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________________ विक्रम किया गया है । ऋग्वेद में उल्लेखित केशी" के विवरण को ऋषभदेव के केशी नाम से अभिन्न मानना भी समीचीन नहीं है । शतपथ ब्राह्मण, तैत्तिरीय आरण्यक आदि के विवरणों के अतिरिक्त अथर्ववेद के व्रात्यखण्ड के वर्णन को भी ऋषभदेव के श्रमरणधर्म से सम्बंधित करने का प्रयास किया जाता है, जिसे स्वीकार करना सम्भव नहीं है। आठवीं शताब्दी के भागवत पुराण में भी इन्हें वातरशना श्रमणों के धर्म का संस्थापक माना है तथा इन्हें सम्पूर्ण वेद, देवता, ब्राह्मण और गौत्रों का परम गुरु और उनके मंगलमय चरित का श्रद्धापूर्वक एकाग्रचित्त से सुनने और सुनाने वालों को भगवान वासुदेव का अनन्य भक्त घोषित किया है ।" १२ भागवतपुराण जैनधर्म के परम उत्कर्ष और विस्तार के अतिरिक्त जैन संस्कृति के स्वरिणमकाल के बाद का हैं । एतदर्थ जैन परम्परा को यथावत स्थान देकर ऋषभदेव के चरित का विवरण देते हुए पुराणकार ने उन्हें विष्णु का अवतार घोषित कर दिया था । इसमें यत्रतत्र जैन परम्परा से इतर मान्यताएँ एवम् कथानक भी सम्मिलिल है । विष्णु पुराण में ऋषभ को ब्रह्मा से उत्पन्न स्वायंभुव के पुत्र प्रियव्रत के प्रपौत्र और आग्नीध्र के पौत्र नाभि के पुत्र के रूप में वर्णित किया गया है।" जैन अनुश्रुति के अनुसार ही जैनेत्तर परम्पराओं में भी ऋषभदेव के जीवनचरित से सम्बन्धित विवरण उपलब्ध हैं । महायान बौद्धग्रन्थ 'आर्यमंजुश्री मूलकल्प" में नाभिपुत्र ऋषभ और ऋषभपुत्र भरत का राजा के रूप में उल्लेख है, परन्तु ब्राह्मण पौराणिक परम्परा में भगवान् ऋषभदेव का विस्तृत चरित वर्णित है । ये जैनेत्तर उल्लेख जैन परम्परा से परवर्ती है तथा इन पर जैन परम्परा का स्पष्ट प्रभाव है । जीवन्तधर्म के रूप में जैनधर्म के प्रसार एवम् लोकप्रियता के कारण सहिष्णुतावश ब्राह्मण अनुश्रुतियों में ऋषभदेव के व्यक्तित्व की श्रेष्ठता के दर्शन यत्रतत्र होते हैं । इन जैनेत्तर परम्परात्रों के ग्रालोचनात्मक अध्ययन से तत्कालीन समाज में जैनधर्मावलम्बियों की प्रतिष्ठा और बहुलता विदित होती है । विष्णुपुराण" में ऋषभ को ब्रह्मा से उत्पन्न प्रथम मनु स्वयंभुव के पुत्र प्रियव्रत के प्रपौत्र और आग्नीध्र के पौत्र तथा नाभि के पुत्र के रूप में उल्लिखित किया है, यद्यपि ऋषभ की माता मरुदेवी और पुत्र भरत का नाम जैन परम्परा के अनुसार ही दिया है, परन्तु ऋषभ को विविध यज्ञों का कर्ता तथा भरत को राज्य सौंपकर तपस्या हेतु पुलहाश्रम की और जाने का विवरण दिया गया है । मार्कण्डेय, कूर्म, अग्नि, वायु आदि पुरणों में भी ऋषभदेव और उनके ज्येष्ठ पुत्र भरत का उल्लेख है तथा विष्णुपुराण के अनुसार इस देश का भारतवर्ष नामकरण भी इसी भरत के नाम से प्रसिद्ध होना स्वीकार किया गया है । श्रीमद् भागवतपुराण में ऋषभदेव का विस्तृत चरित वरिणत है, यद्यपि इन्हें विष्णु के अवताररूप में उल्लेखित किया गया है । शिवपुराण में तो ऋषभदेव को भगवान् शिव का अवतार स्वीकार कर चरित वरिणत किया गया है, जो कि भागवतपुराण का प्रतिकूल प्रभाव है । इन पौराणिक विवरणों से जैनेतर समुदाय में ऋषभदेव की प्रतिष्ठा देवाधिदेव के रूप में संस्थापित हो जाने का पता चलता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.523101
Book TitleVikram Journal 1974 05 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRammurti Tripathi
PublisherVikram University Ujjain
Publication Year1974
Total Pages200
LanguageHindi, English
ClassificationMagazine, India_Vikram Journal, & India
File Size11 MB
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