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________________ विक्रम दूसरी बार व्यापारी एक सुन्दर मयूर को बाबेरु ले गए। वहाँ के निवासियों ने मयूर के सौंदर्य पर रीझकर, और अधिक धन देकर उसे खरीद लिया तथा उसे भी सोने के पिंजरे में बन्द करके खूब खिलाने-पिलाने लगे। ग्रब कौए का आदर सत्कार समाप्त हो गया और वह भूखों मरने लगा। शास्ता ने धर्मोपदेश देते हुए बताया कि बुद्ध के पहले निग्रंथ पूजे जाते थे किन्तु बुद्ध के उत्पन्न होते ही निर्ग्रथों की पूजा समाप्त हो गयी। उन्होंने कहा-उस समय कौया तो निगण्ठ नाटपुत्त थे और मोर तो मैं ही था । तेलोवाद जातक के अनुसार एक समय बोधिसत्व ब्राह्मण कुल में उत्पन्न हो प्रब्रजित हो, साधना कर वाराणसी लौटे । एक गृहस्थ ने उन्हें आमन्त्रित कर मांस परोसा और कहा इसका पाप हम दोनों को लगेगा । बोधिसत्व ने धर्मोपदेश देते हुए कहा कि “यदि कोई अपने पुत्र तथा स्त्री का मांस भी दान में दे तो ग्रहणकर्ता प्रज्ञावान् पाप का भागी नहीं होता" ऐसा उपदेश दे वे आसन से उठ गए। शास्ता ने जातक का ल बैठाते हया कि "उस समय गृहस्थ निगण्ठ नाटपत्त था और तपस्वी मैं ही था।" त्रिपिटक साहित्य में प्राप्त महावीर विषयक उद्धरणों एवम् प्रसंगों से दो बातें स्पष्टतः प्रतीत होती हैं कि बौद्ध वाङ्मय में महावीर व उनके सिद्धान्तों का सही प्रतिनिधत्व नहीं है, तथा २- स्व धर्म के अतिशय प्रेम से प्रेरित होकर महावीर एवम् तत्कालीन अन्य धर्मनायकों को महात्मा बुद्ध से हीन प्रदर्शित करने का प्रयत्न किया गया है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.523101
Book TitleVikram Journal 1974 05 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRammurti Tripathi
PublisherVikram University Ujjain
Publication Year1974
Total Pages200
LanguageHindi, English
ClassificationMagazine, India_Vikram Journal, & India
File Size11 MB
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