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________________ सामाजिक और प्रार्थिक सन्दर्भ में महावीर का दर्शन ५३ की गणना की है। साकारमन्त्र भेद नहीं दिया। इनका निषेध उपनियमों के अन्तर्गत आता है। ३-तीसरा मूल गुण है अचौर्य । बिना दिए किसी की वस्तु न लेना। प्रदत्त का प्रग्रहण । इसके अन्तर्गत किसी की गिरी हुई, भूली हुई चीज को ग्रहण करने का निषेध है। इसके भी पांच उपनियम हैं .. (क) स्तेनप्रयोग स्वयम् चोरी न करना किन्तु दूसरों के द्वारा चोरी करा लेना। (ख) स्तेनाहृतादान चोरी का माल लेना। (ग) विरुद्धराज्यातिक्रम दूसरे राज्य की सीमा का अतिक्रमण करके चीजों को खरीदना-बेचना। (घ) होनाधिकमानोन्मान नाप-तौल के बाँट खरीदने के लिए अधिक और देने के लिए कम रखना। (6) प्रतिरूपक व्यवहार नकली सामान या असली में नकली मिलाकर उसका व्यापार करना। इन सबका निषेध । ४. चौथा मूल गुण है अब्रह्म विरति । मैथुन-सेक्स की तीव्रता अब्रह्म है। इससे विरति ब्रह्म है। विधिवत् परिणीता के अतिरिक्त अन्य स्त्री या अन्य साधनों से मैथुन करने से विरति अब्रह्म-विरति है। इसकी पांच उपधाराएँ इस प्रकार हैं (क) परविवाहकरण दूसरों के विवाह करना । (ख) इत्वरिकापरिगृहीतागमन दूसरे की बदचलन स्त्री के साथ संसर्ग करना। (ग) इत्वरिका अपरिगृहीतागमन वेश्या या अपरिणीता स्त्री का संसर्ग करना। (घ) अनंगक्रीड़ा मैथुन के अंगों के अतिरिक्त अन्य अंगों या साधनों से क्रीड़ा करना। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.523101
Book TitleVikram Journal 1974 05 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRammurti Tripathi
PublisherVikram University Ujjain
Publication Year1974
Total Pages200
LanguageHindi, English
ClassificationMagazine, India_Vikram Journal, & India
File Size11 MB
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