SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 44
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जंबुस्वामी के निर्वाण के साथ ही भरत क्षेत्र से केवलज्ञान का उच्छेद हो गया, परंतु श्रुतज्ञान तो पांचवें आरे के अंत तक रहेगा। जब तक इस जगत में श्रृतज्ञान का अस्तित्व रहेगा, तब तक छठा आरा चालू नहीं होगा, प्रलयकाल नहीं आएगा । भरतक्षेत्र में धीरे-धीरे श्रुतज्ञान का ह्रास होते-होते एक मात्र दशवैकालिक सूत्र बचा रहेगा। उसी सूत्र के आधार पर शासन की व्यवस्था चलेगी। और ज्योंही उस श्रुत के धारक दुप्पहसूरिजी म.का स्वर्गवास होगा,त्योंही भरत क्षेत्र से श्रुत का विच्छेद हो जाएगा। श्रुतज्ञान और श्रुतज्ञानी का अभेद संबंध है। श्रुतज्ञानी का कालधर्म होते ही श्रुतज्ञान का विच्छेद हो जाएगा, इसके परिणामस्वरूप भरत क्षेत्र' में प्रलयकाल चालू हो जाएगा। सारे मंदिर-सभी धर्मग्रंथ नष्ट होजाएंगे। लोगों में रहीधर्म-श्रद्धा नष्ट हो जाएगी,लोग श्रद्धा-भ्रष्ट हो जाएंगे। श्रुतज्ञान और श्रुतज्ञानी का अस्तित्व प्रलयकाल पर ब्रेक लगाने का काम करता है। श्रुतज्ञान के बल से निर्दोष भिक्षा हो, वह भिक्षा केवली की दृष्टि में दोष युक्त हो तो भी केवली उस भिक्षा का उपयोग कर लेते हैं, इससे स्पष्ट है कि साधु जीवन का समस्त व्यवहार केवलज्ञान के आधार पर नहीं, बल्कि श्रुतज्ञान के आधार पर ही चलता है। शास्त्रों में केवलज्ञान को सर्य की उपमा दी है और श्रुतज्ञान को दीपक की। सूर्य अस्त होने के बाद रात्रि में दीपक की ही जरुरत रहती है। जंबुस्वामी के निर्वाण के साथ भरत क्षेत्र में केवलज्ञान का सूर्य अस्त हो गया था,अब भरतक्षेत्रवासियों के लिए श्रुतज्ञान रूपी दीपक ही परम आधार रूप है क्योंकि उसी के आधार पर अब उन्हें आगे कदम बढाना है। आपने पुनः पत्र के माध्यम से ५० वे अंक प्रकाशन निमित्त प्रसादी की मांगनी की प्रसादी तो अहो श्रुतज्ञानम् है जो चातुर्मास के पर्व दिनो में ही मिलती है। लंबे समय से आप का परिचय है। आप अकेले हाथ जो ज्ञान का कार्य कर रहे हो, वह सचमुच अनुमोदनीय है | अहो श्रुतज्ञानम् को ५० अंक तक ले जाना वह ५-५० दिन की बात नही है पुरे १० साल की महेनत है। अहो श्रुतज्ञानम् ज्ञान जगत में प्रकाशित नूतन प्रकाशनों को स्थान देकर बडे बडे ज्ञानी-प्रभावक-आचार्यो आदि के पास अपना स्थान बना लेता है (बना लिया है)। मेरा एक निर्देश है की यूभी ज्ञान के प्रति उदासीनता सर्वत्र फैल चूकी है फिरभी ज्ञान के अर्थी आज भी उपलब्ध है तो हर हमेशज्ञान की खोज करते ही रहते है। तो प्रतिवर्ष नूतन प्रकाशनो का एक केटलोग प्रकाशीत हो और नूतन प्रकाशन की पूर्ण माहिती प्राप्त करने हेत लेखक/संपादकको एक कोम भेजा जाये जिसमें पस्तक (साहित्य संबंधिपर्ण विगत उन्ही के हाथो से भरवाइजाये ताकीसरत चूक ना हो और वह कोम के द्वारा केटलोग तैयार होजो ज्ञानभंडार आदि में अत्यंत उपयोगी रहेगा। इस विषय पर प्रयास करे......... सफलता आप के साथ है ......... गुर्वाज्ञासे मुनि हीर विजयजी का धर्मलाभ पू. श्री प्रेम-भुवनभानुसूरिजी समुदाय २०-९-२०१९, विजयवाडा અહો શ્રુતજ્ઞાનમ્ સૌન્દર્યનો સંસ્પર્શ
SR No.523350
Book TitleAho Shruta gyanam Paripatra 50 Suvarn Ank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBabulal S Shah
PublisherAshapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar Ahmedabad
Publication Year2019
Total Pages84
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationMagazine, India_Aho Shrutgyanam, & India
File Size38 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy