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विक्रम
जब कोई व्यक्ति खोज के मार्ग में किसी वस्तु के सम्बन्ध में अपने 'संधान' को अंतिम मानकर बैठ जाना चाहता है तो स्याद्वाद सम्भावनाओं एवम् शक्यताओं का मार्ग प्रशस्त कर अनुसंधान करने की प्रेरणा देता है। स्याद्वाद केवल सम्भावनात्रों को ही व्यक्त करके अपनी सीमा नहीं मान लेता प्रत्युत समस्त सम्भावित स्थितियों की खोज करने के अनंतर परम एवम् निरपेक्ष सत्य को उद्घाटित करने का प्रयास करता है । जयशंकर प्रसाद का कथन है--
इस पथ का उद्देश्य नहीं है श्रांत भवन में टिक रहना किन्तु पहुँचना उस 'सीमा' पर जिसके आगे राह नहीं है
स्याद्वाद उस 'सीमा' पर केवल एकांगी मार्ग द्वारा नहीं अपितु उस सीमा तक पहुँचने वाले समस्त मार्गो का अवलोकन उनकी खोज एवम् परीक्षण करके पहुंचना चाहता
यह दर्शन व्यवहार दृष्टि से वस्तु में अन्तविरोधी गुणों की प्रतीति कर लेने के उपरान्त 'निश्चय' द्वारा उसको उसके समग्र एवम् अखण्ड रूप में देखने का दर्शन है । हाथी को उसके भिन्न-भिन्न खण्डों से देखने पर जो विरोधी प्रतीतियाँ होती हैं उसके अनन्तर उसको उसके समग्र रूप में देखना है। इस प्रकार यह संदेह उत्पन्न करने वाला दर्शन न होकर संदेहों का परीक्षण करने का उपरान्त परिहार कर सकने वाला दर्शन है । यह दर्शन तो शोध की वैज्ञानिक पद्धति है । "विवेच्य" को उसके प्रत्येक स्तरानुरूप विश्लेषित कर विवेचित करते हुए वर्गबद्ध करने के अनन्तर संश्लिष्ट सत्य तक पहुँचने की विधि है। विज्ञान केवल जड़ का अध्ययन करता है। स्याद्वाद ने प्रत्येक सत्य की पूर्ण खोज की पद्धति प्रदान की है। .
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