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________________ भगवान् महावीर की मूलवाणी का भाषा-वैज्ञानिक महत्व १४६ प्राचीनतम भाषा लिखित भाषा के रूप में संसार का प्राचीनतम प्रमाण ऋग्वेद है। यद्यपि प्राचीन पाठ-परम्परा के अनुवर्तन से वेदों के मूल रूप का रक्षण होता रहा है, किन्तु भाषा-वैज्ञानिक यह मानते हैं कि ऋग्वेद की रचना किसी एक समय में और एक व्यक्ति के द्वारा न होकर विभिन्न युगों में संकलित हुई है ! वैदिक रचनाएँ पुरोहित-साहित्य है। "ऋग्वेद रिपीटाशन्स' में ब्लूमफील्ड ने स्पष्ट रूप से बताया है कि ऋग्वेद में लगभग एक चौथाई से भी अधिक पाद-पुनरावर्तन हुआ है। ऋग्वेद के प्रथम मण्डल और दशम मण्डल की भाषा में भी अन्तर लक्षित होता है। ऐतिहासिक दृष्टि से ऋग्वेद की रचना एवम् संकलना का समय १२०० ई. पू. १००० ई. पू.--के लगभग माना जाता है। इस काल से साहित्यिक परम्परा सतत एवम् अविच्छिन्न रही है और भारतीय आर्यभाषा का क्रमिक विकास विभिन्न अवस्थाओं में विविध रूपों में समाहित होकर विस्तृत हुआ है ।१५ टी. बरो के अनुसार ऋग्वेद १००० ई. पू. के लगभग और अवेस्ता ६०० ई. पू. के लगभग की रचनाएँ हैं । ईरानी भाषा की प्राचीन स्थिति का प्रतिनिधित्व अवेस्ता तथा प्राचीन फारसी साहित्य के द्वारा किया जाता है, और ये ही ग्रन्थ वैदिक संस्कृत की तुलना की दृष्टि से अत्यधिक महत्व के हैं। जरथुस्त्रीय धर्म के मतानुसार अवेस्ता उनके द्वारा सुरक्षित पवित्र लेखों का प्राचीन संग्रह है, और इसके आधार पर वह भाषा भी अवेस्ता (भाषा) कहलाती है । यह कोरास्मिया प्रदेश में प्रचलित पूर्वी ईरानी विभाषा जान पड़ती है ।१६ भारतीय आर्य की पश्चिमी बोलियाँ कुछ विषयों में ईरानी से साम्य रखती थीं। प्रो० एन्त्वान् मेय्ये ने ऋग्वेद की साहित्यिक भाषा का मूल सीमान्त प्रदेश की एक पश्चिमी बोली को ही निर्दिष्ट किया है। पश्चिम की इस बोली में 'ल' न होकर केवल 'र' था। किन्तु संस्कृत और पालि में 'र' और 'ल' दोनों थे। तीसरी में 'र' न होकर केवल 'ल' ही था, जो सम्भवतः सुदूरपूर्व की बोली थी। इस पूर्वी बोली की पहुँच पार्यों के प्रसार तथा भाषा विषयक विकास के द्वितीय युग के पहले-पहल ही आधुनिक पूर्वी-उत्तर प्रदेश और बिहार के प्रदेशों तक हो गई थी। यही पूर्वी प्राकृत तथा उत्तरकालीन मागधी प्राकृत बनी।१७ इसमें 'र' न होकर केवल 'ल' था। वस्तुतः एक ही युग की ये तीन तरह की बोलियाँ थीं, जो परवर्ती काल में विभिन्न रूपों में परिवर्तित होती रहीं। आगे चलकर विभिन्नजातियों के सम्पर्क के कारण इनमें अनेक प्रकार के मिश्रण भी हुए। असीरी बाबिलोनी से आगत वैदिक भाषा में कई शब्द मिलते हैं।८ जहाँ तक फिनो-उग्री के साथ प्राचीन भारत-ईरानी के सम्पर्क का सम्बन्ध है, इस सम्बन्ध में अधिक प्रमाण उपलब्ध हैं तथा उनका विश्लेषण करना अधिक सरल है। भारत-ईरानी काल के पूर्व भी भारोपीय तथा फिन्नो-उग्री में सम्पर्क होने के प्रमाण मिलते हैं। इन भाषाओं में शब्दों का आदान-प्रदान दोनों दिशाओं में रहा होगा।१९ वैविक, अवेस्ता और प्राकृत __ वैदिक काल से ही स्पष्ट रूप से भाषागत दो धाराएँ परिलक्षित होती हैं । इनमें मे प्रथम “छान्दस्" या साहित्य की भाषा थी और दूसरी जनवाणी या लोकभाषा थी। इसके स्पष्ट प्रमाण हमें अवेस्ता, निय प्राकृत तथा सर्वप्राचीन शिलालेखों की भाषा में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.523101
Book TitleVikram Journal 1974 05 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRammurti Tripathi
PublisherVikram University Ujjain
Publication Year1974
Total Pages200
LanguageHindi, English
ClassificationMagazine, India_Vikram Journal, & India
File Size11 MB
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