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________________ बौद्ध साहित्य में महावीर मुझे संतोषप्रद उत्तर नहीं दिया ।"" इसी प्रकार एक समय राजा प्रसेनजित् ने बुद्ध से कहा “गौतम, क्या आप अधिकारपूर्वक कह सकते हैं कि आपने 'अनुत्तर सम्यक् सम्बोधि' को प्राप्त कर लिया है। मैंने अन्य धर्माचार्यो से भी यह प्रश्न पूछा, जिनमें गोशाल, निगण्ठ नाटपुत्त प्रादि हैं, किन्तु किसी ने भी इसका अधिकारपूर्वक उत्तर नहीं दिया । १४ । एक समय परिव्राजक अपने कुछ प्रश्न लेकर पूरणकश्यप, गोशाल, निगण्ठनाटपुत्त आदि के पास गया किन्तु किसी ने भी उसके प्रश्न का उत्तर नहीं दिया।। अन्त में बुद्ध के सदुपदेश से उसकी ज्ञान पिपासा शान्त हुई।१५ ठीक ऐसे ही उल्लेख सुभद्र परिव्राजक ६ तथा सच्चक निगण्ठ के सम्बन्ध में प्राप्त हैं। एक प्रसंग में कहा गया है कि एक समय राजगृह में तथागत बुद्ध विहार कर रहे थे। उसी समय निगण्ठ नाटपुत्त आदि सातों धर्मनायक अपने धर्मोपदेशों से श्रावकों को संतुष्ट करने में संलग्न थे। किन्तु सभी धर्मनायकों के उपदेश के समय बहुत शोरगुल होता था और बुद्ध के उपदेश के समय इतनी अधिक शान्ति रहती थी कि लोग खाँसते तक नहीं थे ।१८ एक स्थान पर महावीर के मत को 'अनाश्वासिक ब्रह्मचर्यवास' कहा गया है । अन्यत्र निंक देवपुत्त को निगण्ठ नाटपुत्त की निम्न प्रकार से स्तुति करते हुए उपस्थित किया गया है--- "वे पापों से घृणा करने वाले, चतुर, भिक्षु, चार यामों से सुसंवृत्त हैं तथा दृष्ट व श्रुत का हो पाख्यान करते हैं।" ४. जातक प्रसंग जातक की तीन कथाओं में महावीर की चर्चा है—१-महाबोधिजातक (नं. ५२८) २-बाबेरु जातक (नं. ३३६), ३-तेलोवाद जातक (नं. २४६)।। महाबोधि जातक के अनुसार बोधिसत्व एक धनिक उदीच्य ब्राह्मण के कुल में उत्पन्न हो, बोधिकुमार नाम को प्राप्त कर, अनेक शास्त्रों का अध्ययन कर तथा प्रकाण्ड विद्वान् बनकर वाराणसी लौटे और राजा ब्रह्मदत्त के आतिथ्य में रहने लगे। राजा की असीम श्रद्धा को देखकर पाँचों अमात्य बोध कुमार को मारने का प्रयत्न करने लगे । अन्त में शास्ता ने धर्म देशना देते हुए कहा कि उस समय पाँच मिथ्यादृष्टि अमात्य, पूरण कश्यप, मक्खलि गोशाल. प्रकुध कात्यायन, अजित केश कम्बली तथा निगण्ठ नातपुत्त थे और बोधिकुमार मैं ही था। बाबेरु जातक में बताया गया है कि "जैसे सूर्योदय से जुगुनुओं का अस्तित्व समाप्त हो जाता है उसी प्रकार बुद्ध के आने से निर्ग्रन्थों की दशा हुई।" इसी चर्चा में शास्ता ने कहा, एक बार बोधिसत्व मयूर की योनि में उत्पन्न हए। उस समय भारतीय व्यापारी बाबेरु आदि राष्ट्रों में व्यापार करते थे। एक बार वे बाबेरु जाते समय एक दिशाकाक को ले गए। वहाँ के लोगों ने उसे बहुत-सा धन देकर खरीद लिया और उसे सोने के पिंजरे में बन्दकर खूब खिलाने-पिलाने लगे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.523101
Book TitleVikram Journal 1974 05 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRammurti Tripathi
PublisherVikram University Ujjain
Publication Year1974
Total Pages200
LanguageHindi, English
ClassificationMagazine, India_Vikram Journal, & India
File Size11 MB
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