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सामाजिक और आर्थिक सन्दर्भ में महावीर का दर्शन (३) तिर्यग्व्यतिक्रम : विभिन्न दिशानों की सीमा का अतिक्रमण । (४) क्षेत्र वृद्धि : खेत आदि की सीमा को बढ़ा लेना। (५) स्मृत्यन्तराधान : निश्चित की गयी सीमाओं को भूल जाना।
दिग्व्रत के अन्तर्गत इन सभी प्रकार के अतिक्रमणों का नियमन किया जाता था।
दूसरा गुणवत है – देशव्रत अर्थात् निश्चित प्रदेश के अन्तर्गत भी सीमाओं का निर्धारण करना और निर्धारित सीमानों का अतिक्रमण न करना। इसके पांच उपनियम इस प्रकार
हैं
(१) प्रानयन
(२) प्रेष्यप्रयोग
(३) शब्दानुपात (४) रूपानुपात
: निश्चित सीमा के बाहर दूसरे को भेज कर वहां
की सामग्री मँगा लेना । : निश्चित सीमा के बाहर मौजूद व्यक्ति के मार्फत
काम करा लेना। : शब्दों के इशारे से सीमा के बाहर काम कराना । : रूप या प्राकृति के इशारे से सीमा के बाहर काम
कराना। : किसी वस्तु को गिरा कर उसके संकेत से सीमा के बाहर काम कराना।
(५) पुद्गलक्षेप
देशव्रत के अन्तर्गत इन प्रवृत्तियों पर नियन्त्रण रखा जाता था।
तीसरा गुणवत है-अनर्थदण्डवत अर्थात् निरर्थक प्रवृत्तियों का नियमन । इसकी पांच उपधाराएँ निम्न प्रकार हैं(१) कन्दर्प
: परिहास और असभ्य भाषण । (२) कौत्कृच्य : कुचेष्टाएँ। (३) मौस्वर्य : धृष्टतापूर्वक वाचालता । (४) असमीक्षयाधिकरण : अविचारित कार्याधिक्य । (५) उपभोग-परिमोग : भोग और उपभोग की वस्तुओं का अनावश्यक व्यय ।
प्रानर्थक्य अनर्थदण्डव्रत के अन्तर्गत इन सब प्रवृत्तियों पर नियन्त्रण किया जाता था।
चार शिक्षाव्रत हैं-सामायिक, प्रोषधोपनास, उपभोग-परिभोगव्रत तथा अतिथि . संविभागवत। उपर्युक्त व्रतों की तरह इनकी पाँच-पाँच उपधाराएं इस प्रकार हैं
सामायिक की-(१) कापदुष्प्रणिधान, (२) वचनदुष्प्रणिधान, (३) मनो-- दुष्प्रणिधान, (४) अनादर, (५) स्मृत्यनुपस्थापन ।
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