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________________ The Vikram Vol. XVIII No. 2 & 4, 1974 जैन दर्शन का त्रिविध साधनामार्ग डॉ. सागरमल जैन, हमीदिया महाविद्यालय, मोपाल जैन दर्शन में मोक्ष की प्राप्ति के लिए त्रिविध साधनामार्ग बताया गया है । तत्वार्थ सूत्र में सम्यक् ज्ञान, सम्यक् दर्शन और सम्यक् चारित्र को मोक्षमार्ग कहा गया है । " उत्तराध्ययन सूत्र में सम्यक् ज्ञान, सम्यक् दर्शन, सम्यक् चारित्र और सम्यक् तप ऐसे चतुविध मोक्षमार्ग का भी विधान है, किन्तु जैन प्राचार्यों ने तप का अन्तर्भाव चरित्र में करके इस त्रिविध साधनामार्ग को ही मान्य किया है । त्रिविध साधनामार्ग ही क्यों ? सम्भवतः यह प्रश्न हो सकता है कि त्रिविध साधनामार्ग का ही विधान क्यों किया गया है ? वस्तुतः त्रिविध साधनामार्ग के विधान में जैन प्राचार्यों की एक गहन मनोवैज्ञानिक सूझ रही है । मनोवैज्ञानिक दृष्टि से मानवीय चेतना के तीन पहलू माने गए हैं -- १. ज्ञान, २. भाव और ३. संकल्प । चेतना के इन तीनों पक्षों के विकास के लिए त्रिविध साधनामार्ग के विधान का प्रावधान किया गया है। चेतना के भावात्मक पक्ष को सही दिशा में नियोजित करने के लिए सम्यक् दर्शन, ज्ञानात्मक पक्ष के सही दिशा में नियोजन के लिए ज्ञान और संकल्पात्मक पक्ष के सही दिशा में नियोजन के लिए सम्यक् चारित्र का प्रावधान किया गया है । अन्य दर्शनों में त्रिविध साधनामार्ग जैन दर्शन के समान ही बौद्ध दर्शन में भी त्रिविध साधनामार्ग का विधान है । बौद्ध दर्शन का अष्टांग मार्ग भी त्रिविध साधनामार्ग में ही अन्तर्भुक्त है । बौद्ध दर्शन के इस त्रिविध साधनामार्ग के तीन अंग हैं- १. शील, २. समाधि और ३. प्रज्ञा । वस्तुतः बौद्ध दर्शन का यह त्रिविध साधनामार्ग जैन दर्शन के त्रिविध साधनामार्ग का समानार्थक ही है । तुलनात्मक दृष्टि से शील को सम्यक् चरित्र से, समाधि को सम्यक् दर्शन से और प्रज्ञा को सम्यक् ज्ञान से तुलनीय माना जा सकता है । सम्यक् दर्शन समाधि से इसलिए तुलनीय है कि दोनों में चित्त विकल्प नहीं होते हैं । गीता में भी ज्ञान, कर्म और भक्ति के रूप में त्रिविध साधनामार्ग का उल्लेख है । हिन्दू धर्म के ज्ञानयोग, कर्मयोग और भक्तियोग भी त्रिविध साधनामार्ग का ही एक रूप है । हिन्दू परम्परा में परम सत्ता के तीन पक्ष सत्य, सुन्दर और शिव माने गए हैं । इन तीनों पक्षों की उपलब्धि के लिए ही उन्होंने भी त्रिविध साधनामार्ग का विधान किया है । सत्य की उपलब्धि के लिए ज्ञान, सुन्दर की उपलब्धि के लिए भाव या श्रद्धा और शिव की उपलब्धि के लिए सेवा या कर्म माने गए हैं। गीता में प्रसंगान्तर से त्रिविध साधनामार्ग के रूप में प्रणिपात, परिप्रश्न और सेवा का भी उल्लेख है । इनमें प्रणिपात श्रद्धा का परिप्रश्न ज्ञान का और सेवा कर्म का प्रतिनिधित्व करते हैं । उपनिषदों में श्रवण, मनन और निदिध्यासन के रूप में भी त्रिविध साधनामार्ग का प्रस्तुतीकरण हुआ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.523101
Book TitleVikram Journal 1974 05 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRammurti Tripathi
PublisherVikram University Ujjain
Publication Year1974
Total Pages200
LanguageHindi, English
ClassificationMagazine, India_Vikram Journal, & India
File Size11 MB
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