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विक्रम
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तेलगु आदि भाषाओं की समृद्धि लोकभाषाओं के अनेक शब्दों के प्रयोग द्वारा की है। इन भाषाओं में प्रयुक्त प्राकृत से विकसित कुछ शब्द इस प्रकार हैंप्राकृत জম্ব
अर्थ अोलग्ग पोलग, ओलगिसु
सेवा करना करडा करड़े
करटा कन्दल कद मारना
लड़ाई कुरर कुरी-कुरव
भेड़, गडरिया कोट्ट
कोटे चवेड चप्पालि
ताली बजाना देसिय देशिक
पथिक धगधग धगधगिसु
तेजी से चलना पल्लि पल्ली, हल्ली
गाँव पुल्लि पुलि, हुलि
बाध पिसुण पिसुरिणम
कहना प्राकृत तमिल
अर्थ
किला
FREEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEE
अक्क
अक्का
मा
कडप्य
समूह
कुरर
भेड़
कोट्ट
कलप्प कोरि कोट्टई पिल्लई
पिल्लम
किला पशु का छोटा बच्चा अर्थ
प्राकृत
तेलगु
कडप्प
कलपे
कुरुलु
समूह धुंघराले बाल ताली बजाना भंगिन
कुरुलु चप्पट डोम्मे पिलि
चवेड
डोम्बि पुल्लि
बाध
महावीर की परम्परा में भारत की लोकभाषाएँ ही विकसित नहीं हुईं, अपितु संस्कृत भाषा के विकास को भी बल मिला है। जैन-दर्शन और न्याय की प्रतिष्ठा संस्कृत भाषा के माध्यम से शिष्ट समुदाय में की गयी है। अनेक जैन काव्य संस्कृत में लिखे गए हैं । बहुत से प्राकृत और देशी शब्दों को संस्कृत का स्वरूप प्रदान किया गया है। संस्कृत व्याकरण के अध्ययन-अध्यापन की व्यवस्था जैन संघों द्वारा संस्कृत पाठशालाप्रों के समान्तर में हुई है। अत: महावीर की परम्परा का योगदान संस्कृत के विकास में भी कम नहीं है।
आज हम राष्ट्रभाषा के रूप में जिस हिन्दी भाषा का प्रयोग करते हैं, उसका
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