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भगवान् महावीर की परम्परा का जन-भाषा के विकास में योगदान
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विकास कई अवस्थाओं से गुजर कर हुआ है। हिन्दी भाषा में प्रयुक्त शब्द भण्डार का यदि हम मूल्यांकन करें तो पता चलेगा कि एक ओर जहाँ उसमें संस्कृत के तत्सम और तद्भव शब्द हैं, वहाँ ऐसे भी अनेक शब्द हैं जो प्राकृत और अपभ्रंश से सीधे उसमें आए
हैं ।
यदि इन शब्दों की जानकारी हो तो हिन्दी के हरेक शब्द की व्युत्पत्ति के लिए संस्कृत पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा । हेमचन्द्र की 'देशीनाममाला' तथा प्राकृत अपभ्रंश के अन्य ग्रन्थों के वे कुछ शब्द यहाँ उद्धृत हैं जो हिन्दी में सीधे ग्रहण कर लिए गए हैं तथा उनके अर्थ में भी कोई परिवर्तन नहीं आया है ।
प्राकृत
प्रक्खाड
अरहट्ठ
उक्खल
उल्लुट
कक्कडी
कहारो
कौइला
कुहाड
खट्टीक
खलहान
खड्डा
खल्ल
गंठी
गड्ड
गोब्बर
चाउला
बेट्ठिय
बड्ड
पोट्टली
पत्तल
प्राकृत
ड
हिन्दी
अखाड़ा
रहट
प्रोखली
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उलटा
ककड़ी
कहार
कोयला
कुहाड़ा
खटीक
खलिहान
खड्डा
खाल
गाँठ
गड्ढा
गोबर
चौवल
बेटी
बड़ा
पोटली
पतला
प्राकृत
हिन्दी
उड़ना
चिडिय
चारो
चुल्लि
चोक्ख
छल्लो
छल्लि
झमाल
झाडं
भडिया
डोरो
तरगं
डाली
थिग्गल
नाई
बप्प
बइल्लख
भल्ल
सलोण
साडी
प्राकृत
झिल्लि
हिन्दी
चिड़िया
चारा
चूल्हा
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चोखा
छैला
छाल
झमेला
झाड़
झंझट
डोर
हिन्दी भाषा के प्राकृत के शब्द ही नहीं ग्रहण किए गए हैं, अपितु बहुत-सी हिन्दी की क्रियाएँ भी प्राकृत की हैं। संस्कृत से उनकी उत्पत्ति नहीं है ।
तुलनात्मक दृष्टि से
कुछ क्रियाएँ द्रष्टव्य हैं ।
तागा
डाली
थेगला
नई
बाप
बैल
भला
सलोना
साड़ी
हिन्दी
झेलना
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