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मन की बात पू.आ.अरिहंतसागरसूरिजी
पू. श्री. पंडित युगभूषणसूरिजी कल्याणकारी श्री जिनशासन रूपी राजमहल के आधार स्तंभ है, भगवान द्वारा बताए गए सात क्षेत्र । जिनबिंब, जिनालय, जिनागम, साधु, साध्वी, श्रावक और श्राविका-इनमें से एक भी स्तंभ के कमजोर होने से पूरा राजमहल गिर सकता है। अतः शासन के सदस्य होने के नाते हम सभी का यह परम कर्तव्य बनता है । कि कमजोर होते प्रत्येक क्षेत्र का ध्यान रखें।
वर्तमान समय में वैसे तो सातों क्षेत्रों की अवस्थाओं को मजबूती देने की आवश्यकता है लेकिन विशेष तौर पर ज्ञान क्षेत्र पर ज्यादा ध्यान देने की जरुरत है जो उपेक्षा का शिकार बना है । एक अपेक्षा से देखा जाए तो ज्यादा महत्व ज्ञान क्षेत्र का है। हालांकि इस क्षेत्र में रुचि वाले और कार्य करनेवाले कुछ लोग जरुर है लेकिन सभी के कार्यों को एक नेटवर्क स्थापित कर एक सूत्र में पिरो दिया जाएँ तोन सिर्फ कार्य में न गति और निखार आएगा बल्कि अनेकों के समय-शक्ति और संसाधनों की बचत भी होगी।
वैसे तो आपसे (बाबुलालजी से) कभी मुलाकात नहीं हुई लेकिन शासनश्रुत के प्रति आपकी चिंता, श्रुतज्ञान के क्षेत्र में आपको उत्साह का परिचय आपके द्वारा प्रकाशित "अहो श्रुतज्ञानम्" के अंको से हुआ। घर-परिवार की चिंता हर कोई करता है लेकिन शासन की चिंता करनेवाले विरले ही होते है । संशोधन-प्रकाशन, ज्ञानभण्डार, पाठशाला, संघ की व्यवस्थाओं आदि के क्षेत्र में आपके प्रयास अनुमोदनीय है और अन्य श्रावकों के लिए भी प्रेरणादायी है । साधु-साध्वी उपदेश द्वारा श्रुतज्ञान का महत्त्व समझाएं और आप जैसे सक्रिय श्रावक इस क्षेत्र में करने योग्य कार्यों का व्यापक प्रचार प्रसार करें तो चतुर्विध श्रीसंघ में इस क्षेत्र के प्रति और अधिक जागृति आ सकती है । श्रुतज्ञान की उपासना करते करते हर कोई केवलज्ञान की प्राप्ति करें ऐसी शुभेच्छा।
જ અહો શ્રતજ્ઞાનમ વિશ્વાવલોકન