SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 45
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १” "शांतिकरण शांतिकरो, अचिरासुत अरिहंत: तस पद पंकज सेवतां, लहीए सुख अनंत... दान दीधुं विद्यातणुं, विद्यागुरु गुणवंत, कीर्तिनो पण खप करी, मोटो कीयो मतिमंत.... तास तणे चरणे नमी, आणी अधिक उल्लास, आर्द्रकुमार ऋषि गावतां, पहोंचे मननी आश... हस्तप्रत परिचय... आ रासनी चार प्रत मळी छे. प्रत नं-१ आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर-कोबा प्रत नं.-२ श्री पुण्यविजयजी ज्ञानभंडार-लींच प्रत नं.-३ श्री चंद्रसागरसूरि ज्ञानभंडार-उज्जैन प्रत नं.-४ श्री कुमुदचंद्रसूरि ज्ञानभंडार-लींच प्रत नं. १ अने २ कर्तानी स्वहस्त लिखित छे. चारेय प्रतना पाठ जोतां जणाय छे के तेमां शब्द अने जोडणीनी असमानता छे. रासनी कडीना उल्लेखमां पण फेरफार छे. प्रत नं. १ ने मुख्य बनाववामां आवी छे. परंतु तेमां बे पेज नहीं होवाना कारणे प्रत नं. ३ मांथी तेनो पाठ लीधो छे. प्रत नं.-१ नो परिचय - प्रत क्रमांक - १०३७०, कुल पत्र - ७, दरेक पत्रमां पंक्ति-२१ प्रतमां अमुक स्थळे अक्षरोनो नाश थयेल छे. अक्षर नाना होवा छतां स्पष्ट छे. दरेक ढाल पछी सर्वगाथा - ३०० नो उल्लेख करेल छे. स्वरनी प्रचुरता जणाय छे. शब्दनी पाछळ “ई” अने “उ” नो उल्लेख घणा प्रमाणमां छे. ग्रंथाग्र ४५१ छे. आ प्रतनुं लेखन श्री धर्माचंद्र वडे करायुं छे. प्रतनी आदिमां ॥ ८० ॥ श्री गौडीराय नमः ।। लख्युं छे. अने पुष्पिका आ प्रमाणे छे. “संवत् १७३२ वर्षे भाद्रपद मासे कृष्णत्रयोदशी तिथौ चंद्रवासरे श्री अनहल्लपुरपत्तनमध्ये श्री विधिपक्षगच्छे 43
SR No.523351
Book TitleAho shrutam E Paripatra 02 Samvat 2071 Meruteras 2015
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBabulal S Shah
PublisherAshapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar Ahmedabad
Publication Year2015
Total Pages132
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationMagazine, India_Aho Shrutgyanam, & India
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy