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आश्वासन दिया कि यदि जरूरत हुई तो वे भी | तैयार थे तथा युवा मंडल के १२ बैण्ड फेरी के कुंडलपुर में १०८ दीक्षाओं की उम्मीद थी भारत सरकार को खत लिखेंगे।
लिये क्रमबद्ध खड़े हो गये थे। गजरथ फेरी देखने किन्तु दीक्षा समारोह नहीं हुआ। फिर भी कुंडलपुर राज्यपाल ने पहाड़ पर बने बड़े बाबा के
भारी जन समूह उमड़ पड़ा था। इसे नियंत्रित करना महोत्सव में आने वाले स्वयं को धन्य और मंदिर में पहुंचकर, घर से पहनकर आये अपने कपड़े
मुश्किल हो रहा था। आचार्य श्री तथा मुनि संघ के भाग्यशाली मान रहे हैं जिन्होंने दिगम्बर जैन उतारे तथा धोती,दुपट्टा, पहनकर मंदिर में प्रवेश पहुँचते ही गजरथ फेरी शुरू हुई।
इतिहास के सबसे बड़े महोत्सव को अपनी आंखों किया। उन्होने बड़े बाबा पर चांदी का छत्र चढ़ाया कुंडलपुर में श्री जिन बिम्ब प्रतिष्ठा समारोह
| से देखा। तथा पत्नी सहित बड़े बाबा की भावसहित आरती में देशभर से आई १८० प्रतिमाओं की प्राण प्रतिष्ठा उतारी। भी की गई। आचार्य श्री ने इस प्रतिमाओं को सूर्यमंत्र
आर.जे. हाऊस, १०बी,
प्रोफेसर कॉलोनी, भोपाल दोपहर में जब महामहिम कुंडलपुर से वापस
दिया। पंच कल्याणक में अशोक पाटनी सौधर्म लौटे उस समय तक वहां पांच लाख से अधिक
इंद्र बने तथा लगभग सात सौ जोड़े इंद्र-इंद्राणी
बने थे। लोग पहुंच चुके थे। मुख्य पंडाल में तीन गजरथ
कुण्डलपुर महोत्सव पर विशेष आवरण एवं मुहर जारी
संत शिरोमणी दिगम्बर जैनाचार्य प्रवर | आयरन स्टोर्स, स्टेशन रोड, दमोह, मध्यप्रदेश, | के द्वारा कलशाभिषेक को दर्शाते हुए एक विशेष १०८ श्री विद्यासागर जी महाराज ५१ मुनिराज, | फोन- ०७६०५-२२३९४, २२०४७) की रबर/मुहर (सील) २२ फरवरी २००१ को जारी ११४ आर्यिकाओं, ४ ऐलक महाराज, ८ क्षुल्लक शुभेच्छा से इंदौर फिलेटलिक सोसायटी, इंदौर के की गई है। इस ऐतिहासिक क्षण को स्मृति में संजोने महाराज तथा १ क्षुल्लिका माताजी के सान्निध्य में | निर्देशन में भारतीय डाक विभाग. भोपाल से | का अपूर्व अवसर सभी को प्राप्त हुआ है। २१ वीं शताब्दी में १५०० वर्षों के बाद प्रथम बार अनुमति प्राप्त कर ११ से.मी. गुणा २० से.मी. का
इस विशेष आवरण (लिफाफे) पर तीन 'बड़े बाबा' भगवान ऋषभदेव का विशेष आवरण (कवर) प्रकाशित कराया गया है।
रुपए की टिकिट लगाकर डाक विभाग द्वारा जारी महामस्तकाभिषेक तथा समवशरण जिनालय हेतु
इस विशेष आवरण पर कुण्डलपुर पर्वत | विशेष मुहर (सील) अंकित कराकर इसे महोत्सव पंचकल्याणक प्रतिष्ठा एवं त्रिगजरथ महोत्सव का
तलहटी में स्थित मंदिर समूहों का वर्द्धमान सरोवर | की स्मृति स्वरूप अपने पास सुरक्षित/संरक्षित सफल आयोजन २१ से २६ फरवरी २००१ तक
की जलराशि में प्रतिबिम्बित नयनाभिराम दृश्य किया जा सकता है। अथवा अपने परिचितों,मित्रों आयोजित हुआ था।
मुद्रित है। उसी में ऊपर एक ओर बड़े बाबा-तीर्थंकर | या डाक टिकिट संग्राहकों को प्रेषित करके उसे इस महोत्सव के अवसर पर बड़े बाबा | ऋषभदेव तथा दूसरी ओर छोटे बाबा-आचार्य श्री | संरक्षित/प्रचारित किया-कराया जा सकता है। यह अभिषेक समिति के संयोजक श्री संजय जैन विद्यासागर जी महाराज के सुंदर चित्रों से इस विशेष | विशेष सील युक्त विशेष आवरण (लिफाफा) श्री 'मेक्स'(५०- शिवविलास पैलेस, राजवाड़ा, | आवरण की शोभा स्वभावतः द्विगुणित होकर | दिगम्बर जैन सिद्धक्षेत्र कुण्डलपुर तीर्थक्षेत्र कमेटी, इंदौर, मध्यप्रदेश, फोन-०७३१-५३७५२२, शोभायमान हो रही है।
पोस्ट पटेरा (दमोह) मध्यप्रदेशसे अथवा उक्त दोनों ५३९१६०) तथा श्री दिगम्बर जैन सिद्धक्षेत्र कमेटी इस विशेष आवरण पर भारतीय डाक महानुभावों से संपर्क करके प्राप्त किया जा सकता कुण्डलपुर के अध्यक्ष श्री संतोष सिंघई (सिंघई | विभाग के द्वारा बडे बाबा के बिम्व के ऊपर इन्द्रदय । है।
मदिरेव मोहजनकः कः स्नेहः, केचदस्यवः विषयाः।
का भववल्ली तृष्णा को वैरी नन्वनुद्योगः।। मदिरा के समान मोह को उत्पन्न करने वाला कौन है ? स्नेह। लुटेरे कौन हैं ? विषय । संसाररूपी लता क्या है ? प्रमाद ।
कस्माद्यमिह मरणादन्धादपिको विशिष्यते रागी।
कः शूरो यो ललनालोचनवाण न च व्यथितः।। लोक में भय किससे है?मृत्यु से। अन्धे से भी ज्यादा अन्धा कौन है? रागी। शूर कौन है ? जो सुन्दरियों के नयनवाणों से विचलित नहीं होता।
पातुं कर्णाञ्जलिमिः किममृतमिव बुध्यतेसदुपदेशः।
किं गुरुताया मूलं यदेतदप्रार्थनं नाम । कर्णरूपी अंलियों से अमृत के समान पीने योग्य क्या है? सदुपदेश। बड़प्पन की जड़ क्या है ? याचना न करना।
किं गहनं स्त्रीचरितं, कश्चतुरो यो न खण्डितस्तेन । किं दारिद्र्यमसन्तोष एव, किं लाघवं याञ्चा।। समझ से बाहर क्या है ? स्त्रीचरित । चतुर कौन है ? जो उससे धोखा नहीं खाता। दरिद्रता क्या है? असंतोष । और लघुता क्या है? याचना करना।
राजर्षि अमोघवर्ष
28 अप्रैल 2001 जिनभाषित - Jain Education International
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