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________________ भट्टारक श्री गुणनिधानसूरीश्वराणां तत्छिष्य वाचक श्री पुण्यचंद्रगणि तत्छिष्य वाचकश्री माणिक्यचंद्रगणि तत्छिष्य वा. श्री सौभाग्यचंद्रगणि तत्पटे वा. श्री रयणचंद्रगणि तत्छिष्य श्री न्यानचंद्रगणिनां तद्विनेयमुनि धर्माचंद्रेणमिदं लिखितं स्ववाचनार्थम् ।। श्री ।” प्रत नं.-२ नो परिचय - प्रत क्रमांक - ४१६, कुल पत्र - ९०, दरेक पत्रमां पंक्ति-२१. प्रतनी आदिमां ।।८०।। श्रीँ सरस्वत्यै नमः ।। लख्युं छे. अने पुष्पिका आ प्रमाणे छे – “संवत् १७८२ वर्षे वैशाष वदि १3 दिने पंडित श्री चतुरविजयगणि तत्छिष्य पंडित श्री विवेकविजयगणि तशिष्य श्री प्रमोदविजयगणि तत् शिष्य न्यानविजय लिखितं ।। वणोद नगरे शांतिनाथ प्रासादात् ।। श्री ।।” प्रत नं.-३ नो परिचय - प्रत क्रमांक - १७००, कुल पत्र-१७, दरेक पत्रमां पंक्ति-१२ प्रतनी आदिमां ।। ८०।। श्री गुरुभ्यो नमः ।। लख्युं छे. अने पुष्पिका आ प्रमाणे छे – “संवत् १७२८ वर्षे सोमवासरे वैशाख वदि चउथि दिने । लावण्यलक्ष्मी वाचनार्थं ।। श्री ठः ।। कल्याणमस्तु ।।” आ प्रत रासनी रचना पछीना वर्षमां ज लखाई छे. अध्यात्मयोगीराज परम पूज्य गुरूदेव आचार्य भगवंत श्रीमद् विजय कलापूर्णसूरीश्वरजी म.सा. ना आशिष निरंतर वर्षी रह्या छे. वर्तमान गच्छनायक, मधुरभाषी परम पूज्य आचार्यदेव श्रीमद् विजय कलाप्रभसूरीश्वरजी म.सा. तथा गच्छहितचिंतक परम पूज्य आचार्यदेव श्रीमद् विजय कल्पतरुसूरीश्वरजी म.सा. ना आशिष अने अनुज्ञापूर्वक प्रस्तुत रासनुं संपादन थई रह्युं छे. आ ग्रंथनुं संशोधन पूज्य आ. श्री तीर्थभद्रसूरीश्वरजी म.सा. द्वारा थयुं छे. परम पूज्य कलाप्रभसूरीश्वरजी म.सा.ना आज्ञानुवर्तिनी मातृवत्सला प.पू. सा. नर्मदाश्रीजी म. साहेब तथा प्रवर्तिनी, सुदीर्घसंयमी प. पू. सा. नंदाश्रीजी म. सा. ना आशीर्वादथी तेमज सहवर्तिनी अभ्यासी साध्वीवृंदना सहकारथी आ कार्य पूर्णताने पाम्युं छे. 44
SR No.523351
Book TitleAho shrutam E Paripatra 02 Samvat 2071 Meruteras 2015
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBabulal S Shah
PublisherAshapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar Ahmedabad
Publication Year2015
Total Pages132
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationMagazine, India_Aho Shrutgyanam, & India
File Size3 MB
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