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________________ जैन दर्शन की आधारभित्ति : अनेकांतवाद एवम् स्याद्वाद 'रस गंधादिक की दृष्टि से जब हमें पृथक्-पृथक् ज्ञान होता है' ('रूपवान् कलश:' ‘स्पर्शवान् कलशः' ‘गंधवान् कलश:' इत्यादि) तब यह ज्ञान नयज्ञान का अभिधान प्राप्त करता है । 'नय' ज्ञाता का 'विशिष्ट अभिप्राय' है : 'मयो ज्ञातुरभिप्रायः """ सापेक्षता ही नय की आत्मा है । सम्यक् एकान्त नय है एवम् सम्यक् अनेकांत 'प्रमाण' है । 'प्रमाण' सम्यक् ज्ञान की अवधारणा को निर्दिष्ट करता है, 'न्याय' पदार्थों की विविध पक्षों, श्राकारों, स्वरूपों, दशाओं, अवस्थाओं में रखकर देखने की दृष्टि है । इस दृष्टि से प्राप्त ज्ञान का निरूपरण 'सप्तभंगी' द्वारा होता है; एक पदार्थ की विविध रूपों में देखी गयी छवियों, भंगिमाओं की सात प्रकार से स्थापना कर सकने की भाषिक शैलियाँ ही 'सप्तभंगी' हैं | अनेकांतवाद सर्वतयात्मक है । जिस प्रकार बिखरे हुए मोतियों को एक सूत्र में पिरो देने से मोतियों का सुन्दर हार बन जाता है उसी प्रकार भिन्न-भिन्न नयों को स्याद्वादरूपी सूत में पिरो देने से सम्पूर्ण नयों को श्रुत प्रमाण कहा जाता है । सप्तकारक वचन विन्यास : सप्तभंगीनय सप्तकारक वचन विन्यास का अभिधान ही 'सप्तभंगीनय' है जिस पर स्याद्वाद का भवन निर्मित है । सप्तकारक बचन विन्यास से वस्तु के अनन्त धर्मों के अभिव्यक्तीकरण की दिशा में तत्व चिन्तक को सही दिशा एवम् शक्ति प्राप्त होती है । हम किसी भी वस्तु के स्वरूप को सप्तविध नयों या परामर्शो द्वारा अभिव्यक्त कर सकते हैं (१) 'स्यात अस्ति' (२) 'स्यात् नास्ति' (३) ' स्यात अस्ति नास्ति च' ५.७ (४) 'स्यात् अवक्तव्यो' Jain Education International - अर्थात् किसी की अपेक्षा से (घट) विद्यमान है ( घट का अपने द्रव्य, काल, भाव क्षेत्र आदि की अपेक्षा अस्तित्व है ) श्रर्थात् किसी की अपेक्षा से (घट) नहीं है । ( दूसरे पदार्थ के द्रव्य, काल, भाव, क्षेत्र आदि की दृष्टि से घट नहीं है । अर्थात् किसी दृष्टि से घट है भी और नहीं भी (घट स्वरूप की दृष्टि से हैं किन्तु पररूप की दृष्टि से नहीं हैं । अर्थात् अपने क्षेत्र, काल, द्रव्यादिक की दृष्टि से है किन्तु दूसरे क्षेत्र काल, द्रव्यादिक की दृष्टि से नहीं भी है अतः घट उभयरूप है ।) अर्थात् किसी अपेक्षा से अवक्तव्य है । (अवक्तव्य श्रस्ति एवम् नास्ति दोनों का मिश्रित रूप है । उदाहरण घट का वर्ण श्याम एवम् रक्त दोनों है । परिपक्वावस्था के पूर्व घट श्याम वर्ण का है, रक्त For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.523101
Book TitleVikram Journal 1974 05 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRammurti Tripathi
PublisherVikram University Ujjain
Publication Year1974
Total Pages200
LanguageHindi, English
ClassificationMagazine, India_Vikram Journal, & India
File Size11 MB
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