SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 93
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विक्रम (ङ) स्मरतीवाभिनिवेश कामातिरेक । समन्तभद्र ने इत्वरिकागमन को एक मानकर विटत्व की भी गणना की है। इनका निषेध इन उपनियमों के अन्तर्गत माता है। ५–पाँचवा मूल गुण है परिग्रह परिमाण । मूर्छा अर्थात् प्रशक्ति को परिग्रह कहा गया है। बाह्य वस्तुओं, जड़ और चेतन के प्रति तीव्र आसक्ति ही उनके संग्रह का कारण बनती है। इसलिए मूर्छा को ही परिग्रह कहा। प्रासक्ति कम होगी तो संग्रह भी कम होगा। इसकी पांच उपधाराएँ इस प्रकार हैं--- (१) क्षेत्र-वास्तुप्रमाणातिक्रम कृषिभूमि और भवन रखने की सीमा का अतिक्रमण । (२) हिरण्य-सुवर्णप्रमाणातिक्रम सोना आदि बहुमूल्य वस्तुएँ और सोने के सिक्के रखने की सीमा का अतिक्रमण । (३) धन-धान्य प्रमाणातिक्रम विविध प्रकार की धन-सम्पत्ति तथा खाद्य-सामग्री के रखने की सीमा का अतिक्रमण । (४) दास-दासी प्रमाणातिक्रम नौकर-चाकर रखने की सीमा का अतिक्रमण । । (५) कुप्य प्रमाणातिक्रम वस्त्र और बर्तनों को रखने की सीमा का अतिक्रमण। इन सब का निषेध। आचार्य समन्तभद्र के उक्त पांच अणुव्रतों के साथ मद्य, मांस और मधु के त्याग को आठ मूल गुण कहा है। जहाँ अणुव्रतों की गणना बारह-व्रतों में की गयी है वहाँ इनके स्थान पर पांच उदुम्बर फलों का त्याग मूल गुणों के अन्तर्गत मान लिया गया है । तीन गुणवतों में पहला गुणवत है--दिग्व्रत अर्थात् दिशाओं की सीमा निर्धारित करना और निर्धारित सीमा का अतिक्रमण न करना । इसके पाँच उपनियम इस प्रकार हैं (१) ऊर्ध्व व्यतिक्रम (२) अधो व्यतिक्रम : ऊपर की- अन्तरिक्ष की सीमा का अतिक्रमण । : नीचे की सीमा का अतिक्रमण । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.523101
Book TitleVikram Journal 1974 05 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRammurti Tripathi
PublisherVikram University Ujjain
Publication Year1974
Total Pages200
LanguageHindi, English
ClassificationMagazine, India_Vikram Journal, & India
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy