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________________ “बादर जीव एवा महारे विशे कृपा त्यजी देनारा तमने पहेलुं व्रत क्याथी होय? अने ते हुं नथी, एवं वचन तमे बोल्या तेथी बीजं व्रत पण हारी गया छो. तथा महारा चित्तरत्नने चोरता एवा तमने त्रीजुं व्रत क्यांथी होय ? वली स्त्री एवी महारा हृदयमां स्थान करनारा तमारुं चोथु व्रत पण नाश पाम्युं छे. वली तमारा माटे देवताए रत्न अने मणिनी वृष्टि करी तेथी पांचमां व्रतमां पण भांगो आव्यो. तेथी तमारा पांचेय व्रत निष्फल गया छे.” ___ वली मने अंगीकार करो तो पहेलुं व्रत जीवे, अथवा ते हुं नथी, अने बीजा अर्थमां मनुष्यरूप हंस एवां तमारां वचनथी तमे जे जणाव्युं छे. जे हुं हंस छं, तो वळी ए हंस पण हंसीना संबंधने योग्य छे. में तमारा पगमां पद्मनुं चिह्न जोई तमने ओळखी लीधा छे. तमे मारा मस्तकना मुगट समान छो. ते समये श्रेष्ठी त्यां आवे छे ए प्रमाणे अग्यारमी ढाल पूर्ण थई. दूहा सेठई जई नृपनई कहिउं, देउल माहइं जेह, धनवतीइं ऋषिनई वरिउं, घर आविउं छेह तेह... १ ढाल-१२ राग-केदार देशी-सुमति सदा दिलमां धरो..... एह मनोरथ पूरवउ, विनवउं करजोडि, सोभागी थायइ सोहागणि धनवती, सरिखा सरिखी जोडि, सोभागी एह मनोरथ पूरवउ, ए आंकणी... कुमरीइं तस ओलखउ, नथी अनुमतउ सोय, सोभागी आविउं मनावउं भूधणी, जिम जमाई होय, सोभागी एह... भूमीपति आवी कहई, मानो जी महाराज, सोभागी वरउ कन्या वेला सरई, जो करुणासिउं काज सोभागी एह... जो नहीं एहनईं आदरो, तो सुणज्यो एक साच, सो. सागवान लेसि सही, ए कुमरी हुं वाच, सो. एह.. 79
SR No.523351
Book TitleAho shrutam E Paripatra 02 Samvat 2071 Meruteras 2015
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBabulal S Shah
PublisherAshapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar Ahmedabad
Publication Year2015
Total Pages132
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationMagazine, India_Aho Shrutgyanam, & India
File Size3 MB
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