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________________ ६ आगइ सातवार मइ सइ हथि, हणी हत्याफल लीधउ, ज्ञानी तणइ वचनि जाणीनइ अभयदान हिव दीधउ.... इसउ वचन सुणीनइ श्रेष्ठि धरइ वईराग, जीवहिंसा करिवा मुझनई नही छई लाग, जे दीसइ ढूंटा, कोढी, अंधा, काणा, ते जाणी न सगलउ हिंसा तणउ प्रमाण... तउरे हिंसा तणई प्रमाणि अनंतउ काल भमइ ए जीव, नरक अनइ तिरजंच तणइ भवि फरइ घणेरउ जीव, आज पछई हिव जीवतणउ वध करीवउ नही लगार, ए महिषनइ मइ पणि दीधउ अभयदान सुविचार... धन धन सामी तुम्ह जागिउ हीयइ विवेक, एह पुण्यप्रमाणि लहिस्यउ सुख अनेक, नरभव फल लीधउ कीधउ निरमल वंश, इम श्रेष्ठि तणी ते गोपति करइ प्रशंस... तउरे करइ प्रसंसा गोप भली परि तेडीनई घरि जाई, खीर-खंड-घृत-घोल जिमाडइ हीयडइ हरख न माइ, भोजन करी श्रेष्ठि निजमंदिरि सुपरि पहोतइ जाम, अणतेडिउ ते महिष बापडउ केडिइ हूओ ताम... धूबडपणइ धसमस धाइ गोप अनेक, वेगि पाछउ चालइ पुणि ते न वलइ छेक, तव श्रेष्ठि कहइ तुम्हे रखे दुहवउ एह, आवइ तउ आवउ हीयडई धरीय सनेह... तउरे नेह धरीनई पूछिउ आवउ सिउ अम्ह भाग आपणपीनइ वली विशेषई दूहविवा नही लाग, 102
SR No.523351
Book TitleAho shrutam E Paripatra 02 Samvat 2071 Meruteras 2015
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBabulal S Shah
PublisherAshapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar Ahmedabad
Publication Year2015
Total Pages132
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationMagazine, India_Aho Shrutgyanam, & India
File Size3 MB
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