SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 20
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हास्य-व्यंग्य नमस्कार-सुख • शिखरचंद्र जैन नमस्कार ! सर्वप्रथम उन्हें जिनकी असीम | लोट-पोट होकर प्रसन्नता प्रगट करने का लोभ तो | उपयुक्त हिन्दी शब्द दूसरा नहीं है। इसके उपयोग अनुकम्पा से इन पंक्तियों ने आपका मुँह देखा। मैं संवरण कर गया लेकिन उस माथे को क्या कहूँ। में न तो 'गुड' के साथ मार्निंग, इविनिंग, डे-नाइट, ऐसा सौभाग्य विरलों का ही होता है। दरअसल, जो गौरवान्वित होकर झटके से ऊँचा उठा और | आई-वाई जैसे प्रत्ययों के यथास्थित-यथासमय लिखे जाने और प्रकाशित होने की महायात्रा के गर्दन को करीब-करीब लचकाते हुए कालर से | याद रखने की चकल्लस है और न ही इसके उच्चारण दौरान किसी भी समय कहीं भी गिर जाने, गुम | नीचे कमीज के दो-तीन बटन तोड़ गया। एड़ी से में किसी वर्जिश की जरूरत। सब मों की एक जाने, रह जाने अथवा अस्वीकृत होकर रद्दी की चोटी तक खुशी विद्युत लहर की तरह झनझना दवा के माफिक इसे सुबह, दोपहर, शाम एक से टोकरी या वापसी वाले लिफाफे की शोभा बढ़ाने | गयी! आते-जाते लोग मुझे देख कर ठिठकने लगे | असर के साथ उपयोग किया जा सकता है। जैसी अनिवार्य विपदाओं को पारकर लक्ष्य तक सहसा लोगों की नजरें मेरे सीने पर कुछ वैसा प्रभाव इसके अलावा नमस्कार में एक ऐसी पहुँच पाना बिना ढेर सारी सद्भावना और सहयोग डालती महसूस हुईं जिसके अंतर्गत महिलायें विशिष्टता है जो अन्यत्र नहीं पायी जाती। नमस्कार के सम्भव नहीं है। अतः जिनका योगदान मुझे इस अनायास ही आंचल संवारने लगती हैं। तत्काल की रचना 'नर' शब्द के 'न' और 'र' अक्षरों के दिशा में उपलब्ध हुआ है उन्हें नमस्कार कर रखना मेरा हाथ सीने पर गया तो मैंने उसे बैलून की तरह बीच निहायत ही खूबसूरती से 'मस्का' लगाने पर मैं अपने हित में समझता हूँ ताकि सनद रहे और फूला हुआ पाया। जरूर खुशी से ही फूला होगा। हुई है। वैसे सम्भावना तो नहीं कि इस संसार में ऐसे वक्त और भी आवें। लेकिन आश्चर्य कि वह सीना जिसे लाख कोशिश मस्का से कोई अपरिचित हो फिर भी अपवादों के दूसरे नम्बर पर मेरे नमस्कार के पात्र हैं आप, के बावजूद भी निर्धारित सीमा तक न फुला पाने लिए मैं बतला दूं कि मस्का शब्द के समानार्थी हैंजो यह पढ़ रहे हैं। रेल, बस या हवाई यात्रा के के कारण मैं पुलिस में भरती न हो सका और मक्खन, नवनीत इत्यादि। इस तरह अभिवादन के दौरान घर में गाव तकिये के सहारे या आफिस में जिसका दुख मरते दम तक ताजा रहेगा, नमस्कार सही प्रयोजन को उजागर करता है। फाइल के अंदर रखे आप मूंगफली छीलने-चबाने के वशीभूत हो इस कदर फूला कि आपे से बाहर होने को था। मेरे जीवन में यह नवीन अनुभव था। से जरा परिष्कृत टाइम पास अपना कर निश्चय ही हो सकता है कि भाषा और व्याकरण की सर्वथा नवीन। वैज्ञानिक शब्दावली में कहूँ तो अपनी महानता का परिचय दे रहे हैं। आप महान हैं रोटी तोड़ने वाले इस विश्लेषण से सहमत न हो। और आगे जब कभी इस लेखक की कोई किताब ध्वनि-शक्ति का बिना किसी माध्यम के यांत्रिक बल्कि न ही होंगे। क्योंकि विद्वान कब दूसरे के मत आपकी नजर में आए तो उसे खरीदकर पुनः अपनी शक्ति में परिवर्तित होने का एकमात्र उदाहरण। से सहमत हुए हैं ? इसी कारण कभी-कभार असहमत हो लेने की मेरी भी आदत है। लेकिन मैं महानता का परिचय दें, इस दृष्टिकोण से आपके बहुधा इस तरह के अप्रत्याशित अनुभव हाथ कंगन को आरसी वाली बात पर अधिक खाते में एक नमस्कार का इनवेस्टमेण्ट मैं लाभप्रद आदमी को महान बनाने में सहायक होते पाए गए विश्वास रखता हूँ। जब मीलों दूर से नमस्कार में समझता हूँ। हैं। जैसा कि 'न्यूटन' वगैरह के साथ हुआ! इस मस्का लगा हुआ नजर आ रहा है तो फिर इस तीसरा और इस सिलसिले में मेरा अंतिम | तथ्य को दृष्टिगत रखते हुए मैने भी अपने अनुभव तथ्य से इन्कार करना कि यहां इसका अर्थ मक्खन नमस्कार अर्पित है उस महामना को जिसने जीवन को केपिटलाइज करने का पूर्ण प्रयत्न किया है। ही है, नादानी होगी। में पहली बार मुझे नमस्कार-सुख से परिचित यदि रजिस्ट्रेशन और गाइड जैसी औपचारिकताओं कराया था। यद्यपि काफी जोर देने पर भी उनका को आवश्यक न समझा जाए तो कहा जा सकता नमस्कार की इस व्याख्या को मानकर चलने नाम मेरे स्मृति-पटल पर नहीं उभर रहा है लेकिन है कि 'मानव जीवन में नमस्कार के भौतिक प्रभाव में एक लाभ और भी है। इसके द्वारा हम नमस्कार वह वाकया दस के पहाड़े की तरह मुझे आज भी 'विषय पर मैंने बाकायदा रिसर्च की है। वर्षों के प्रचलन का समय और परिस्थितियाँ निर्धारित कर सकते हैं। कहते हैं कि प्राचीनकाल में किसी याद है जब इस सत्पुरुष ने बीच बाजार मुझे यूनिवर्सिटी लाइब्रेरी के चक्कर लगाए हैं। मोटी मोटी किताबों के पन्ने पलटे हैं। गोया वह तमाम नमस्कार किया था। इतना ही नहीं बल्कि 'साहब' समय हमारे देश में दूध-दही की नदियाँ बहा करती थीं। यद्यपि पुरातत्त्वी खुदाई में अभी तक इसके जैसे घोर आदर सूचक शब्द से मुझे संबोधित भी नाटक किए हैं जो रिसर्च के दौरान आवश्यक समझे ठोस प्रमाण नहीं मिले हैं पर निराश होने की किया था। कहा था- “नमस्कार जैन साहब!" जाते हैं। और अंततः इस निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ कि आवश्यकता नहीं। अभी तमाम जगहों पर खुदाई अब मैं आपको क्या बतलाऊँ कि इस अप्रत्याशित | अभिवादन के क्षेत्र में नमस्कार जैसा सहज, मधुर, बाकी है। और जिस तरह आबादी बढ़ रही है. आदर ने मेरी क्या गत बनाई। उसी समय, वहीं, 18 अप्रैल 2001 जिनभाषित - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524251
Book TitleJinabhashita 2001 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2001
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy