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The Vikram Vol. XVIII No. 2 & 4, 1974
बौद्ध साहित्य में महावीर हरीन्द्र भूषण जैन, उज्जैन
यह एक निर्विवाद सत्य है कि भगवान् महावीर और महात्मा बुद्ध समकालीन धर्मनायक थे । दोनों की जन्म एवम् कर्म भूमि भी भारतवर्ष का बिहार प्रदेश रही है । किन्तु दोनों घर्मनायकों का आपस में कभी मिलन हुआ हो, ऐसा उल्लेख न तो जैन साहित्य में कहीं पर उपलब्ध है और न बौद्ध साहित्य में । अनेक बार ऐसे प्रसंग अवश्य आए हैं जब कि दोनों धर्मनायक एक ही स्थान पर धर्मोपदेश देते हुए पाए जाते हैं । उदाहरणार्थ गृहपति उपालि तथा प्रसिबन्धक पुत्र ग्रामणी के चर्चा प्रसंग में महावीर तथा बुद्ध नालन्दा में, सिंह सेनापति के चर्चा प्रसंग में दोनों वैशाली में तथा अभयकुमार की चर्चा प्रसंग में दोनों राजगृह में उपस्थित थे ।
जैन श्रागम तथा त्रिपिटक के अध्ययन से ज्ञात होता है कि जैन-बाङ्मय में बुद्ध विषयक चर्चा न्यून है और बौद्ध वाङ्मय में महावीर विषयक चर्चा का बाहुल्य है । बौद्ध वाङ्मय में महावीर को 'नाटपुत्र' या 'निगष्ठ नाटपुत्र' या 'नातपुत्त' के नाम से सम्बोधित किया गया है ।
महावीर ज्ञातृकुल के थे अतः वे 'ज्ञातृपुत्र' कहे जाते थे । ज्ञातृपुत्र को पालि रूप 'नाठपुत्त' या 'नातपुत्त' है । महावीर बाह्य एवम् श्राभ्यन्तर ग्रन्थ अर्थात् परिग्रह से रहित थे । अतः वे निर्ग्रन्थ कहे जाते थे । 'निर्ग्रथ' का पालिरूप है 'निगण्ठ' | इस प्रकार 'निगण्ठ नाटपुत्त' यह महावीर का नाम हुआ ।
त्रिपिटक में प्राप्त महावीर विषयक प्रसंगों को हम चार भागों में विभक्त कर सकते हैं- १ - चर्चा प्रसंग २- घटना प्रसंग, ३ - उल्लेख प्रसंग और४ -- जातक प्रसंग । १. चर्चा प्रसंग
त्रिपिटक में ऐसे अनेक प्रसंग उपलब्ध हैं जिनमें भगवान् महावीर के अनुयायी श्रावक महात्मा बुद्ध के पास जाते हैं, उनसे अपनी शंकानों का समाधान करते हैं और अन्त में वे बुद्ध के उपासक हो जाते हैं ।
सिंह सेनापति महावीर का परम भक्त श्रावक है । किन्तु वह महावीर के द्वारा अत्यधिक समझाए जाने पर भी उनकी अवहेलना कर, पांच सौ रथों के साथ बुद्ध के सभागार में पहुँचता है और उन्हें प्रणाम कर, 'क्रियावाद' 'श्रक्रियावाद' आदि विषयों पर चर्चा कर सन्तुष्ट हो बुद्ध का उपासक बन जाता है ' ।
इसी प्रकार गृहपति उपालि, श्रावक अभय राजकुमार', प्रसिबन्धक पुत्र ग्रामणी, श्रावक वप्प', आदि जो महावीर के परम उपासक हैं किसी न किसी प्रसंगवश बुद्ध के निकट आते हैं, उनके समक्ष अपनी शंकाएँ रखते हैं, चर्चा करते हैं और बुद्ध के उपदेश से संतुष्ट होकर उनके अनुयायी बन जाते हैं ।
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