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________________ प्रतीक' में अंकित 'परस्परोपग्रहो जीवानाम्' के आधार पर बीस-सूत्रीय कार्यक्रम के रूप में अभिहित राष्ट्र के इतिहास में नये मोड़ का आकलन भी किया जा सकता है। भगवान महावोर के उपदेश मानवमात्र के लिए हैं। वे देश, जाति वर्ग और वर्ण की सीमाओं से परे हैं। जीवन के जीवन्त आचार-विचारों से सम्बद्ध होने के कारण उन्हें किसी एक ग्रंथ में भी नहीं बाँधा जा सकता, इसीलिए भगवान महावीर के उपदेशों को किसी सम्प्रदाय के अन्तर्गत सीमित नहीं किया जा सकता। इनके उन्मुक्त सिद्धांतों को निर्ग्रन्थ या निगंठ कहना स्वाभाविक ही है। विश्व-कल्याण की मंगलयात्रा में मानव-मात्र के लिए इस अहेतुक अहिंसा का संबल स्वयम् में ही बहुमूल्य है। विश्वविद्यालय के इस प्रकाशन में विश्व को इस महिमामयी विभूति का उसी ज्योतिर्मय आस्था के दीप का स्तवन किया गया है। आशा है दीप से दीप जलाने की अखण्ड परम्परा इस महोत्सव के प्रयासों को कर्म, विवेक और उत्सर्ग के आलोक में सदा अग्रसर करती रहेगी। विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन (म.प्र.) शिवमंशा (शिवमंगलसिंह 'सुमन') कुलपति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.523101
Book TitleVikram Journal 1974 05 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRammurti Tripathi
PublisherVikram University Ujjain
Publication Year1974
Total Pages200
LanguageHindi, English
ClassificationMagazine, India_Vikram Journal, & India
File Size11 MB
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