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प्राचीन श्रुतोद्धारक पू. आ. श्रीमद् विजयहेमचंद्रसूरीश्वरजी म.सा.की प्रेरणा से
श्री जिनशासन आराधना ट्रस्ट द्वारा प्रकाशित किये गये
भिन्न भिन्न विषयो के नवनिर्मित १७ ग्रंथ | क्रम | ग्रंथ नाम
क्रम | ग्रंथ नाम आशातनोपनिषद्
| १० | महोपनिषद् उपनिषद्-सर्वस्वम्
| ११ | मोक्षोपनिषद् ज्ञानसार-उपहार
१२ | योगबिंदुश्लोकवार्तिक चंद्रावेध्यकप्रकीर्णक-टीका
१३ | योगोपनिषद् तरंगलोलासमास
१४ | विचारबिंदु | सद्दानोपनिषद्
| १५ | विमुक्त्युपनिषद् | ०७ । प्रवचनप्रसूपनिषद्
| १६ | श्रुतमहापूजा ०८ | मरणविभक्तिप्रकीर्णक टीका-१ १७ | समाधिसुधा | ०९ | महाप्रत्याख्यानप्रकीर्णक टीका » भवभावना भाग-१ अने २
गुजरात के राजा सिद्धराज जयसिंह के समय में मलधारी आ. श्री हेमचन्द्रसूरि ने सटीक भवभावना ग्रन्थ की रचना की है। इसमें सविस्तर नेमिनाथ चरित्र व १२ भावनाओं का वैराग्यपूर्ण वर्णन है। इसकी सर्वप्रथम संस्कृत छाया आ. मुक्ति/मुनिचन्द्रसूरि शिष्य मुनि श्री मुक्तिश्रमणविजयजी ने की है। आचार्य भगवन्त ने संशोधन-परिमार्जन किया है। प्रकाशक - शांति जिन आराधक मंडळ (मनफरा, गुजरात) द्याश्रयमहाकाव्यम् भाग-१,२,३ (दो भाग संस्कृत,तीसरा भाग प्राकृत व्याकरण के लीये) कलिकालसर्वज्ञ श्री हेमचन्द्रसूरिजी ने अपने सिद्धहेम व्याकरण का प्रयोग दिखाने के लिए इस महाकाव्य की रचना की है। जिस प्रकार भट्टि ने पाणिनि व्याकरण के लिए की है। इस महाकाव्य में मूलराज से लेकर कुमारपाल तक के गुजरात को चौलुक्य राजाओं के वर्णन के साथ व्याकरण के प्रयोग भी अद्भुत ढंग से दिये गये है। एक से बीस सर्ग तक संस्कृत द्याश्रय है और २१ से २८ तक प्राकृत व्याकरण के प्रयोग दिये गये है। संस्कृत व्याकरण की टीका अभयतिलक गणि ने एवं प्राकृत व्याकरण की टीका पूर्णकलश गणि ने की है। आ. मुक्ति/मुनिचन्द्रसूरि कृत गुजराती अनुवाद भी ग्रन्थ के पीछे दिया गया है। प्राकृत द्याश्रय में अनुवाद के साथ संस्कृत-अन्वय भी दिया है। प्रकाशक - शांति जिन आराधक मंडळ (मनफरा, गुजरात) प्राप्तिस्थान - लालभाई दलपतभाई संस्कृति विद्यामंदिर (अहमदाबाद, गुजरात)
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