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विक्रम
चित्र गृहपति, महात्मा बुद्ध के उपासकों में अग्रगण्य हैं। वे महावीर के पास आते हैं। दोनों में श्रद्धा व धर्म विषयक चर्चा होती है। अन्त में गृहपति चित्र निगण्ठ नाटपुत्त से धर्म विषयक दश प्रश्न पूछकर, उठकर चले आते हैं। दो लोकायतिक ब्राह्मण बुद्ध के पास आते हैं और उनसे कहते हैं कि 'हे गौतम निगण्ठ नाटतुत्त कहते हैं कि मैं अपने अनन्त ज्ञान से अनन्त लोक को जानता हूँ और देखता हूँ। उसकी यथार्थता से हमें अवगत कराएँ । गौतम कहते हैं "उन विवादों में पड़ना ठीक नहीं, तुम लोग सुनो मैं धर्मोपदेश देता हूँ।"
एक बार बुद्ध, सकुल उदायी से पूछते हैं कि 'सर्वज्ञ और सर्वदर्शी कौन हैं ?" उदायी कहते हैं “भन्ते, निगण्ठ नाटपुत्त सर्वज्ञ और सर्वदर्शी हैं ।"८ २. घटना प्रसंग -
इस प्रसंग में हम ऐसी घटनाओं का विवरण उपस्थित करते हैं जिनका सम्बन्ध स्वयं महावीर से है। पावा में महावीर का निर्वाण हुआ। चुन्द समादेश नामक एक बुद्ध के अनुयायी ने पावा से सामगाम में आकर बुद्ध के प्रधान शिष्य आनन्द को निगण्ठ नाटपुत्त की मृत्यु व निगण्ठों में हो रहे कलह की सूचना दी। इसे सुनकर आनन्द बोले"प्रावुस चुन्द, भगवान् के दर्शन के लिए यह कथा भेंट रूप है ।"५ त्रिपिटक का यह प्रसंग अत्यन्त अमानवीय एवम् तीव्र धार्मिक असहिष्णुता का द्योतक है जिसमें एक धर्मनायक की मृत्यु के समाचार को दूसरे धर्मनायक के लिए उपहार की संज्ञा दी गई है। बुद्ध के दूसरे प्रधान शिष्य खारिपुत्र ने बुद्ध के धर्मोपदेश के पश्चात् श्रोताओं को निगण्ठनाटपुत्त की मृत्यु का समाचार दिया और निगण्ठों की फूट की चर्चा करते हुए अपने धर्म की अत्यन्त प्रशंसा की।
____ एक स्थान पर महावीर की मृत्यु के कारण का निम्न प्रकार उल्लेख है"उपालि गृहपति को सत्य का प्रतिरोध हुआ और उसने दश गाथाएँ बुद्ध के उत्कीर्तन में कहीं। उस बुद्ध कार्ति को सहन न करते हुए नाटपुत्त ने अपने मुँह से उष्ण रक्त उगल दिया। उस अस्वस्थ स्थिति में वह पावा ले जाया गया, अतः वहीं वह कालगत हुआ।११
एक अन्य घटना के प्रसंग में निगण्ठ नाटपुत्त को अन्य धर्मनायकों के साथ चन्दन के एक पात्र को प्राप्त करने का प्रयत्न करते हुए उपस्थित किया गया है। महावीर के त्याग एवम् अपरिग्रह को ध्यान में रखते हुए उनका एक चन्दन के पात्र के लिए रीझना न केवल अयुक्त किन्तु तर्कहीन एवम् असम्भव प्रतीत होता है ।१२ उल्लेख प्रसंग--
यहाँ हम ऐसी घटनाओं की चर्चा करेंगे जिनमें प्रसंगवश महावीर का उल्लेख मात्र है।
। एक बार राजा अजातशत्रु ने बुद्ध से कहा "भगवन्, मैं 'श्रामण्यफल' के विषय में सभी धर्माचार्यों से, यहाँ तक कि निगण्ठ नाटपुत्त से भी पूंछ चुका हूँ, किन्तु किसी ने भी
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