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।। परमज्योतिःपञ्चविंशतिका ॥
मूलकारा महोपाध्याय श्री यशोविजयपादाः
वार्त्तिककारा
आचार्य श्री हेमचन्द्रसूरिशिष्या आचार्यकल्याणबोधिसूरयः
प्रस्तावना
Opening Doors Within
अज्ञानी का काम होता है दीवार रचना और ज्ञानी का काम होता है द्वार रचना, वह द्वार जो उसे भीतरी समृद्धि के समीप ले जाये । इस जीवन का लक्ष्य एक ही होना चाहिये, अपनी भीतरी समृद्धि का साक्षात्कार करना, उस के समीप जाना व उसके स्वामी बन जाना । शोचनीय है वह, जिसने इस लक्ष्य को पाया नहीं । अधिक शोचनीय है वह, जिसने यह लक्ष्य बनाया ही नहीं । दुन्यवी दृष्टि से वह चाहे कितना भी सफल क्यों न हो, वास्तव में वह मूर्ख बना है ।
न्यायविशारद न्यायाचार्य लघुहरिभद्र कूर्चाली सरस्वती महामहोपाध्याय श्री यशोविजयजीने हम पर महती कृपा कर के हमे इस द्वार का उपहार दिया है, यही है प्रकाश का द्वार... यही है आनंद का द्वार..... यही है मुक्ति का द्वार... केवल २५ श्लोको में ज्ञान का ऐसा सागर.... तत्त्व का ऐसा खज़ाना अन्यत्र मिलना दुर्लभ है, परम सौभाग्य से जब हमें यह मिल ही गया है, तो चलो, हम हमारे सौभाग्य को सार्थक करे ।
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गुरुपद्मपादरेणु आचार्य हेमचन्द्रसूरि