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________________ अर्थ- मृगध्वज मुनिराय निरतिचार चारित्र- पालन करता भव्य जीवोना उपकार काजे देश-विदेश विचरता हता. पांच समिति अने त्रण गुप्तिनुं पालन करता हता. मनना रोस दूर करी शुद्ध अध्यवसायमां वासित मन करी विचारे छे के "हं राजा(पिता) पासे जईने सर्व राग-द्वेष दूर करी खमा. सर्व जीव साथे मैत्रीभाव केळवू.” एम शुभाशयथी मन पवित्र करीने नगरी तरफ प्रयाण करे छे. नगरमां पहोंच्या पछी ते तरत मंत्रीने मळे छे के जेना उपकारथी आ संयममार्ग मळ्यो हतो. महापुरुषो उपकारीना उपकारने क्यारेय भूलता नथी. मंत्री पण कुमार मुनिने जोई खूब खूश थाय छे. चारित्रनो स्वीकार खरेखर भवबंधननी बेडीने तोडनार छे. खूब उल्लसित हृदये मुनिवरने वंदना करे छे. सुखशातानी पृच्छा करे छे. अने वारंवार नमन करे छे. हर्षथी मंत्री कुमारने लईने राजमंदिरे जाय छे. राजा पण मुनिवरने जोई विनयपूर्वक सिंहासनथी ऊभा थाय छे. सामे जाय छे. मुनिना दर्शनथी तेमनो मनमयूर नाची ऊठे छे. मुनिवरने बेसवा योग्य सिंहासन आपे छे. मुनिवर त्यां बेसी देशना आपे छे. सहु सभाजन भावपूर्वक सांभळे छे. राजाना हृदयमां वात्सल्यनी धारा ऊभराय छे परंतु पोताना पुत्रमुनिने ओळखता नथी. मंत्री राजाने कुमारमुनिनी ओळख आपे छे. राजा पण तेमनुं मुखकमल वारंवार नीरखे छे अने पोताना कुमारने ओळखे छे, अने आनंदथी भेटी पडे छे. तेमना चरणे नमस्कार करे छे अने वारंवार पोताना अपराधनी क्षमा मांगे छे. क्षमावंत मुनिराय पण सहुने खमावे छे. महापुरुषो खरेखर बीजानी भूलने भूली जनारा होय छे. मंत्री पण राजाने कहे छे के “हे राजन् ! आपना कुमारे चारित्र लईने मानवजीवन सफल कर्यो छे. आप, कुल पवित्र कर्यु छे.” राजा-राणी बंने पोताना पुत्रने मुनिवेषमां जोईने खुब आनंदित थाय छे. चारेगतिना भयथी पुत्रने वैराग्य थयो छे ते खरेखर उत्तम भाव छे आ पुण्यप्रभाव ज छे. आ नगरना उद्यानमां विचारता-विचारता एक ज्ञानीभगवंत पधारे छे. सहु नगरजन राजा सहित त्यां वंदन करवा जाय छे. त्यां बेसी सह सीमंधर गुरुनी देशना सांभळे छे. मृगध्वज मुनिवर पण त्यां आवी अनुमति पूर्वक विधि सहित त्यां चारित्र उच्चरे छे. छठ्ठ-छठ्ठ पारणे (आयंबिल) निरस आहार ले छे. ईर्यासमिति, भाषासमिति, एषणासमिति, आदानसमिति, पारिष्ठापनिकासमिति अने त्रणगुप्ति पूर्वक संयमनुं 116
SR No.523351
Book TitleAho shrutam E Paripatra 02 Samvat 2071 Meruteras 2015
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBabulal S Shah
PublisherAshapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar Ahmedabad
Publication Year2015
Total Pages132
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationMagazine, India_Aho Shrutgyanam, & India
File Size3 MB
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