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विक्रम
पदार्थ नित्य भी है और अनित्य भी।
अपनी गुणात्मक सत्ता (ध्रौव्य स्वभाव) की दृष्टि से पदार्थ नित्य है किन्तु पर्याय दृष्टि (उत्पाद-व्यय) से अनित्य है। प्रवाह की अपेक्षा पदार्थ अनादि (शाश्वत) है, स्थिति (एक अवस्था) की अपेक्षा सादि (आदि-अन्त होने वाला)। प्रव्युच्छेदनय की दृष्टि से पदार्थो में अन्तर होता रहता है। अविच्छेदनय की दृष्टि से चेतन और अचेतन सभी वस्तुएँ सदा अपने रूप में रहती हैं।
इस प्रकार दृष्टि, नय एवम् अपेक्षा से प्रत्येक पदार्थ के विविध गुणों एवम् अनन्त धर्मो का साक्षात्कार अनेकांत है तथा इस अनेकांतिक दृष्टि से देखना ही अनेकांतवाद है। यह सत्य को पहचानने की व्यावहारिक प्रक्रिया है; वैज्ञानिक प्रविधि है। सत्य का सम्पूर्ण साक्षात्कार सामान्य व्यक्ति द्वारा एकदम सम्भव नहीं हो पाता। अपनी सीमित दृष्टि से देखने पर हमें वस्तु के एकांगी गुण, धर्म का ज्ञान होता है। विभिन्न स्थानों पर से देखने पर एक ही वस्तु हमें भिन्न प्रकार की लग सकती है तथा एक स्थान से देखने पर भी विभिन्न द्रष्टाओं की प्रतीतियाँ भिन्न प्रकार की हो सकती हैं। भारतवर्ष में जिस क्षण कोई व्यक्ति 'सूर्योदय' देख रहा है; संसार में दूसरे स्थल से उसी क्षण किसी व्यक्ति को 'सूर्यास्त' के दर्शन होते हैं। व्यक्ति एक ही होता है-उससे विभिन्न व्यक्तियों के अलग-अलग प्रकार के सम्बन्ध होते हैं। एक ही वस्तु में परस्पर विरुद्ध प्रतीत होने वाले अथवा परस्पर सम्भाव्यमान विरोधी धर्मों का अस्तित्व सम्भव होता है। इसमें अनिश्चयात्मक मनःस्थिति बनाने की बात नहीं है, वस्तु के सापेक्ष्य दृष्टि से प्रतीयमान अथवा सम्भावित विरोधी गुणों को पहचान पाने की बात है।
__ एक दृष्टि से देखने से प्रत्येक पदार्थ तत्स्वरूप होता है, काल का उस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता किन्तु दूसरी दृष्टि से देखने पर जो बच्चा जन्म लेता है उसका स्वरूप बदलता रहता है। इसी प्रकार एक दृष्टि से प्रत्येक पदार्थ एक, अखण्ड एवम् नित्य प्रतीत होता है तथा दूसरी दृष्टि से देखने पर अनेक, विश्लेष्य एवम् अनित्य प्रतीत होता है । एक व्यक्ति 'एक' ही है किन्तु वही पुत्र भी है पिता भी है। किसी के लिए वही कठोर हृदय वाला प्रशासक हो सकता है, किसी के लिए कोमल हृदय वाला प्रेमी । सामान्य व्यक्ति एक ही पेड़ की दो पत्तियों को एक जैसी समझ रहा है वस्तुत: सूक्ष्म दृष्टि से देखने पर हमें उनमें अन्तर मिल जाता है। विश्लेषणात्मक दृष्टि से जिसे हम 'एक' रंग समझ रहे हैं वह अनेक रंगों का समुच्चय है; जिसे एक पदार्थ समझ रहे हैं उसमें अनेक पदार्थों का मिश्रण है; जिसे एक ध्वनि के रूप में सुन रहे हैं उसमें अनेक ध्वनि गुणों का समाहार है। दूसरी दृष्टि से देखने पर प्रत्येक द्रव्य एक अखण्ड पदार्थ है । 'जल की तरंग' नित्य है या अनित्य है ? जल की दृष्टि से, गुणात्मक सत्ता की दृष्टि से नित्य है किन्तु पर्याय दृष्टि से, तरंग की स्थिति से, उत्पाद-व्यय दृष्टि से अनित्य है । भनेकांतात्मक पदार्थ की अभिव्यक्त्यात्मक प्रणाली : स्याद्वाद
'स्याद्वाद' अनेकांतवाद का समर्थक उपादान है; तत्वों को व्यक्त कर सकने की प्रणाली है; सत्य कथन की वैज्ञानिक पद्धति है। अनेकांतवाद की दृष्टि से प्रत्येक पदार्थ
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