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________________ - ३६ जैनहितैषी। अजमेर । पृष्ठ, ६६ । मूल्य, साढ़े तीन पाने। वर्णन । बाला भाई छगन लालजी अहमदाबादकी १२ श्रीजम्बगुण रत्नमाला-इसमें श्री गुजराती पुस्तक परसे अनुवादित । पृष्ठ, १६ । जम्बुस्वामीके चरित्रका अनेक छंदोंमें वर्णन है। मूल्य, एक आना। लेखत, जेठमलजी चौरडिया, जयपुर । प्रकाशक, १८ जैनदर्शन और जैनधर्म-मिस्टर कुँवर मोतीलालची रांका, ब्यावर । पृष्ठ, ८५। हर्बर्ट वारनके अंगरेजी लेखका अनुवाद जो मि० मूल्य, छह श्राने। लालनके गुजराती अनुवाद परसे किया गया है। १२ श्रावक धर्म दर्पण-श्रावकोंके जानने पृष्ठ १६ । मूल्य, श्राध श्राना। योग्य अनेक बातोंका संग्रह। संग्रहकर्ता और शतक-यह श्रीगुणविजयजी प्रकाशक कुँवर मोतीलालजी राँका, ब्यावर, मूल्य, आचार्यके मूल ग्रन्थका हिन्दी अनुवाद है जो मि० साढे तीन आने । वाडीलाल मोतीलालजी शाहके गुजराती अनुवाद १३ शीलरक्षा-इसके प्रथम भागमें शील- परसे तय्यार किया गया है। पृष्ठ, २४ । मूल्य, के १६ कड़े और द्वितीय भागमें 'दीप' कविका एक आना। रचा हुआ सुदर्शन सेठका चरित्र है। मूल्य दोनों उपर्युक्त दसों पुस्तके कुँवर मोतीभागोंका क्रमशः आघ आना और दो पाने। लालजी राँका, प्रबंधकर्ता 'जैन पुस्तक : १४ श्राविका धर्म दर्पण-यह श्रीमती प्रकाशक कार्यालयः ब्यावरके पाससे सौ० रंभावहेन रामजी, भावनगरकी लिखी हुई मिलती हैं। 'नारी दपण मां नीति वाक्य' नामक गुजराती - २० श्री आनंद काव्य महोदधि ( छठा पुस्तकका हिन्दी अनुवाद है। पुस्तक अच्छी और मौक्तिक )-इसमें वाचक श्रीनयसुन्दरके बनाये उपयोगी है। पृष्ठ, ४४ मूल्य, डेढ श्राना। हर रूप चंदकंवर रास. नलदमयंती रास और १५ जैन शिक्षण पाठमाला-लींबडी __ श्रीशत्रुञ्जयउद्दार रास, ऐसे तीन गुजराती पद्य. सम्प्रदायके मुनि श्रीगुलाबचंद्र और वीरजीकी ग्रन्थोंका संग्रह किया गया है । संग्राहक हैं जीवनचंद बनाई हुई पुस्तकका हिन्दी अनुवाद । इसमें भी साकरचंदजी झवेरी। साथमें मोहनलाल दुलीचंद अनेक उपयोगी शिक्षाएँ हैं। पृष्ठ, ६० ।. मूल्य दो जी देशाईका लिखा हुआ ६२ पृष्ठका एक सुन्दर आने । निबंध है जिसमें कविवर नयसुंदर और उनके ग्रंथों १६ उपदेशरत्नकोष—यह श्रीपद्म जिनेश्वर आदिका परिचय दिया गया है। पृष्ठ संख्या, सरिका २६ गाथा परिमाण मूल प्राकृत ग्रन्थ है सब मिलाकर ६०० के करीब । मूल्य इतने बड़े जो संस्कृत छाया तथा हिन्दी अर्थ और विवेचन सजिल्द ग्रन्थका, सिर्फ बाहर आने । यह सेठ सहित छापा गया है । हिन्दीका यह अर्थ और देवचंद लाल भाई जैन पुस्तकोदार फंड द्वारा विवेचन ग्रंथके उस गुजराती संस्करण परसे प्रकाशित हुआ है और इसीसे लागतसे भी बहुत अनुवाद किया गया है जिसको जैनहितेच्छुके सुप्र- , कम मूल्य रक्खा गया है। सिद्ध संपादक मिस्टर वाडीलाल मोतीलालजी २१ सुबोध पद्य रत्नावली-इसमें अनेक शाहने प्रकाशित किया था। पुस्तक बड़ी उपयोगी विषयोंपर जैन अजैन विद्वानोंके अच्छे अच्छे १५२ है और इसमें अच्छा व्यावहारिक उपदेश दिया गया संस्कृत पद्योंका संग्रह किया गया है और साथमें है। पृष्ठ संख्या, ५० । मूल्य, अढ़ाई आने । उनका गुजराती अनुवाद भी दिया है। छपाई १७ मार्गानुसारीके ३५ गुण-जैन धर्म- सफाई उत्तम । लेखक, सरस्वती श्रीचरण। प्रकाको अंगीकार करने अथवा श्रावक धर्मको धारण शक, पं० वाड़ीलाल डाह्याभाई, जैन सरस्वती करनेसे पहले जिन गुणोंकी आवश्यकता है उनका भवन अहमदाबाद । पृष्ठ, ६४ । मूल्य, छह पाने । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522894
Book TitleJain Hiteshi 1921 Ank 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1921
Total Pages42
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size6 MB
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