________________
विक्रम
....
मांसमद्यमधुयूतक्षीरवृक्षफलोज्झनम् ।
वेश्याबधूरतित्याग इत्यादि नियमो मतः ॥ (१८१४८) वसुनन्दि ने स्वतन्त्र रूप से श्रावकाचार की रचना की है। इसमें पांच उदुम्बर और सात व्यसनों के त्याग का विस्तृत विवेचन है।
सामाजिक और आर्थिक जीवन के सन्दर्भ में इन मूलगुणों और व्रतों की व्याख्या निम्नप्रकार से की जा सकती है
१- पहला मूल गुण है अहिंसाणुव्रत ।
जानबूझकर दूसरे के प्राण लेना हिंसा है। यदि आप जीना चाहते हैं तो यह पहली शर्त है कि आपको दूसरे के जीवन का भी वही मूल्य करना होगा।
___ यह बात मात्र मानवजगत् के लिए नहीं है। जितने भी प्राणवा हैं, चाहे वे मानव हों, पशु या पक्षी हों या कीट, पतंग, किसी की भी जान लेना अनुचित है, अपराध है। इसके पांच उपनियम या उपधाराएँ इस प्रकार हैं ---
(क) बन्ध : किसी को अवरुद्ध करके या बन्दी बनाकर नहीं रखना। (ख) बध : किसी को शारीरिक ताड़ना नहीं देना। (ग) छेद : किसी को शरीरावयव का छेद नहीं करना । (घ) प्रतिमारारोपण : शक्ति और सामर्थ्य से अधिक काम नहीं लेना । (ङ) अन्नपाननिरोध : दूसरों के खान-पान में रुकावट नहीं डालना। २ . दूसरा मूल गुण है सत्याणुव्रत ।, .
असत् का अमिधान अनृत है। जैसा का तैसा कहना सत्य है। इसके पांच उपनियम इस प्रकार हैं
(क) मिथ्योपदेश
दूसरों को बरगलाना, अफवाह फैलाना, दूसरों को बदनाम
करना, इन सब का निषेध । (ख) रहोभ्याख्यान
गुप्त या गोपनीय बातों का प्रकट करना । (ग) कूटलेखक्रिया
दूसरों को ठगने के उद्देश्य से गलत दस्तावेज तैयार करना । (घ) न्यासापहार
अमानती सामान को हड़प जाना। (अ) साकारमन्त्र भेद
मुखाकृति तथा अन्य संकेतों से किसी की बात को समझ कर ईर्ष्यावश उसे अन्य को बता देना। समन्त भद्र ने पैशुन्य
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org