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विक्रम
है। यदि हम गहराई से देखें तो इनमें श्रवण श्रद्धा के, मनन ज्ञान के प्रौर निदिध्यासन कर्म के अन्तर्भूत हो सकते हैं।
पाश्चात्य परम्परा में भी तीन नैतिक आदेश उपलब्ध होते हैं-१. स्वयं को जानो (Know Thyself), २. स्वयं को स्वीकार करो (Accept Thyself) और ३. स्वयं ही बन जाओ (Be Thyself) पाश्चात्य चिन्तन के यह तीन नैतिक आदेश ज्ञान, दर्शन और चारित्र के ही समकक्ष हैं। आत्मज्ञान में ज्ञान का तत्त्व, प्रात्मस्वीकृति में श्रद्धा का तत्त्व और आत्मनिर्माण में चरित्र का तत्त्व उपस्थित है।
जैन दर्शन
बौद्ध दर्शन गीता
उपनिषद
पाश्चात्य दर्शन
सम्यक ज्ञान सम्यक् दर्शन सम्यक चारित्र
प्रज्ञा समाधि शील
ज्ञान, परिप्रश्न मनन श्रद्धा, प्रणिपात श्रवण कर्म, सेवा निदिध्यासन
Know Thyself Accept Thyself Be Thyself
विविध साधनामार्ग और मुक्ति
कुछ भारतीय विचारकों ने इस त्रिविध साधनामार्ग के किसी एक ही पक्ष को मोक्ष की प्राप्ति का साधन मान लिया है। प्राचार्य शंकर मात्र ज्ञान से और रामानुज मात्र भक्ति से मुक्ति की सम्भावना को स्वीकार करते हैं। लेकिन जैन दार्शनिक ऐसे किसी एकान्तवादिता में नहीं गिरते हैं। उनके अनुसार तो ज्ञान, कर्म और भक्ति की समवेत साधना ही मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग है। इनमें से किसी एक के अभाव में मोक्ष की प्राप्ति सम्भव नहीं है। उत्तराध्ययन सूत्र के अनुसार दर्शन के बिना ज्ञान नहीं होता और ज्ञान के अभाव में आचरण सम्यक् नहीं होता है और सम्यक् प्राचरण के अभाव में मुक्ति भी नहीं होती है। इस प्रकार मुक्ति की प्राप्ति के लिए तीनों ही अंगों का होना आवश्यक है। सम्यक दर्शन का अर्थ
जैन आगमों में दर्शन शब्द अनेक अर्थों में प्रयुक्त हुमा है और इसके अर्थ के सम्बन्ध में जैन परम्परा में काफी विवाद रहा है। दर्शन शब्द को ज्ञान से अलग करते हुए विचारकों ने दर्शन को अन्तर्बोध या प्रज्ञा और ज्ञान को बौद्धिक ज्ञान कहा है। नैतिक जीवन की दृष्टि से दर्शन शब्द का दृष्टिकोणपरक अर्थ भी लिया गया है। दर्शन शब्द के स्थान पर दृष्टि शब्द का प्रयोग दृष्टिकोणपरक अर्थ का द्योतक है। जैन आगमों में दर्शन शब्द का एक अर्थ तत्त्व श्रद्धा भी माना गया है। परवर्ती जैन साहित्य में दर्शन शब्द को देव गुरु और धर्म के प्रति श्रद्धा या भक्ति के अर्थ में भी प्रयुक्त किया गया है।" इस प्रकार जैन परम्परा में सम्यक् दर्शन तत्त्व साक्षात्कार, प्रात्म-साक्षात्कार, अन्तर्बोध, दृष्टिकोण, श्रद्धा और भक्ति आदि अनेक अर्थों को अपने में समेटे हुए है।
सम्यक् दर्शन शब्द के इन विभिन्न अर्थों पर विचार करने के पहले हमें यह देखना होगा कि इनमें से कौनसा अर्थ ऐतिहासिक दृष्टि से प्रथम था और किन किन ऐतिहासिक
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