SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 95
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तेवी रीते शुं कांकरानो समूह थाय खरो ? पोताने माटे रांधी राखेला लोकना घरोना विशे मध्याह्न वखते थोडं थोडं ग्रहण करता एवा मने हिंसकपणुं लागतुं नथी. हे मांसभक्षको ! प्रथम हाथीने घात करनारा एवा तमने दया नथी, अने निर्दयने पुण्य क्यांथी होय ? तेम ज निःपुण्यने क्रिया ज शी होय ? ए प्रमाणे लाभने ईच्छनारा तमने मूलखामी प्राप्त थई. तो तेमे एक दयाने सेवो. घातक एवा तमाराथी भय पामतो आ हाथी जो कृपाना स्थान अने सौम्य एवा म्हारे शरणे आव्यो तो तेथी तमे शा माटे क्रोध करो छो ? योगसिद्ध मुनिनो प्रभाव कोई जुदा प्रकारनो होय छे. जेणे करीने उत्तम बुद्धइवाला तो दूर रह्या. परंतु निश्चे पशुओ पण तेने सेवे छे. पछी साधुनी अमृतझरती वाणीथी क्षणमात्रमां शांत थयो छे क्रोधरूप अग्नि जेमनो एवा सर्वे तापसोए जैन दीक्षा लीधी. ते आर्द्रकुमार मुनिने आवेला सांभळी श्रेणिक राजा अभयकुमार सहित त्यां आव्यो. मुनिने भक्तिथी त्रण प्रदक्षिणा करी. गजबंधननी मुक्ति अने हस्तितापसोना प्रतिबोधनी वात सांभळी हाथ जोडवापूर्वक नमस्कार करी मगधपति श्रेणिक राजाए तेमना अद्भुत चरित्रनी प्रशंसा करी. आ प्रमाणे श्री न्यानसागरे धोरणी रागमां सत्तरमी ढाल वर्णवी. दूहा सुणि नृप वनगज पासथी, जे मूकाविउ आज, ते दुष्कर कांई नथी, जोतांस्युं नरराज... १ जे महाबलस्युं तांतणा, मूंक्यानइं छिंडि तेह, तेहथी अति दुष्कर नथी, गज छोडाविउ जेह... २ पूछई नृपति कौतकइं, कहउ प्रभु करी पसाय, नेह पास केणी परई, मूक्युं तुम्हे मुनिराय...३ ढाल-१८ (राग-सारिंग) देशी-धरि आवोजी आंबो मोरीओ... तिहार पछी सघलउ कहिउं, मांडीनई निज विरतंत, सित्तरि कोडाकोडि जस उदय छई, सागरतंत, आंकणी-छई मोटउंजी करम ए मोहनी... 93
SR No.523351
Book TitleAho shrutam E Paripatra 02 Samvat 2071 Meruteras 2015
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBabulal S Shah
PublisherAshapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar Ahmedabad
Publication Year2015
Total Pages132
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationMagazine, India_Aho Shrutgyanam, & India
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy