गया, इसमें चिन्ता करना व रोना-धोना व्यर्थ हैं।" ऐसा कहकर वह अपने नित्य कार्य में लग गयीं। उनके चेहरे पर चिन्ता की कोई रेखा तो क्या छाया तक नहीं था । तीनों यात्री धर्मक्षेत्र सोनागिरिजी पहुँच गये। मालूम होने पर माता जी की सास व ननद भी वहाँ आ गयीं। तब पांचो यात्रियों ने दो दिन बड़े भक्ति भाव से वंदना, पूजन, जाप व शास्त्र - पठन आदि किया। सबका इरादा एक और वंदना करने का था। इतने में एक आदमी सिमरा गांव से आया, जहाँ माता चिरोंजा बाई का मकान है। वह बोला "माता चिरोंजा बाई के मकान में चोरी हो गयी है। किवाड़ खुले हैं व सामान जहाँ तहाँ बिखरा पड़ा है। कहीं कहीं खोदा भी गया हैं। समाचार 37 सुन माता चिरोंजा बाई की सास व ननद रोने लग आदमी भी तब तक रुका रहा । - फिर वह आदमी बोला "माता जी को पुलिस के दरोगा ने जल्दी बुलाया है जिससे मालूम हो कि क्या क्या सामान चोरी हो गया है। तभी तो चोर व चोरी का पता लगाया जा सकता है।" यह सुनकर शेष चारों कहने लगे कि माता चिरोंजा बाई को सिमरा चले जाना चहिये। लेकिन माता चिरोंजा बाई ने शांत व दृढ स्वर में कहा कि अब मैं पाँच दिन और वहीं वंदना करूँगी जिससे गये धन का मोह व चिन्ता पूरी तह मिट जाये। दोनों वर्णियों ने माताजी के शान्त परिणामों की प्रशंसा की फिर पूर्ववत् सब ही साथी धर्म ध्यानपूर्वक तीर्थ वंदना में पांच दिनों तक व्यस्त रहे । वह 1 | मंदिर में वेदी की वजह से मूर्ति असुरक्षित हो गयी है। इस मूर्ति का स्थानांतरण करने के बाद, किसी भी उपयुक्त तरीके से इस मंदिर की पवित्रता बनाये रखी जा सकती है, जैसे कि चरणमंदिर, छत्र वा किसी अन्य तरीके से। इससे अतिशय क्षेत्र की महत्ता पर कोई आँच नहीं आयेगी, बल्कि अतिशय बढ़ेगा ही जैसा कि श्री महावीर जी और बाड़ा पदमपुरा (जयपुर) में देखा गया है। निष्कर्ष यह कि कुण्डलगिरि में आदि तीर्थंकर ऋषभ देव की मूर्ति सुरक्षित है। उसमें किसी प्रकार की दरार नहीं आयी है, न ही भूकंप की वजह से और न ही किसी नये निर्माण की गतिविधियों से। वरन इस मूर्ति की बेदी में खतरा प्रकट हो रहा है, इसलिए नितांत आवश्यक है कि मूर्ति को अतिशीघ्र सुरक्षित किया जाये। ए-6, हास्पिटल रोड, अशोकनगर सी स्कीम, जयपुर - ३०२००१ " For Private & Personal Use Only नेमीचन्द पटोरिया छठे दिन उस आदमी के साथ माता चिरोंजा बाई सिमरा गयीं। जाते समय बोल गर्यो"मेरे तो परिग्रह परिमाण व्रत है। अब चोरी से बचेगा बस उतना ही धन अब से मेरे परिग्रह-परिमाण व्रत की सीमा में आजीवन रहेगा ।" सिमरा पहुँचकर देखा कि घर पर पुलिस का पहरा है, किवाड़ खुले हैं। कहीं-कहीं खोदा भी गया है। जहाँ सोना व जेवर गड़े रखे थे वह स्थान सुरक्षित है। हाँ, एक जगह दस रुपये के राजाशाही अने रखे थे, वे उन्हें खोदने से मिले। वे शायद निराश हो गये होंगे तो उन राजाशाही अत्रों को कमरे में बिखेर गये तथा चावल, दाल आदि भी कमरे में बिखेर गये, शायद यह समझकर कि जेवर व सोना आदि उनमें छुपा दिया हो। सारांश, एक पैसा भी चोरी नहीं गया। माता जी ने यह माना कि धर्म पर अटूट श्रद्धा व निःस्पृह - भावना का यह पुण्यफल है। वे और भी अधिक दान व साधुसेवा में जुट गयीं और अन्त तक अपनी निःस्पृहभावना व धर्म-भावना से ओत-प्रोत रहीं। www.jainelibrary.org
SR No.524251
Book TitleJinabhashita 2001 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2001
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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