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भगवान् महावीर की मूलवाणी का भाषा-वैज्ञानिक महत्व
उद्धरण १. 'पागम्यन्ते परिच्छिद्यन्ते प्रर्था । अनेनेत्यागमः, प्राप्तवचनसम्पद्यो विप्रकृष्टार्थ
प्रत्ययः ।'---स्थानांगसूत्र की अभयदेवसुरी की वृत्ति ३३८, पृ. २४६ तथा--'प्रागमो हि णाम केवलणाणपुरस्सरो पाएण प्रणिदियत्यविसमो अचिंतिसहामो
जुत्तिगोयरादीदो।'- कषायपाहुड की घवला टीका, पु. ६, पृ, १५१ २. प्राचार्य प्रभाचन्द्र : न्यायकुमुदचन्द्र, द्वितीय भाग, पृ. ८०६ ३. देवकृतो ध्वनिरित्यसदेतद् देवगुणस्य तथा विहतिः स्यात् ।
साक्षर एव च वर्णसमूहान्नेव विनार्थगतिर्जगति स्यात् ॥ महापुराण, २३, ७३ ४. 'भगवं च णं अद्धमागहीए भासाए घम्ममाइक्खइ'। समवायांगसूत्र, ३४, १
'भासारिया जे णं अद्धमागहाए भासाए भासंति ।'-पन्नवणासुत्त, १, ६२ पं. कैलाशचन्द्र सिद्धान्तशास्त्री : जैन साहित्य का इतिहास पूर्व-पीठिका, प्रथम
संस्करण, पृ. ४६६ ६. सिंहसंघो नन्दिसंघः सेनसंघो महाप्रभुः ।
देवसंघ इति स्पष्टं स्थानस्थिति विशेषतः ।। नीतिसार, ७ ७. हिन्दुस्तानी भाग ३३, अंक २, पृ. ८५-८६ 'पाटण के हस्तलिखित जैन ज्ञान भण्डार'
लेख से उद्धत ८. महाकवि पुष्पदन्त विरचित 'वीरजिणिंदचरिउ' की प्रस्तावना, पृ. ४६ ६. वही, पृ. ४६ १०. मुनिश्री नथमल : जैन दर्शन मनन और मीमांसा, १९७३, पृ. ७६ ११, पाइअ-सह-महण्णवो का उपोद्घात, द्वितीय संस्करण, पृ. ३३ १२. . सं. हम विल्सन : ए लिंग्विस्टिक्स रीडर में प्रकाशित 'लैंग्वेज एण्ड डायलेक्ट'
. निबन्ध, पृ. ८७ १३. विल्सन, ग्रेहम (सं.) : ए लिंग्विस्टिक्स रीडर, न्यूयार्क, १६६७. में प्रकाशित
स्टेनली रुन्डले के प्रकाशित निबन्ध 'लैंग्वेज एण्ड डायलेक्ट', पृ. ८७ से उद्धृत १४. ए. डी. पुसालकर : वेयर द पुराणाज प्रोरिजनली इन प्राकृत, भाचार्य ध्रुव
स्मारक ग्रन्थ, भाग ३, गुजरात विद्यासभा, अहमदाबाद, पृ. १०३ १५. द्रष्टव्य है बरो, टी. : द संस्कृत लैंग्वेज, हिन्दी अनु. पृ. ४३ १६. वही, पृ. ६ १७. चटर्जी, डॉ. सुनीतिकुमार : भारतीय पार्यभाषा और हिन्दी, द्वि. सं., १९५७,
१८. द्रष्टव्य है -चटर्जी, सुनीतिकुमार : भारतीय आर्यभाषा और हिन्दी, द्वि. सं.,
१६५७, पृ.४१
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