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________________ सांप्रत हुओ असुरकुमार, उणि पामी रिद्धि अपार, क्रमि क्रमि लहिसिइ निरवाण, ते जोवउ पुणय प्रमाण... अम्ह पूरवभव संबंध, जाणीनइ द्वेषनिबंध, मनि म करउ दोस लगार, जिम पामउ भवदुह पार... इम निसुणी केवलनाणी, प्रतिबुझ्या भविक जीवप्राणी, महंतास्यउ संजम भार, राय लीधउ निरतीचार... तिणि थानकी असुरकुमार, प्रासाद करइ अतिफार, महिमा मांडइ मोटइ जंग, मृगध्वज तिणि मूरति रंग... पगि खोडइ महिष महंत, थिर थापर मूरतिवंत श्रेष्ठि कामदेव कन्हइ आवइ, धन देइ चैत्य भलावई... केवलधर करइ विहार, प्रतिबोधइ भविक अपार, दिनकर जिम ज्ञान प्रकाशइ, मोहतिमिर दुरंतर नासइ... आउ पुरी शुभ परिणामइ, पहुता सिवमंदिर ठामिइ तिहां पाम्या सुख अनंत, ते सिद्ध नमउ भगवंत... मृगध्वजमुनि तणउ चरित्र, सुणता हुइ जनम पवित्र, श्री नमिनाथ वारइ एह, रिषिराय हुआ गुणगेह... धन धन मृगध्वज मुनिराय, प्रह ऊठी प्रणमी पाय, जसु नामइ नवइनिधान, पामीजइ सुख संतान... खरतरगच्छ सुह गुरुराय, श्री पूर्णचन्द्र उवज्झाय, तसु सीस सदा सुविचार, इम बोलइ पद्मकुमार... ॥ इति श्री मृगध्वजगीत संपूर्ण ॥ 115 २२ धन धन... २३ धन धन... २४ धन धन... २५ धन धन ... २६ धन धन... २७ धन धन... २८ धन धन... २९ धन धन... ३० धन धन... ३१ धन धन...
SR No.523351
Book TitleAho shrutam E Paripatra 02 Samvat 2071 Meruteras 2015
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBabulal S Shah
PublisherAshapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar Ahmedabad
Publication Year2015
Total Pages132
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationMagazine, India_Aho Shrutgyanam, & India
File Size3 MB
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