SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 43
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रुतज्ञान की महत्ता आ. श्री. विजय रत्नसेनसूरीश्वरजी म. स. पू. आ. रामचंद्रसूरिजी समुदाय चरम तीर्थपति देवाधिदेव भगवान महावीर परमात्मा जन्म से ही मति, श्रुत और अवधि तीन ज्ञानों से युक्तथे। जन्म से ही तीन-तीन ज्ञानों से युक्तहोने पर भी वे अरिहंत परमात्मा न तो गृहस्थ जीवन में धर्मोपदेश देते हैं और न ही तीर्थ की स्थापना करते हैं। संसार का त्याग कर ज्यों ही वे तारक परमात्मा दीक्षा अंगीकार करते हैं, त्योंही उन्हें चौथा मनःपर्यवज्ञान भी उत्पन्न हो जाता है, फिर भी वे तारक परमात्मा तीर्थ की स्थापना नहीं करते हैं। साडेबारह वर्ष की घोर साधना के बाद ऋजुवालिका नदी के तट पर छ? तपपूर्वक गोदोहिका आसन में बैठकर आतापनाले रहे भगवान महावीर परमात्मा को केवलज्ञान की प्राप्ति हुई। __ऋषभदेव प्रभु से लेकर पार्श्वनाथ प्रभु तक सभीअरिहंत परमात्माओं ने केवलज्ञान की प्राप्ति के बाद उसी दिन 'तीर्थ' की स्थापना की और वे भाव तीर्थंकर बने, परंतु भगवान महावीर प्रभु की पहली ही देशना निष्फल गई जो इस अवसर्पिणी काल के १० आश्चर्यो में से एक आश्चर्य बना। भगवान महावीर ने दूसरे दिन इन्द्रभूति आदि ११ ब्राह्मणों को भागवती दीक्षा प्रदान की और प्रभु ने चतुर्विध-संघरूपी तीर्थ की स्थापना की। इन्द्रभूति ने प्रभुसे पूछा, भयवं! किंतत्तं?' प्रभु ने कहा, 'उप्पन्नेइवा।' पुनः प्रभुसे पूछा, 'भयवं! किं तत्तं!' प्रभु ने कहा,'विगमेइ वा!' पुन इन्द्रभूति ने पूछा, 'भयवं! किं तत्तं!' प्रभु ने कहा,'धुवेह वा!' इस प्रकार वीर प्रभु के मुख से त्रिपदी का श्रवण कर इन्द्रभूति आदि गणधरों ने द्वादशांगी की रचना की। यह द्वादशांगी भी तीर्थस्वरूप है। प्रभु के द्वारा स्थापित शासन इसी द्वादशांगी के आधार पर २१००० वर्ष तक चलनेवाला है। वीर प्रभु ने केवलज्ञान की प्राप्ति के बाद शासन की स्थापना की, परंतु प्रभु के द्वारा स्थापित शासन श्रुतज्ञान के बल पर ही चलनेवाला है। पांच ज्ञानों में मति, अवधि, मनः पर्यवज्ञान व केवलज्ञान को मूक कहा गया है, जबकि एक श्रुतज्ञान ही वाचाल है। पांच ज्ञानों में से आदान-प्रदान एकमात्र श्रुत काही हो सकता है। तारक तीर्थंकर परमात्मा समवसरण में बैठकर जो धर्मदेशना देते हैं, उसे द्रव्यश्रुत कहा जाता है,उस द्रव्यश्रुत का श्रवणकर श्रोताओं को जो श्रुतज्ञान का क्षयोपशम होता है, उसे भावश्रुत कहा जाता है। शासन की स्थापना केवलज्ञान के आधार पर होती है,परंतुशासन का संचालन तो श्रुत के आधार पर ही होता है। केवलज्ञान का विच्छेद एक साथ होता है,जबकि श्रुतज्ञान का ह्रास और नाश धीरे-धीरे होता है। અંહો શ્રુતજ્ઞાનમ અસ્મિતા વૃક્ષ
SR No.523350
Book TitleAho Shruta gyanam Paripatra 50 Suvarn Ank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBabulal S Shah
PublisherAshapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar Ahmedabad
Publication Year2019
Total Pages84
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationMagazine, India_Aho Shrutgyanam, & India
File Size38 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy